शिकार करना

शिकार करना

ज़्यादातर अमानुष जानवरों को मारने वाली मानवीय गतिविधियों में से एक है, शिकार करना | यहाँ कोई आंकड़े नहीं हैं कि कितने जानवर शिकारियों द्वारा मारे जाते हैं | हालाँकि, हम जानते हैं कि अकेले यू एस ए में 16 वर्ष और उससे अधिक के 13 मिलियन से ज्यादा लोग पंजीकृत शिकारी हैं |1 यदि प्रत्येक शिकारी प्रतिवर्ष केवल एक जानवर मारता है, तो मारे जाने वाले जानवरों की संख्या दसों मिलियन में होगी; इसी तरह से, शिकारी हर साल कई जानवरों को मारते हैं, अतः मौतों की वास्तविक संख्या वैश्विक स्तर पर बिलियन नहीं पर, सैकड़ों मिलियन हो सकती है |2

प्रति वर्ष विश्व भर में शिकार से सैकड़ों जानवर मनुष्य के शिकार (या तो मौत या चोटिल होकर) होते हैं, इस तथ्य के लिए कुछ शिकार करने की आलोचना करते हैं | इनके कुछ शिकार खुद शिकारी हैं, जबकि अन्य इससे मात्र गुजरने वाले | हालाँकि, यदि हम प्रजातिवाद को अस्वीकार करें या सीधे अमानुष जानवरों के हितों को ध्यान में रखें, तो हमें शिकार करने का विरोध करने के लिए उन कारणों में से किसी की ज़रूरत नहीं है | हमें सिर्फ इस बात पर ध्यान देने कि ज़रूरत है कि यह क्रिया अमानुष जानवरों को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाती है |

या तो शिकारी जंगली जानवरों के कारण होने वाली मानव मौतों की बात कहकर, संरक्षणवादी दावे बनाकर, यह दावा कर कि जानवरों का शरीर खाये जाने के लिए स्वीकार्य है, उनके शिकार करने को सही ठहराते हैं, या सिर्फ़ आनंद के लिए उन्हें पकड़ना, यदि हम अमानुष जानवरों के हितों को ध्यान में रखें, शिकार करने की औपचारिक अस्वीकार्यता का तथ्य तब भी रहता है | शिकार हुये जानवर भय और पीड़ा सहते हैं, और फिर वे अपने जीवन से वंचित हो जाते हैं | प्रजातिवाद का अन्याय और अमानुष जानवरों के हितों के बारे में समझ यह स्पष्ट करती है कि मानवीय आनंद अमानुष जानवरों कि तकलीफ़ को उचित सिद्ध नहीं कर सकता |

शिकार करने के विभिन्न तरीके

यहाँ जानवरों की एक श्रृंखला है जो शिकार द्वारा मारे जाते हैं | शिकारी वास्तव में सभी प्रकार के बड़े जानवरों को मरते हैं जिसे (बिग-गेम हंटिंग) कहते हैं | शिकार होने वालों में हाथी, भालू, गैंडे, और शेर जैसे जानवर शामिल हैं | यहाँ (ट्रॉफी हंटिंग) के अन्य प्रकार हैं जो छोटे पक्षियों और स्तनधारियों को लक्ष्य बनाते हैं | वर्तमान दौर में शिकारी जानवरों को राइफल से मारते हैं, जबकि कुछ देशों में ख़ास जानवरों का कुत्तों द्वारा शिकार करने की परंपरा है, जो न केवल पकड़ने में मदद करते हैं बल्कि शिकार को मारते भी हैं | अन्य मामलों में, शिकार धनुष और बाण, या भालों से भी मारे जाते हैं |

शिकारी जानवरों को ग्रामीण इलाकों में मारते हैं जहाँ वे रहते हैं, या जहाँ अन्य विभिन्न जानवर होते हैं उधर घूमते हैं | अन्य मामलों में, शिकारी निजी भू-भागों पर जाते हैं और मालिकों को उनकी संपत्ति पर शिकार करने के लिए भुगतान करते हैं | यह बंदी शिकार या (कैंड हंट) के नाम से जानते हैं | निजी जागीर (बाड़ों) में रखे गए जानवर कभी-कभी विशेषज्ञ (माहिर) विक्रेता द्वारा खरीदे जाते हैं, हालाँकि कई मामलों में वे सर्कस से खरीदे जाते हैं जब वे बूढ़े हो जाते हैं या प्रदर्शन करने में असमर्थ होते हैं, या चिड़ियाघरों या अन्य जानवरों वाले कार्यक्रमों से खरीदे जाते हैं | ये जानवर, जो अक्सर दब्बू और मनुष्यों से घिरे रहने के आदी होते हैं, बहुत आसानी से मारे जा सकते हैं |

सफारी (आखेट यात्रा) पर भी शिकार किये जाते हैं | ये शिकार महंगे हैं; ग्राहक कई दिनों तक शिकार कर सकते हैं, इस दौरान वे पेशेवर शिकारियों के साथ-साथ गाइड्स और बोझ धोने वालों के सतसठ होते हैं | सफारी शिकार के लक्ष्य दुर्लभ और अनोखे जानवर होते हैं |

वर्ष 2005 में, एक विवाद उठा जब एक वेब-आधारित कंपनी ने ऑनलाइन शिकार सेवा उपलब्ध करने कि घोषणा की, जो ग्राहकों को वेबकैम और रिमोट-नियंत्रित हथियारों के इस्तेमाल द्वारा जानवरों को मारना उपलब्ध करता | जानवर मारने के इस तरीके ने, “इन्टरनेट हंटिंग” को बदल दिया, जबकि कुछ भागों में व्यापक आलोचना के बावजूद वैध है |3

शिकार करने के कुछ तरीके पारंपरिक माने जाते हैं क्योंकि जिन समुदायों वे में रहते आये हैं वहां लम्बे समय से जानवरों का शिकार होता आया है, यहाँ तक कि जानवरों को पकड़ने और मारने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले तरीके परंपरा में नहीं हैं (जैसे उत्तरी अमरीकी मक्काह के लोग मोटर बोट और राइफल से व्हेल का शिकार करते हैं | ) जानवर, चाहे पारंपरिक या आधुनिक तरीकों से मारे जाएँ, किसी भी रूप में वे पीड़ित होते और मरते हैं |

शिकार करने के कुछ तरीके जबकि वैध रूप से जगह लेते हैं, बल्कि अन्य नहीं | जो अवैध रूप से शिकार करते हैं वे “पॉचेर्स” (बिना आज्ञा शिकार करने वाले) कहलाते हैं | वे ऐसा मौज या आर्थिक कारणों के लिए करते हैं | यू. एस.सहित कुछ देशों में, पॉचेर्स उतने जानवरों को मार सकते हैं जितना वैध शिकारी मारते हैं | पॉचेर्स अक्सर शिकारियों द्वारा उपहास उडाये जाते हैं, जो वैध रूप से जानवरों को मारते हैं | हालाँकि, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि जानवरों की मौत और पीड़ा चाहे वैध हो या ना हो | यदि हम अमानुष जानवरों के हितों को पूर्ण रूप से ध्यान में रखें, तो हमें वैध और अवैध दोनों, मारने के सभी प्रकारों का विरोध करना चाहिए | दोनों समान हानि के कारक हैं, और इसमें सम्मान एकसमान हैं |

संरक्षणवादी और शिकार करना

शिकार करने को उचित ठहराने का एक प्रयास यह है कि शिकारी जानवरों के साथ वही करते हैं जो जानवर एक-दुसरे के साथ | इसके विरुद्ध, यह इंगित किया जा सकता है कि अमानुष जानवर अपनी गतिविधियों से प्रतिबिंबित (प्रकट) नहीं हो सकते, जबकि मनुष्य शिकारी हो सकते हैं | किन्तु मुख्य मुद्दा यह है कि यह सत्य है कि प्राकृतिक कारणों से जंगल में यहाँ काफ़ी पीड़ा (परेशानियाँ) हैं, लेकिन इसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया उस परेशानी (पीड़ा) को बढाने वाली नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसकी बजाय, जब भी संभव हो कम करने में हो | यह वास्तविकता कि जानवर पहले से ही खास तरीकों से हानिग्रस्त हैं, और भी नुकसान पहुँचाने का कारण या प्रामाणिकता नहीं है | इसकी बजाय, हमें जानवरों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए |

अन्य मामलों में, यह तर्क दिया गया है कि जंगल में जानवरों कि जनसँख्या को विनियमित करने के लिए शिकार करना आवश्यक है | यह दावा इस विचार पर आधारित है कि अमानुष जानवरों का महत्त्व पर्यावरण में मात्र किसी इकाई या तत्त्व की तरह है |4 यह एक संरक्षणवादी दृष्टिकोण को मानता है जो पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के महत्त्व को व्यक्तिगत संवेदनशील जीवों से ज्यादा महत्व देता है | यह उद्देश्य यह पहचानने में असफल है कि जानवर पीड़ित हो सकते हैं, जबकि पारिस्थितिक तंत्र नहीं | इस मानक संरक्षणवादी स्थिति को डब्ल्यू डब्ल्यू एफ, सिएरा क्लब, नेशनल वाइल्ड लाइफ फेडरेशन, नेशनल ओदुबन सोसाइटी, वाइल्डरनेस सोसाइटी, वाइल्ड लाइफ लेजिस्लेटिव फण्ड ऑफ़ अमेरिका, उत्तरी अमरीकी वाइल्ड लाइफ फाउंडेशन, और कई अन्य संरक्षणवादी संस्थाओं से समर्थन प्राप्त है | यहाँ कई संरक्षणवादी संस्थाएं भी हैं जो विशेष तरह के शिकार करने को अस्वीकार्य करते हैं, किन्तु फिर भी अन्य का बचाव करते है क्योंकि वे पारंपरिक हैं या खास जानवर की जनसँख्या “नियंत्रित” करने के लिए ज़रूरी मानी जाती है | ऐसी संस्थाओं के उदाहरण में ग्रीनपीस और विभिन्न देशों की कई ग्रीन पार्टीज शामिल हैं |

ऐसे दृष्टिकोण प्रजातिवादी हैं, जिन्हें कहा जाता है कि, वे जानवरों के विरुद्ध अभिनत (पक्षपातपूर्ण) हैं, जबकि यह वह सामान्य रवैया नहीं है जो मनुष्यों के प्रति आमतौर पर रखा जाता है | एक पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के क्रम में मनुष्य कभी नहीं मारे गए | पारिस्थितिक तंत्र असंवेदनशील हैं: वे दर्द (पीड़ा) महसूस नहीं कर सकते, और केवल वहीँ तक महत्वपूर्ण हैं जहाँ तक वे महसूस करने वाले प्राणियों (संरचनाओं) के जीवन को बेहतर या बुरा बनाते हैं | अमानुष जानवर महसूस करने वाले प्राणी हैं | पारिस्थितिक तंत्र के ऊपर जानवरों को नैतिक प्रधानता दी जानी चाहिए | ठीक वैसे ही जैसे मनुष्यों को दी गई है | इसी वजह से खास पारिस्थितिक व्यवस्था को बचाने के लिए शिकार करना जानवरों को मारने का एक वैध (न्यायसंगत) कारण नहीं है |

जिस तरह जनसँख्या गतिशीलता काम करती है उसके कारण, जनसँख्या आकार को विनियमित करने के क्रम में जानवरों को मारना समस्यात्मक (संदेहास्पद) है, यदि विरोधात्मक न हो तो | लोत्का-वोल्तेरा समीकरण द्वारा भक्षय-भक्षक अन्योन्य क्रिया के अध्ययन के अनुसार,5 जब इस माध्यम से जानवरों की एक ख़ास आबादी घटती है, तो यह कमी केवल अस्थायी हो सकती है क्योंकि शिकारी की जनसँख्या तेज़ी से बढ़ेगी जैसे ही शिकार होना कम होगा या हट जायेगा जब तक कि यहाँ पर्याप्त संसाधन हैं | इसका अर्थ है कि स्थायी रूप में जानवरों की जनसँख्या वास्तव में कभी कम संख्या की ओर नहीं जाती | असल में, जनसँख्या दर का वास्तविक दर से पुनः न बढ़ने का एक मात्र आश्वासन इसके बचे रहने के स्तर से परे तबाह हो जाना है | शिकारी इससे जागरूक हैं, और वे दावा करते हैं कि मारना नियमित और स्थायी तौर पर होते रहना चाहिए, जैसे “घास काटना | ” “वन्यजीव प्रबंध” कार्यक्रम के नाम के साथ, विभिन्न पर्यावरणीय संस्थायें वास्तव में ख़ास तरह के जानवरों को पैदा करने को बढ़ावा देती हैं, ताकि वे शिकारियों से लाभ प्राप्त कर सकें जो उन्हें मारने के लिए भुगतान करते हैं |

कुछ मामलों में, जानवर शिकार होने के तीव्रगामी उद्देश्यों लिए नए वातावरण से परिचित कराये जाते हैं | जो जानवर ख़ास क्षेत्रों से दुसरे क्षेत्र में स्थानांतरित किये जाते हैं वे अन्य जानवरों की आबादी को तेज़ी से बीमारियाँ संचारित करते हैं | बाहरी आवासों से जानवर बीमारियाँ और प्रतिरक्षा ला सकते हैं जो स्थानीय जानवरों में नहीं है | दक्षिण अमेरिका में क्रोनिक वेस्टिंग डिजीज (एक गंभीर स्नायु सम्बन्धी स्थिति) इसका एक उदाहरण है जो स्थानीय हिरण और एल्क में कैद रहने वाले हिरण और एल्क में फैली जब वे विभिन्न क्षेत्रों में ले जाए गये | नयी बीमारियों से केवल पुरानी और नयी जनसँख्या पीड़ित नहीं होती, बल्कि जो जानवर लाये गए थे वे भी बड़े विध्वंस (निर्मूलन) के प्रति असुरक्षित होते हैं यदि बाद में वे बाहरी या आक्रामक प्रजातियाँ घोषित हो जायें |

कुछ जानवर, जैसे कि कृन्तक, लोमड़ियाँ, और सूअर शिकार किये या मारे जाते हैं क्योंकि वे “दरिंदा” या “परोपजीवी” माने जाते हैं | उनकी “परिंदा” नाम कि पदवी व्यक्तिपरक है: सीधे रूप में उनके हितों के मानवीय हितों से टकराव के कारण वे ऐसा कहे जाते हैं, जो अपेक्षाकृत नगण्य हो सकता है |6

शिकार करने के कारण जानवरों को कैसे नुकसान होता है

शिकारियों द्वारा मारे गए जानवर अपने जीवन से वंचित होते हैं, और इसके बाद भविष्य में किसी भी संभावित आनंद से | अपना जीवन खोने के अलावा, शिकार के पीड़ित पीछा करने के दौरान भय और तनाव से पीड़ित होते हैं, और जो बचते हैं वे अक्सर घायल हो जीते हैं | कभी-कभी शिकार शिशुओं के अभिभावक (माता-पिता) होते हैं, और उनके बच्चे भी, धीरे-धीरे भूख से मरने के लिए मजबूर होते हैं |

शिकार के दौरान जानवरों की पीड़ा

शिकार हुये जानवर जैसे कि हिरण अत्यंत तनाव से पीड़ित होते हैं और उन स्थितियों का अनुभव करने के लिए बाध्य होते हैं जो उनकी सामान्य सीमा से बहुत बाहर होते हैं | पीछा किये जाने पर, हिरण अपने जीवन के लिए निःशेषण (थक जाने तक) दौड़ते हैं |7 वे भय के कारण यह करते हैं, जो बढ़ता है जब वे यह महसूस करते हैं कि वे बचने में समर्थ नहीं हैं | वे सारा समय मनोवैज्ञानिक आतंक से पीड़ित रहते हैं जब तक कि वे मर नहीं जाते |

मृत्यु का भय भयानक है | हममें से अधिकतर इसे सामान्य समझ के रूप में स्वीकार करेंगे | हालाँकि, हमें प्राप्त बुद्धिमत्ता और सहज बोध पर भरोसा करने के ज़रूरत नहीं है | यह कुछ ऐसा है जो वैज्ञानिक रूप से मूल्यांकित भी है | वैज्ञानिकों ने जानवरों में तनाव के संकेतों की पहचान की है और उनका इस्तेमाल जंगल में रहने वाले खुर वाले जानवरों द्वारा अनुभव किये गए तनाव के स्तर की सीमा की जांच करते हैं |

ऐसा एक संकेतक जैसे कि कोर्टिसोल, तनाव हॉर्मोन का एक स्तर है |8 शिकार हुये जानवर कोर्टिसोल सकेन्द्रण से ग्रसित पाए गए हैं जो काफी शारीरिक और मानसिक तनाव की ओर संकेत करता है | एक अध्ययन में, शिकार किये गए हिरणों में कोर्टिसोल का स्तर उनमें पहले देखे गए किसी भी स्तर से ऊँचा था, सख्त अभ्यास के बाद भी | ऐसे स्तरों को समझाना अत्यंत कठिन है यदि हम ये निष्कर्ष न निकालें कि वे बहुत उच्च स्तर के मानसिक तनाव के कारण हैं |9 अन्य संकेतक मांसपेशीय क्षति, लाल रक्त कणिकाओं कि क्षति, ग्लाइकोजन का ह्रास जो मांसपेशियों को ऊर्जा देने के लिये ग्लूकोज में बदलता है, शामिल हैं |10

यहं वैज्ञानिकों के बीच एक आम सहमति है कि शिकार के अंतिम चरण के दौरान जैसे हिरण बार-बार अत्यंत शारीरिक प्रयास और उनकी मांसपेशियां शिथिल होना शुरू होने के समय हिरण महत्वपूर्ण रूप से पीड़ित होने के लिए उपयुक्त (संभाव्य) हैं | इसके अलावा, जांच किये गए हिरणों में उच्च शारीरिक तापमान उच्च स्तर के तनाव के साथ नियमित है, जैसा कि हिरण का शारीरिक विज्ञान लम्बे समय के तनाव के लिए ठीक से ग्राही नहीं, बल्कि दौड़ने की छोटी तीव्रताओं के लिए है |11

ये निरीक्षण सबूत उपलब्ध कराते हैं कि हिरण मानसिक तनाव के साथ-साथ शारीरिक तनाव भी अनुभव करते हैं | शिकार के दौरान, हिरण यह जारी रखें या ना रखें इसका उन्हें विकल्प नहीं होता; वे उनकी सामान्य क्षमता के परे दौड़ने के लिए बाध्य होते हैं जब तक कि वे दौड़ने में असमर्थ न हों | हिरण पकडे जाने और मौत के भय से चालित होते हैं | कुछ ऐसा ही अन्य जानवरों के साथ होता है, जैसे कि एल्क, मूसेस, और अन्य शाकाहारी जो शिकारियों द्वारा पीछा किये जाते हैं |

अन्य छोटे जानवर इतना ही पीड़ित होते हैं जब वे शिकार किये जाते हैं | यहां तक कि शिकार के दौरान मांसाहारी (मांस खाने वाले जानवर) भी अत्यंत तनावग्रस्त हो सकते हैं । लोमड़ी के शिकारियों सहित, कई शिकारी कहते हैं कि वे कुत्तों के चाहनेवाले (प्रिय) हैं | यह विरोधभासी है, चूँकि लोमड़ियाँ जैविक रूप से कुत्तों के समान हैं | हमारे पास यह मानने के कारण हैं कि दोनों प्रजातियों में दर्द और पीड़ा अनुभव करने की एकसमान क्षमता है |

लोमड़ियाँ भी पीछा कि जा सकती हैं जब तक कि वे निःशेषित (थक) न जाएँ, अनर हो सकता है मरने से पहले कई बार घायल हो जाएँ | घायल होने की दर (मारने के उलट) राइफल का इस्तेमाल करने पर 48%, और शॉटगन के इस्तेमाल पर 60% हो सकती है | यहाँ तक कि कुशल निशानेबाज़ अक्सर लक्ष्य चूक जाते हैं |12

इसके अलावा,लोमड़ियाँ भी महत्वपूर्ण रूप से पीड़ित होती हैं जब वे कुत्तों के साथ शिकार की जाती हैं | शिकारी कुत्तों द्वारा पीछा किये जाने पर, हो सकता है एक लोमड़ी भूमिगत होने का प्रयास करे | अक्सर एक टेरियर (छोटा शिकारी कुत्ता) खाड़ी पर लोमड़ी को पकड़ने के लिए गड्ढे के पास भेजा जाता है जबकि शिकारी लोमड़ी को गड्ढे से बाहर निकालते हैं | भागने में असमर्थ लोमड़ी, उच्च स्तर के तनाव का अनुभव करेगी जो समय के साथ बढ़ता है |13

जमीन के नीचे कैद रहने के दौरान, लोमड़ियों और बंदीकर्ताओं के बीच लड़ाई हो सकती है | शिकारी कुत्तों द्वारा मारी जाने वाली लोमड़ियाँ कुत्तों के अनेकों जगह काटने द्वारा गंभीर क्षति सहने से पीड़ित होती हैं |14 लोमड़ियों पर कुत्ते लगाने की क्रिया अपने आप में एक खेल बनकर उभरी है और कुत्तों की लड़ाई के समान है | कुत्तों की लड़ाई को नकारना सुसंगत नहीं है जबकि लोमड़ी का शिकार करना है |

ज़ाहिर है, लोमड़ियों के लिए पीड़ित होना अलग नहीं है | अन्य शिकारी जैसे मिंक (जो पारंपरिक रूप से अन्य देशों में शिकार किये जाते हैं), शिकार होने पर महत्वपूर्ण रूप से पीड़ित हो सकते हैं |15

छोटे जानवर जैसे कि खरगोश और शशक विश्व भर में शिकार किये जाते हैं | कुछ देशों में, उनका शिकार करने के कुछ ख़ास पारंपरिक तरीके हैं | अंग्रेज़ी भाषी राष्ट्रों में, शिकारी कुत्ते से (दौड़ाकर) शशक का शिकार करने के यहाँ दो प्रकार हैं: अनौपचारिक या “चल कर” दौड़ शिकार करना और औपचारिक या नियोजित दौड़ शिकार | चलने-फिरने वाले दौड़ शिकार में, कुत्ते किसी भी जगह उनके सामने आने वाले शशक पर लगाए जाते हैं, जबकि नियोजित दौड़ शिकार में शशक दौड़ शिकार वाले क्षेत्र में ले जाए जाते हैं |

हालाँकि शशक की मृत्यु या चोट दौड़ शिकार का प्रमुख लक्ष्य नहीं है, फिर भी यह नियमित रूप से होता है | शशकों में छाती, गर्दन, और उदरीय घाव हो सकते हैं जिससे वे धीरे-धीरे मर सकते हैं | दौड़ शिकार वाले क्लबों के पास घायल हो चुके शशकों की गर्दन तोड़ने के लिए “कुदाल” होती है |

जिन चोटों से ये जानवर पीड़ित हो सकते हैं उनमें पसलियाँ और अंग टूटना, छिद्रित उदर, एयर कई अंगों के आतंरिक आघात शामिल हैं | एक अध्ययन में यह निश्चित किया गया था कि शशकों का एक समूह जो कि घायल थे, उनमें से आधे से ठीक कम (43%) नहीं मरे जब तक कि एक व्यक्ति ने उन्हें पकड़कर उनकी गर्दन नहीं तोड़ दी | शशकों में से लगभग 50% कार्यक्रम के दौरान लगने वाली चोटों, या पकडे जाने के बाद मर गए | केवल एक शशक निश्चित रूप से कुत्तों के द्वारा मारा गया |16

दौड़ शिकार कार्यक्रम के दौरान शशकों की मौत के यहाँ कई आंकड़े हैं, जिसमें कुत्ते शशकों का पीछा करते हैं जो उनके सामने छोड़ दिए गए हैं | एक रिपोर्ट (सूचना) बताती है कि मृत्यु 48% तक हो सकती है यहाँ तक कि यदि कुत्ते जाब (मुंह जाली द्वारा बंद करना) लगा दिए जाएँ |17

आयरिश हेयर इनिशिएटिव द्वारा किये गए कार्य ने शशकों में दिए गए दौड़ शिकार कार्यक्रमों से होने वाली कैद अवस्था की पेशीविकृति (सामान्यतः एक गंभीर हृदयाघात, शरीर के अंगों में रक्त के प्रवाह में बाधा, और लीवर विघात) के प्रभाव का अध्ययन किया, और पाया कि स्थिति गंभीर तनाव के रूप में उभरती है और पीछा किये जाने, संभाले, भेजे जाने, और पकडे जाने का भय, जिनमें से सभी जंगली शशक के लिए अत्यंत तनावपूर्ण अनुभव हैं |18

दौड़ शिकार कार्यक्रम के दौरान, उसके छूटने के तुरंत बाद, शशक रुक जायेगी, इसलिए नहीं कि वह “कुत्तों के लिए इंतजार” कर रही है जैसा संचालकों ने बताया है, बल्कि शशक पकडे जाना उम्मीद नहीं कर रही है | शशक के दौड़ शिकार में इस्तेमाल के लिए पकडे जाने के समय से उसके छूटने तक, छूटने के उसके सामान्य तरीके उपलब्ध नहीं हैं | यह शशक के लिए अन्दर रहने की एक असामान्य स्थिति है,19 और खासतौर से संभावित तनावपूर्ण | इसके अतिरिक्त, हिरणों की तरह, शिकारियों से बचने के लिए शशक कम समय में बहुत तेज़ी से तेज़ दौड़ के लिए विकासवादी रूप से अनुकूलित हैं | दौड़ शिकार कार्यक्रम के दौरान, उन्हें लम्बे समय के लिए दौड़ना होता है, जो उनमें दीर्घकालीन तनाव का कारक होता है |20 हालाँकि, यहाँ तक कि यदि ऐसी तनावपूर्ण स्थिति शशक के लिए सामान्य भी होती, तो इस तरह की स्थिति जानबूझ कर पैदा करना न्यायोचित नहीं होगा |

भागने (छूटने) में कामयाब होने वाले जानवरों को होने वाली हानियाँ

कभी-कभी शिकारी अपने शिकार को पाने से पहले उनका पता लगाने में घंटों बिताते हैं | यह खासतौर से अक्सर धनुष वाले शिकारियों के साथ होता है | अक्सर वे भाग चुके जानवरों को खोजने में असमर्थ होते हैं, जो फिर वे यंत्रणा में धीमी मौत मरते हैं | धनुष इस्तेमाल करने वाले शिकारियों द्वारा पुनः पाए गए जानवरों की संख्या के आंकड़ों ने बताया है कि घायल हुये जानवरों का 28% से 50% के बीच जानवर कभी नहीं मिले |21

बच निकलने वाले जानवर पीड़ा से मुक्त नहीं हैं | होर्मोन्स के स्तर में बढ़ोत्तरी, पेशीय क्षति और मानसिक तनाव के सूचक, बच निकले हिरणों और कैद हिरणों में एकसमान हैं |22

इसके अलावा, कई जानवर जो शिकारियों से बच जाते हैं, अन्य कारणों से मरते हैं | बाधाओं से बचने के प्रयास में घबराहट में भागने के दौरान नीचे गिरने से वे खुद को घायल कर सकते हैं | वे उपनगरीय इलाकों या सडकों की ओर भी भाग सकते हैं जहाँ वे कारों या अन्य मनुष्यों द्वारा मारे जाते हैं |

जब घायल जानवर भागने में सफल होते हैं, तो उन्हें चोटों के साथ रहना होता है जो उन्हें लगी हैं, जो अक्सर चिरकालिक (गहरा) होता है | वो जो अंततः अपनी चोटों से मरते हैं हो सकता है अपना बाकी जीवन यंत्रणा में बितायें |

एक घायल जानवर को मरने में हफ़्तों लग सकते हैं | इन जानवरों में से अधिकतर अपनी चोटों से नहीं बल्कि सामान्य गतिविधियाँ करने में अपनी असमर्थता के परिणामस्वरूप मरते हैं | कई सीधे भूखे रहते हैं क्योंकि उनके घाव उन्हें भोजन खोजने से रोकते हैं |

आख़िरकार, जानवर जो शिकारियों से डरते हैं इन मामलों की तरह, जो जानवर शिकारियों के संपर्क में रह चुके हैं, वे जितना हो सके मनुष्यों से बचते हैं | क्योंकि वे शिकार हो जाने से डरते हैं, वे उन जगहों में खाने का ख़तरा नहीं उठाएंगे जहाँ वे ज्यादा दिखाई दें, और इसके परिणामस्वरूप हो सकता है वे कुपोषण से पीड़ित हों | पारिस्थितिकी में यह “भय की पारिस्थितिकी” कहलाता है और यह तब होता है जब संभावित शिकार जानवर शिकारियों से भयभीत होते हैं | यह मनुष्य शिकारियों के साथ भी हो सकता है |23

शिकार करने के लिए प्रयोग में आने वाले कुत्ते (कुत्तों का इस्तेमाल)

दूसरे जानवर जो शिकार् करने के दौरान पीड़ित हो सकते हैं वे इस गतिविधि में इस्तेमाल होने वाले कुत्ते हैं | आमतौर पर वे बेच दिए जाने के लिए पैदा किये और उनकी माओं से अलग कर दिए जाते हैं जब वे बहुत छोटे होते हैं | जब वे और ज्यादा उपयोग के लायक नहीं होते तो वे बेचे, नष्ट या मारे, और कभी-कभी पेड़ से लटकाए जा सकते हैं | कभी-कभी जंगल में शिकार के दौरान खो चुके कुत्ते (जहाँ बचने के अवसर सीमित हो सकते हैं) पुनः लौट के नहीं आते |

इसके अलावा, वे अक्सर कठोर मौसमी परिस्थितियों से पीड़ित होते हैं | वे अत्यधिक सर्दी और गर्मी से पीड़ित होते हैं जब वे उन जगहों पर ले जाए जाते हैं जहाँ वे शिकार किये जायेंगे | शिकार उनके लिए भी घातक हो सकता है | पीछा किये जाने वाले जानवर उल्टे आक्रमण कर सकते हैं | उदाहरण के लिए, लोमड़ियों के शिकार में, कुत्ते भयानक रूप से चोटिल हो सकते हैं यदि एक लड़ाई हो जाए | कभी-कभी वे शिकार के लक्ष्य से चूक का शिकार हो जाते हैं, और उन्हें गोली लग जाती है |


आगे की पढ़ाई

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नोट्स

1 U. S. Department of the Interior, Fish and Wildlife Service & U. S. Department of Commerce, U.S. Census Bureau (2002) 2001 National Survey of Fishing, Hunting, and Wildlife-Associated Recreation, [Washington]: U. S. Department of the Interior, Fish and Wildlife Service [अभिगमन तिथि 26 फ़रवरी 2013].

2 यह आकलन किया गया है कि यू एस ए में हर साल लगभग 200 मिलियन जानवर शिकार किए जाते हैं, हालांकि वह आंकड़ा अधिक हो सकता है। देखिए: In Defense of Animals (2015) “Hunting – the murderous business, Hunting, In Defense of Animals [अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2015].

3 Seward, Z. M. (2007) “Internet hunting has got to stop – if it ever starts”, The Wall Street Journal, August 10 [अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2013].

4 Johnson, E. (1981) “Animal liberation versus the land ethic”, Environmental Ethics, 3, pp. 265-273. Crisp, R. (1998) “Animal liberation is not an environmental ethic: A response to Dale Jamieson”, Environmental Values, 7, pp. 476-478. Shelton, J.-A. (2004) “Killing animals that don’t fit in: Moral dimensions of habitat restoration”, Between the Species, 13 (4) [अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2013].

5 Lotka, A. J. (1920) “Analytical note on certain rhythmic relations in organic systems”, Proceedings of the National Academy of Sciences of the United States of America, 6, pp. 410-415 [अभिगमन तिथि 20 जनवरी 2020]. Volterra, V. (1931) “Variations and fluctuations of the number of individuals in animal species living together”, Chapman, R. N. (ed.) Animal ecology: With special reference to insects, New York: McGraw-Hill. उदाहरण के लिए इस परभक्षी (शिकारी) – शिकार प्रतिमान (मॉडल) या इस परभक्षण – शिकार समीकरणों को देखें

6 Young, S. M. (2006) “On the status of vermin”, Between the Species, 13 (6) [अभिगमन तिथि 14 जनवरी 2016].

7 Bateson, P. & Bradshaw, E. L. (1997) “Physiological effects of hunting red deer (Cervus elaphus)”, Proceedings of the Royal Society B: Biological Sciences, 264, pp. 1707-1714 [अभिगमन तिथि 20 अप्रैल 2020].

8 Mentaberre, G.; López-Olvera, J. R.; Casas-Díaz, E.; Bach-Raich, E.; Marco, I. & Lavín, S. (2010) “Use of haloperidol and azaperone for stress control in roe deer (Capreolus capreolus) captured by means of drive-nets”, Research in Veterinary Science, 88, pp. 531-535.

9 White, P. J.; Kreeger, T. J.; Seal, U. S. & Tester, J. R. (1991) “Pathological responses of red foxes to capture in box traps”, The Journal of Wildlife Management, 55, pp. 75-80.

10 Rochlitz, I. & Broom, D. M. (2008) An update of ‘The review on the welfare of deer, foxes, mink and hares subjected to hunting by humans’, London: International Fund for Animal Welfare.

11 Bateson, P. & Bradshaw, E. L. (1997) “Physiological effects of hunting red deer (Cervus elaphus)”, op. cit.

12 Fox, N. C.; Rivers, S.; Blay, N.; Greenwood, A. G. & Wise, D. (2003) Welfare aspects of shooting foxes, London: The All Party Parliamentary Middle Way Group.

13 Broom, D. M. (1991) “Animal welfare: Concepts and measurement”, Journal of Animal Science, 69, pp. 4167-4175. Rochlitz, I. & Broom, D. M. (2008) An update of ‘The review on the welfare of deer, foxes, mink and hares subjected to hunting by humans’, op. cit.

14 Committee of Inquiry into Hunting with Dogs in England and Wales (2000) The Final Report of the Committee of Inquiry into Hunting with Dogs in England and Wales, Norwich: TSO [अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2013].

15 Hartup, B. K.; Kolias, G. V.; Jacobsen, M. C.; Valentine, B. A. & Kimber, K. R. (1999) “Exertional myopathy in translocated river otters from New York”, Journal of Wildlife Diseases, 35, pp. 542-547 [अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2020].

16 Committee of Inquiry into Hunting with Dogs in England and Wales (2000) The Final Report of the Committee of Inquiry into Hunting with Dogs in England and Wales, op. cit.

17 Rendle, M. (2006) “The impact of enclosed hare coursing on Irish hares”, BanBloodSports.com [अभिगमन तिथि 18 जून 2013].

18 Rendle, M. & Irish Hare Initiative (2006) “Stress and capture myopathy in hares”, BanBloodSports.com [अभिगमन तिथि 18 जून 2013].

19 Rendle, M. (2006) “The impact of enclosed hare coursing on Irish hares”, op. cit.

20 Reid, N.; McDonald, R. A. & Montgomery, W. I (2007) “Factors associated with hare mortality during coursing”, Animal Welfare, 16, pp. 427-434.

21 Ditchkoff, S. S.; Welch, E. R., Jr.; Lochmiller, R. L.; Masters, R. E.; Starry, W. R. & Dinkines, W. C. (1998) “Wounding rates of white-tailed deer with traditional archery equipment”, Proceedings of the Southeastern Association of Fish and Wildlife Agencies, 52, pp. 244-248. Pedersen, M. A., Berry, S. M. & Bossart, J. C. (2008) “Wounding rates of white-tailed deer with modern archery equipment”, Proceedings of the Southeastern Association of Fish and Wildlife Agencies, 62, pp. 31-34.

22 Bradshaw, E. L. & Bateson, P. (2000) “Welfare implications of culling red deer (Cervus elaphus)”, Animal Welfare, 9, pp. 3-24.

23 Horta, O. (2010) “The ethics of the ecology of fear against the nonspeciesist paradigm: A shift in the aims of intervention in nature”, Between the Species, 13 (10), pp. 163-187 [अभिगमन तिथि 5 जुलूस 2013].