जिस दुनिया में हम रहते हैं, वहाँ बहुत भेदभाव है , कई तरह के ।प्रजातिवाद भेदभाव का एक रूप है। भेदभाव तब होता है जब किसी को कम नैतिक विचार दिया जाता है या अनुचित कारण से बदतर व्यवहार किया जाता है ।1 कुछ इंसानों के साथ उनके लिंग, त्वचा के रंग , यौन वरीयता और कई अन्य कारणों के आधार पर भेदभाव होता है ।
जब हम किसी को नैतिक विचार देते हैं, तो इसका सीधा मतलब है कि हम इस बात को ध्यान में रखते है कि वे हमारे कार्यों और चूक, दृष्टिकोण और निर्णय से कैसे प्रभावित होंगे । नैतिक विचार कि आवश्यकता केवल भावुक (सचेत) प्राणियों कि ही आवश्यकता नहीं हैं । कुछ लोग इस तरह की चीजो़ को नैतिक विचार देते हैं जैसे पारिस्थितिकी तंत्र या प्रजातियाँ , हालांकि आम तौर पर नैतिक विचार केवल जागरूक प्राणियों को दिया जाता है ।हम दूसरों की तुलना में कुछ प्राणियों को अधिक या कम नैतिक विचार दे सकते हैं । प्रजातिवाद अलग अलग भावुक प्राणियों को अलग अलग नैतिक विचार दे रहे हैं ।
जिनके साथ भेदभाव किया जाता है उनका अक्सर शोषण किया जाता है । दूसरों के साथ भेदभाव करना संभव है लेकिन फिर भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए । हालाँकि , किसी के साथ ज्यादा अच्छे से पेश आना और किसी के साथ कम यह भेदभाव है दूसरों के लिए मनमानी और इसलिए त्वचा के रंग और यौन वरियता के आधार पर भेदभाव करना अन्याय है ।
प्रजातिवाद भेदभाव का एक रूप है – उनके खिलाफ भेदभाव जो एक निश्चित प्रजाति से संबंधित नहीं हैं । अधिकांश मानव समाजों में, अन्य प्रजाति के जानवरों के साथ भेदभाव करना पूरी तरह से सामान्य माना जाता है। जिस तरह से यह भेदभाव होता है और इसकी गंभीरता जगह-जगह से भिन्न होती है , और कुछ जानवरों को कुछ जगहों पर दूसरों की तुलना में बदतर माना जाता है । उदाहरण के लिए कुत्ते, गाय और डाल्फि़न दूसरों की तुलना में कुछ समाजों में बहुत अलग तरीके से माने जाते हैं । एक बात ज्या़दातर समाजों में आमहै कि वे कम से कम कुछ प्रजातियों के खिलाफ़ बहुत हानिकारक तरीकों से भेदभाव करते हैं । प्रजातिवाद इतना सामान्य है कि अधिकांश लोग उन मामलों को छोड़कर इस पर सवाल नहीं उठाते हैं जहाँ उनकी संस्कृति में भेदभाव का प्रकार या डिग्री असामान्य हैं । परिमाणस्वरूप , मनुष्य रोजमर्रा की जिंदगी में जानवरों पर अमानवीय शोषण करते हैं , उनका संसाधनों के रूप में उपयोग करते हैं । यह कई तरह से होता है ।
अमानवीय जानवरों को भोजन के रूप में खाया जाता है , कपडे़ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तड़पाया जाता है , मनोरंजन के लिए , काम के लिए शोषित और मार डाला जाता है ताकि उनके शरीर के अंगों को कच्चे के रूप में सौंदर्य प्रसाधन और अन्य उपभोक्ता उत्पादों के लिए इस्तेमाल किया जा सके । वे अनिवार्य रूप से दास हैं ।
यहाँ तक कि जब जानवरों का शोषण नहीं किया जाता है, तब भी वे प्रजातिवाद के शिकार होते हैं । उनके साथ भेदभाव किया जाता है क्योंकि उन्हें गंभीरता से विचार नहीं किया जाता हैं ।2 मनुष्य की पास जानवरों कि ओर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण हैं । कुछ ऐसे हैं जो जानवरों का किसी भी प्रकार से सम्मान नही करते हैं । कुछ अल्पसंख्यक व्यक्ति ध्यान भी नहीं देते कि जानवरों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए और तब भी चिंतित नहीं है जब जानवरों पर व्यर्थ अत्याचार होता है । इस दृश्य का एक कम चरम संस्करण उन लोगों द्वारा दिखाया गया है जो कुछ असामान्य तरीकों से या केवल मजे़ के लिए जानवरों पर अत्याचार करने का विरोध करते हैं फिर भी यह नहीं सोचते कि जानवर इन्हीं लोगों के वजह से पीड़ित होते हैं जब तक इंसानों को इनसे लाभ होता है ।
कुछ अन्य हैं जो जानवरों का सम्मान करते हैं, लेकिन फिर भी उनके साथ भेदभाव करते हैं और मनमाने ढंग से उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं क्योंकि वे मानव प्रजाति के सदस्य नहीं हैं । वही चीज़ नस्लवादी नजरिए से देखी जा सकतीहै, मानव दासता के खिलाफ हो सकता है लेकिन फिर भी नस्लवादी हो सकता है ।3
आम तौर पर यह सोचा जाता था कि केवल मनुष्य ही पूर्ण नैतिक विचार के लायक होता है , जो कि प्रजातिवाद है । अक्सर, एक जानवर को नुकसान ,जाता है अगर वो मनुष्य के लिए कुछ लाभ लाएगा – चाहे वो कितना ही छोटा क्यों न हो । और भले ही मनुष्यों का, जिनको मदद की आवश्यकता है की मदद करना अच्छी बात मानी जाती है पर जब एक अमानवीय जानवर को मदद की ज़रूरत होती है , तो उन्हें अक्सर उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है । यह विशेष रूप से प्रकृति में रहने वाले अमानवीय जानवरों के मामलों मे होता है ।
किसी के साथ भेदभाव करने के लिए किसी को ना ही नफरत करनी चाहिए और ना ही नुकसान पहुँचाना चाहिए और ना ही परपीड़क चरित्र होना चाहिए ।4 अमानवीय जानवरों के खिलाफ भेदभाव बस एक महत्व ना देने का मामला है , उन हानियों या लाभों को महत्व ना देना और उनके प्रति व्यवहार जो हम पर एक परिणामस्वरूप आ सकता है । इसके अतिरिक्त , कुछ जानवरों के साथ मानव की तुलना में भेदभाव नहीं किया जाता है बल्कि अमानवीय जानवरों से तुलना की जाती है । उदाहरणस्वरूप किसी को सूअरों की तुलना में कुत्तों को, अन्य जानवरों की तुलना में स्तनधारियों के लिए ज्या़दा सम्मान होता है उन स्थितियों में कम सम्मान दिए जाने वाले प्राणियों को परिणामस्वरूप नुकसान पहुँचाया जाता है । उदाहरण के लिए , कोई भोजन के लिए कुत्तों और बिल्लियों के उपयोग को अस्विकार कर सकता है (कुछ देशों में स्वीकार्य अभ्यास) पर मुर्गियों और मछलियों के उपभोग को स्वीकार करते हैं ।5 यह प्रजातिवाद भेदभाव का भी एक रूप है क्योंकि सभी संवेदनशील जानवरों में रुचि नहीं रखते उन प्रजातियों कि परवाह नहीं करते जिनसे वह संबंधित नहीं हैं ।
प्रजातिवाद का एक रूप जिस तरफ अक्सर ध्यान नहीं जाता वो है छोटे जानवरों के प्रति भेदभाव । सामान्य तौर पर , हमारे पास छोटे जानवरों की देखभाल करने के लिए मनोवैज्ञानिक स्वभाव। कई लोग घोडे़ को एक चूहे से ज्यादा योग्य मानते है , चूहे के सापेक्ष आकार के कारण ।6 हमारे पास यह सोचने की प्रवृत्ति है कि छोटे जानवर कम जागरूक हैं, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं हैं ।
इन दिनों , नस्लवाद और लिंगवाद का अभी भी कुछ लोगों द्वारा बचाव किया जाता है । हाँलाकि, हम में से कई उन्हें अस्वीकार करते हैं मनमाना भेदभाव करते हैं । सवाल यह है कि हम नस्लवाद और लिंगभेद का विरोध कैसे कर सकते हैं परंतु प्रजातिवाद को कैसे स्वीकार करें ।7
प्रजातिवाद का बचाव करने के लिए दिए गए कारणों मे से कोई भी वास्तव में इसे सही नहीं ठहरा सकता है । कभी–कभी ऐसा होता है कि हम गैर-जानवरों के खिलाफ भेदभाव सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि वो मानव नही हैं । लेकिन यह केवल एक जैविक परिस्थिति है , जैसे कि एक लिंग या अन्य या एक निश्चित त्वचा का रंग या अन्य । यह पूरी तरह से मनमाना है और भेदभाव को उचित नही ठहरा सकता । कभी-कभी यह माना जाता है कि मनुष्य अमानवीय जानवरों की तुलना में अन्य मनुष्य के लिए अधिक सहानुभूति रखता है । लेकिन यह उचित कारण नही है जो अमानवीय जानवरों के खिलाफ भेदभाव को दर्शाता है । जे़नोफोबिक और नस्लवादी लोग कुछ मनुष्यों के लिए दूसरों कि तुलना में अधिक सहानुभूति महसूस करते हैं । लेकिन यह उनके रवैये को सही नही ठहराता ।
दूसरे लोग दावा करते हैं कि हम दूसरे जानवरों के साथ भेदभाव कर सकते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि मानव बुद्धि जैसी नहीं हैं । लेकिन यह इस तथ्य के लिए जिम्मेदार नहीं है कि कई मनुष्यों के पास समान प्रकार या स्तर की बुद्धि नहीं है। छोटे बच्चे और जो संज्ञानात्मकता रूप से अक्षम है, उदहारण के लिए, उनके पास वह नहीं है जब हम “मानव बुद्धि” की बात करते हैं ।सौभाग्य से कई लोग इन आधारों पर मनुष्य के साथ भेदभाव का विरोध कर रहे हैं । लेकिन अगर बुद्धि कुछ मनुष्यों को दूसरों की तुलना में बुरा व्यवहार करने का औचित्य साबित नही कर सकती है, तो यह अमानवीय जानवरों के मनुष्यों से भी बदतर व्यवहार का औचित्य साबित करने का औचित्य साबित करने का कारण नहीं हो सकता है ।
जब दूसरों का सम्मान करने की बात आती है, तो हम जो कुछ भी ध्यान में रखना चाहिए, वह है सकारात्मक और नकारात्मक अनुभव , जैसे कि आनंद,संतोष और पीडा़ । इसलिए, यदि अमानवीय जानवर दुख और आनंद का अनुभव कर सकते हैं, तो हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें नुकसान न पहुँचाने की कोशिश करनी चाहिए । उन्हें सम्मान देने से इनकार करना क्योंकि वे हमारी प्रजाति से संबंधित नहीं हैं, या उनके पास हमारी अपनी बुद्धि के समान बुद्धि नहीं हैं, भेदभाव है । यदि हम वास्तव में निष्पक्ष हैं, तो हम प्रजातियों पर आधारित सभी भेदभावों को अस्वीकार कर देंगे ।
मनुष्यों के महान बहुमत या तो अमानवीय जानवरों के खिलाफ भेदभाव को अनदेखा करते हैं या बचाव करते हैं ? इनके कारण सरल हैं । सबसे पहले, हमें बचपन से यह सिखाया जाता है कि अन्य प्रजातियों के जानवर हीन प्राणी हैं जो बहुत विचार के लायक नहीं हैं । दूसरा, हम अमानवीय जानवरों के शोषण से लाभान्वित होते हैं, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों के रूप मैं उनके शरीर और तरल पदार्थों का सेवन करने में । इसलिए हमारे पास इन विश्वासों को चुनैती देने के लिए बहुत कम प्रोत्साहन है । हमारी मान्यताएं अन्य जानवरों का शोषण करने के लिए स्वीकार्य है , और उनके शोषण से प्राप्त होने वाले लाभ हमारी मान्यताओं को प्रेरित करते हैं । प्राप्त ज्ञान को स्वीकार करना सुविधाजनक है कि अन्य जानवर हीन हैं और इसे “स्पष्ट ” के रूप में स्वीकार करना है । लेकिन इस तरह के विचार को उचित नही ठहराया जा सकता ।
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2 जानवरों पर अत्याचार के विरुद्ध लेकिन प्रजातिवाद के बचाव की स्थिति का एक उदहारण इस किताब में पाया जा सकता है : Zamir, T. (2007) Ethics and the beast: A speciesist argument for animal rights, Princeton: Princeton University Press.
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5 Burgess-Jackson, K. (1998) “Doing right by our animal companions”, Journal of Ethics, 2, pp. 159-185.
6 Morton, D. B. (1998) “Sizeism”, Bekoff, M. & Meaney, C. (eds.) Encyclopedia of animal rights and animal welfare, op. cit., p. 318.
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