मनुष्यों द्वारा मधुमक्खियों का शोषण

मनुष्यों द्वारा मधुमक्खियों का शोषण

शहद1 और अन्य उत्पाद बनाने हेतु मधुमक्खियों की बड़ी संख्या मनुष्यों द्वारा उनके शोषण से कई तरीकों से पीड़ित होती है ।

कई लोग सोच सकते हैं कि मधुमक्खियां पीड़ित नहीं होती हैं । हालांकि, उपलब्ध सभी साक्ष्य दर्शाते हैं कि, कई दूसरे अकशेरुकियों की तरह जिनके पास केंद्रीयकृत तंत्रिका तंत्र है, उनमें पीड़ा और आनंद2 महसूस करने की क्षमता है । इसके अलावा, जैसा कि अन्य जानवरों के साथ होता है, वे कई रूपों में मानवीय लाभ के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं जिसके प्रति कई लोग जागरूक नहीं हैं । उनका शोषण बड़ी संख्या में मधुमक्खियों के लिए पीड़ा और मौत का कारक होता है । यह मुख्य रूप से शहद के साथ होता है, जो मधुमक्खियां पराग (रस) निगल कर पैदा करती हैं और फ़िर इसे बार – बार उगलती हैं । मधुमक्खियों से शहद निकालने के लिए, इन जानवरों को कई तरीकों से हानि पहुंचाई जाती है और बड़ी संख्या में मारे जाते हैं ।

कई अन्य अकशेरूकियों के जैसे, मधुमक्खियां पीड़ित हो सकती है

यहां कई लोग हैं जो सोचते हैं कि, हालांकि कई जानवर पीड़ित होते हैं, अकशेरूकी भी पीड़ित होते हैं ऐसा मानने के लिए यहां कोई कारण नहीं हैं । यह विश्वास समय के परे है क्योंकि ज़्यादातर लोगों के पास इन जानवरों के बारे में बहुत कुछ सीखने के अवसर नहीं थे । हालांकि, जब हम मुद्दे की जांच करते हैं और उपलब्ध सभी वैज्ञानिक सबूतों पर नज़र डालते हैं तो हम पाते हैं कि ये अनुमान मुश्किल से सही हो सकते हैं । यहां कई अकशेरुकी हैं जो सचेतन होने की किसी भी उचित आश्यकता को साफ़ तौर पर पूर्ण करते हैं, जो कि अनुभव होना और फिर पीड़ा और आनंद महसूस करना है । जैसे कि ऑक्टोपस3 इनके बीच के जानवर हैं । अन्य अकशेरुकियों के मामले में हो सकता है हमारे पास इस विषय में कम सबूत उपलब्ध हों । हालांकि, इस निष्कर्ष के लिए कि वे सचेत हैं, सबूत काफ़ी है ।

मधुमक्खियों के मामले में ऐसा होता है । इन जानवरों के पास तंत्रिका तंत्र है जिसमें मस्तिष्क शामिल है, जैसे बिल्कुल अन्य कीटों, संधिपादों जैसे कि क्रस्टेशिया, और अन्य अकशेरुकी जानवरों में होता है । इसके अतिरिक्त, ये जानवर एक अद्भुत संयुक्त (जटिल) व्यवहार प्रदर्शित करते हैं । वे अलग – अलग शारीरिक गतिविधियों (नृत्य रूप में भी) द्वारा एक दूसरे से संवाद करते हैं, उन्हें फूलों की स्थिति और पराग चुनने की जगह के बारे में बताने के लिए । उनके पास बहुत अच्छी याददाश्त है जिससे याद रख पाते हैं कि कहां फूल हैं और कहां मधुमक्खी के छत्ते । यहां तक कि मधुमक्खियां भोजन के नए स्रोत के अपने रास्ते में हवा के बहाव के कारण अपनी उड़ान भी ठीक करती हैं जिस बारे दूसरी मधुमक्खी ने बताया था ।4 जैसा कि हमने अपने भाग (खण्ड) प्रासंगिकता से तर्क में समझाया है, यह वह नहीं है जो सम्मान दिए जाने के क्रम में मायने रखना चाहिए । जो मायने रखता है वह यह तथ्य है कि चेतनाशील हैं । हालांकि, उनमें ये क्षमताएं नहीं हो सकतीं यदि वे सकारात्मक या नकारात्मक अनुभव प्राप्त करने में सक्षम नहीं होतीं । इसलिए, यह तथ्य कि उनमें ये क्षमताएं हैं, हमें यह निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है कि वे पीड़ा और आनंद का अनुभव करने में समर्थ हैं । ज़ाहिर है, यह केवल मधुमक्खी के मामले में नहीं होता है । ये जानवर अन्य अकशेरूकियों से करीब से संबंधित हैं । इसलिए यदि हम निष्कर्ष निकालें, जैसे सबूत हमें बाध्य करते हैं, की वे चेतनाशील हैं, तो हमारे पास यह निष्कर्ष निकालने के मजबूत कारण हैं कि कई अन्य अकशेरुकी भी चेतनाशील हैं । यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जानवरों की ज़बरदस्त बहुलता अकशेरुकी है और कई लोग उनकी तब भी उपेक्षा करते हैं । निःसंदेह, उनमें से कुछ (जैसे कि स्पोंगेस) पीड़ित नहीं हो सकते क्योंकि उनमें तंत्रिका तंत्र नहीं है, और अन्य (जैसे कि जेलीफिश) भी पीड़ित नहीं हो सकते क्योंकि उनमें केवल रेडियल (परिधीय) तंत्रिका तंत्र है जो केंद्रीयकृत नहीं हैं (पीड़ित होने के लिए केंद्रीयकृत तंत्रिका तंत्र आवश्यक है) । किन्तु यहां कई अन्य अकशेरुकी हैं जिनमें केंद्रीयकृत तंत्रिका तंत्र है और पीड़ित होते हैं ।

शहद और अन्य उत्पाद बनाने में मधुमक्खियां कैसे इस्तेमाल की जाती हैं

शहद मधुमक्खियों द्वारा पराग (रस) निगलने, इसे उगलने और कई बार इस प्रक्रिया को दोहराने पर उत्पादित किया जाता है । इस प्रक्रिया के दौरान उनके आंतरिक तंत्र पराग (रस) में किण्वक मिलाते हैं । मधुमक्खियां कक्ष में उगलकर मधुकोश में शहद जमा करते हैं । फिर आंतरिक कलश मोम से “ढका” रहता है । इस प्रक्रिया में समय लगता है जिससे भविष्य में मधुमक्खी शहद का उपभोग कर सके । एक चाय की चम्मच बराबर शहद बनाने के लिए एक पूर्ण जीवनकाल में लगभग 12 कार्य करने वाली मधुमक्खियां लगती हैं । एक पौंड शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों को 2 मिलियन से अधिक फूलों तक जाना होता है ।5

मधुमक्खियों का शोषण ख़ासतौर से शहद के निस्सारण के लिए किया जाता है, जो बड़ी मात्रा में बेचा जाता है । अन्य उत्पादों का उपयोग भी मधुमक्खियों के शोषण को आवश्यक कर देता है, और इसे लाभदायक बनाने में योगदान देने के लिए उन्हें मारने सहित कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है ।

अधिक आसानी से शहद निकालने के लिए कभी – कभी मधुमक्खी के छत्तों को गर्म किया जाता है जबकि ये बनाए जाने की संरचना में होते हैं । हालांकि, अक़्सर कई मधुमक्खियां शहद के साथ पहुंचाई जाती हैं और ये सीधे मारी जाती है । मधुमक्खी शोषण में शामिल एक लेखक लिखता है कि “यदि यहां कमरे में कोई खिड़की नहीं है तो अन्य विधियां जैसे कि एक विद्युत जाली भटकी हुई मधुमक्खियों के निपटारे के लिए प्रयोग की जा सकती है । .6

जब मधुमक्खियों से शहद लिया जाता है और वे मारी नहीं जाती हैं, तो मधुमक्खियां उनके भोजन के बिना रह जाती हैं । इसके विकल्प के रूप में, जिन मधुमक्खियों से शहद लिया जा चुका है उन्हें पानी और शक्कर से भरण (खिलाया जाना) किया जाता है । किन्तु मधुमक्खियों के लिए शक्कर शहद की तरह उपयुक्त नहीं है, और इससे वे ठीक प्रकार से पाली – पोसी नहीं जातीं ।

केवल शहद ही मधुमक्खियों के शोषण से प्राप्त होने वाला उत्पाद नहीं है अन्य उत्पाद जिनके लिए मधुमक्खियां इस्तेमाल की जाती हैं उनमें वेनोम, बी पॉलन, रॉयल जेली, प्रोपोलिस और वैक्स सहित सभी उत्पाद मधुमक्खियों से बनते हैं ।7

पराग

मधुमक्खी पराग मधुमक्खियों द्वारा उनके पैरों के कोश में संकलित पराग है । मधुमक्खियां इसे फूलों से चुनती हैं और अपने बच्चों को खिलाने के लिए इस्तेमाल करती हैं । मधुमक्खी पकड़ने वाले छत्तों के प्रवेश द्वार पर उपकरण लगाते हैं जो इस पराग का कुछ भाग रोक लेता है, जो फिर मानव भोजन के लिए उपयोग हेतु बेच दिया जाता है (हालांकि कुछ के लिए यह एलर्जी का कारण हो सकता है) ।8 इस तरह मधुमक्खियां अब भी अपने बच्चों को भोजन कराने में समर्थ होती हैं, किन्तु चूंकि उनके पास कम मात्रा में भोजन है उन्हें ऐसा करने के लिए और अधिक कार्य करना होता है । मनुष्यों द्वारा संग्रहीत पराग का इस्तेमाल लोकप्रिय हुआ है क्योंकि मनुष्यों ने पराग के विभिन्न प्रकारों का संग्रह करने के वैसे तरीके विकसित नहीं किए हैं जैसा मधुमक्खियां कर सकती हैं । यह समय के साथ किया जा सकता है, किन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है जब तक सहूलियत के लिए मधुमक्खियों का इस्तेमाल हो रहा है ।9

मधुमक्खी विष

मधुमक्खी विष मधुमक्खी के किसी को या कहीं डंक मारने पर प्राप्त किया जाता है । अब यह चिकित्सा उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल किया जाता है । आमतौर पर किसी को डंक मारने पर मधुमक्खी मर जाती है । मधुमक्खी विष प्राप्त करने के पारंपरिक तरीक़े का अर्थ है बड़ी संख्या में मधुमक्खियों की मौत । वर्तमान में और विकसित तरीक़े केवल मधुमक्खियों की संख्या को कम करते हैं, जबकि यहां हमेशा ऐसे शिकार होते हैं जो इसके कारण मरते हैं । इसके लिए विष संग्राहक उपकरण वर्तमान में उपयोग में लाई जाती हैं । वे छत्तों के प्रवेश द्वार पर लगी होती हैं । जब मधुमक्खियां इस तक पहुंचती है, तो ये उपकरण मधुमक्खियों को संग्राहक फलक (पर्ण) पर डंक मारने के लिए विद्युतीय झटके देती हैं; जिससे बाद में विष प्राप्त किया जाता है ।

मधुमोम

मधुमोम मधुमक्खियों के पेट के नीचे ग्रंथियों का निस्सारण है, जो फिर उनके द्वारा चबाया जाता है । मधुमक्खियों के लिए मोम का उत्पादन बहुत मांग में है । एक निश्चित मात्रा में मोम का उत्पादन करने के लिए मधुमक्खी को कम से कम शहद का आठ गुना उपभोग करना ज़रूरी होता है । हालांकि, उन्हें यह चाहिए क्योंकि वे इसका उपयोग छत्ते बनाने में करती हैं । यह कोई भी बड़ा छेद बंद करने में भी इस्तेमाल होता है जो छत्ते में खुला हो ।

यह उनसे मोमबत्ती और श्रृंगार के समान के उत्पादन हेतु लिया जाता है, साथ ही साथ कुछ भोज्य उत्पाद और औषधि बनाने में । पुनः, यह मजबूर करता है कि मधुमक्खियों को उनसे लिए जाने वाले मोम की पूर्ति करने के लिए और भी ज़्यादा मोम उत्पादित करना होगा ।10

प्रोपोलीस (छत्ते में मधुमक्खियों का गोंद)

प्रोपोलीस एक पदार्थ है जो मधुमक्खियां उनके छत्ते बनाने में छत्ते के छोटे छिद्रों को बंद करने में गोंद के रूप में इस्तेमाल करती हैं । यह इसके रोगाणुरोधक गुण के लिए भी प्रयोग किया जाता है । यह उन्हें सूक्ष्मजीवी संक्रमण छत्ते से बाहर रखने में मदद करता है । यह छत्ते के हिस्सों को अलग करने का भी काम करता है जो उनकी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं (यह हो सकता है यदि कोई जानवर छत्ते के प्रवेश पर उनके लिए बहुत बड़ा हो और वहां मर जाए) । मधुमोम से परे, प्रोपोलीस का मधुमक्खियों द्वारा स्वयं उत्पादन नहीं किया जाता । वास्तव में यह एक रालयुक्त मिश्रण है, और मधुमक्खियों द्वारा यह पेड़ों की कलियों या पौधों के अन्य हिस्सों से संग्रहीत किया जाता है । यह मनुष्यों द्वारा चिकित्सा उपयोग के साथ – साथ अन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे कि प्रसाधन सामग्री और रोगन के उत्पादन में ।11 पुनः, इनका निस्सारण मधुमक्खियों को मजबूर करता है कि जाना है और बचे रहने हेतु छत्ते के लिए और चुनना है ।

रॉयल जेली

रॉयल जेली रानी के लिए आवश्यक ख़ास भोजन है जो मधुमक्खियां उसके लिए विकसित होने के लिए उत्पादित करती हैं । यह शहद का कोई रूप नहीं है, बल्कि यह मधुमक्खियों की हाइपोफैरिंगल ग्रंथि द्वारा स्रावित पदार्थ है (युवा कार्यकर्त्ता जिन्हें “नर्स” कहते हैं, के द्वारा और शुद्ध होने के लिए) । यह रानी को दिया जाता है और लार्वा को भी जब वे केवल 3 दिन के होते हैं । उसके बाद, मधुमक्खियां यदि आवश्यक हो तो नई मधुरानियां बनने के लिए कुछ लार्वा चुन सकती हैं (उदाहरण के लिए, यदि पुरानी मधुरानी मर गई है, या वह कमज़ोर हो रही है) । नई मधुरानियों में विकसित करने के लिए चुने हुए लार्वा को रॉयल जेली खिलाया जाता है, जबकि बाकी बचे लार्वा को अन्य उत्पादों खिलाए जाते हैं । फिर रॉयल जेली लार्वा के आन्तरिक शारीरिक संरचना में कई बदलाव उत्पन्न करती है जो अंततः उसे मधुरानी के रूप में विकसित होने की ओर ले जाता है । रॉयल जेली भोज्य विकल्पों और औषधि के रूप में इस्तेमाल की जाती है (यहां तक कि यदि कुछ लोग इसके प्रति बहुत एलर्जिक होते हैं और यदि वे इसका ग्रहण करें तो उन पर गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती है) । यह मधुरानी बनने के लिए रखे गए लार्वा की कोशिकाओं से प्राप्त किया जाता है, जिसका अर्थ है कि नर्स मधुमक्खियों को उन्हें पालने के लिए और भी अधिक ज़ोरदार प्रयास करना होगा ।

मधुमक्खी ब्रूड (समूह, बच्चे)

आख़िरकार, अन्य उत्पाद जिसे ब्रूड कहते हैं वह वास्तव में मधुमक्खियों के शरीर का ही बना होता है जब वे छोटे होते हैं ।12 “ब्रूड” काफ़ी सामान्य रूप में इस्तेमाल होने वाला शब्द है जिससे मधुमक्खियों के विकास के विभिन्न प्रारंभिक चरणों को नाम दिया जाता है । यहां तक कि यह आश्चर्यजनक लग सकता है कि, वे खा लिए जाते हैं । वे संग्रह किए जाते हैं और “ताज़ा” और “चूर्ण” दोनों रूपों में खाए जाते हैं । मधुमक्खी लार्वा उबाल कर या भून कर, कई तरीकों से बनाया जा सकता है ।

exploitation-of-bees-articleमधुमक्खियों को रखना (रखरखाव)

पंख और पैर कतरना, कृत्रिम वीर्यसेचन और अन्य कार्यप्रणालियां जो मधुमक्खियों के लिए नुकसानदायक हैं, वे मधुमक्खी रखने (पालने वालों) वालों द्वारा अक्सर प्रयोग की जाती हैं ।

कई समूह ठंड के दौरान मर जाते हैं, या कई मधुमक्खी पालकों द्वारा लागत घटाने के लिए जान – बूझकर मार दिए जाते हैं (यह आंकलन किया गया है कि यू. एस. में हर ठंड में 10% से 20% बस्तियां नष्ट हो जाती हैं, और कई मामलों में यह इसलिए होता है क्योंकि वे मरने के लिए छोड़ दी जाती हैं) ।

पालक के चाहने पर छत्ते टूट जाते हैं, जबकि वास्तविकता में छत्ते ऐसा नहीं करेंगे । अन्य मामलों में मधुमक्खियों के दो समूह एकजुट हो सकते हैं, किन्तु चूंकि यहां केवल एक मधुरानी हो सकती है, दोनों में से जो कमज़ोर है वह सीधे मार दिया जाएगा ।

कभी – कभी मधुरानियां हर छः महीने में बार – बार मार और बदल दी जाती हैं । हो सकता है एक नई मधुरानी खरीदी जाए जो नर मधुमक्खी के वीर्य से मधुमक्खियों को कृत्रिम रूप से वीर्यसेचित करती है ।

कतरना और निशान लगाना

“झुण्ड लगने” से रोकने के लिए अक्सर मधुरानियों के पंख कतर दिए जाते हैं । झुण्ड लगना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें रानी मधुमक्खी समूह में कई कार्यकर्त्ता मधुमक्खियां छोड़ जाती है, यह समूह के पुनरूत्पादन का तरीका है ।

कतरना अक्सर “बल्डॉक केज” का उपयोग कर किया जाता है, यह एक वलय है जिसके पेरिमीटर पर पैने कील और वलय के खुलने वाली जगह जाल से ढंकी होती है ।13 यह एक जगह पर मधुरानी को फंसाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, फिर उसके पंख कैंची से काट दिए जाते हैं । पंख कतरने के अन्य तरीकों में पिस्टन और एक सिरे पर जाली वाला एक ट्यूब जिसके विरुद्ध मधुरानी रखी जाती है जहां उसके पंख कट (कतर) जाते हैं ।

पंख कतरने पर निर्देश का एक लेखक ने कहा “प्रत्येक व्यक्तिगत मधुरानी को कतरने और चिन्हित करने से होने वाली संतुष्टि का प्राप्त होना” ।14

रानी मधुमक्खी को चिन्हित करना अन्य प्रक्रिया है, जैसा कि नीचे दिए गए वीडियो में स्पष्ट दिखाया गया है ।

मधुमक्खियां बलपूर्वक एक जगह रखी जाती हैं जबकि उनके शरीर पर पेंट लगा होता है । वे स्पष्ट रूप से इसे नापसंद करती हैं, जिसे वे मुक्त होने के लिए आक्रामकता और संघर्ष के एक कार्य के रूप में समझती हैं ।

यंत्रीय वीर्यसेचन

यंत्रीय वीर्यसेचन, जिसे कृत्रिम वीर्यसेचन के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रक्रिया है जिसमें रानी मधुमक्खियां विभिन्न नर मधुमक्खियों के वीर्य से अंतःक्षिप्त की जाती हैं ।15 धातु के छोटे उपकरण रानी के “डंक कक्ष” को खोलने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और सीरिंज डाली जाती है, जो उसके लिए इस अनुभव को बहुत तनावपूर्ण बनाता है । किन्तु यह नर मधुमक्खियों के लिए भी बड़ी मात्रा में पीड़ा और मौत का कारक होता है । ये जानवर उनके वीर्य स्राव करने के क्रम में दर्दनाक तरीके से दबाए जाते हैं । एक वेबसाइट नीचे दिए अनुसार इस प्रक्रिया का विवरण देती है:

“एक पार्श्विक उद्वर्ती कभी – कभी नर मधुमक्खी को सिर और सीने से पकड़कर उसका पेट चीर के भी प्राप्त किया जाता है । आगे उत्तेजन आमतौर पर ज़रूरी है । नर मधुमक्खी को पृष्ठ से और पेट से पकड़कर, उसका सिर और छाती कुचल देते हैं । कभी – कभी बहिर्वतन (उद्वर्ती) उत्तेजना के लिए पेट के छोर पर हल्का दबाव लगाना भी ज़रूरी होता है” ।16

नर मधुमक्खी के कुचलने (दबाने) की प्रक्रिया को यहां देखा जा सकता है । मधुमक्खी कुचल दिए जाने पर कुछ सेकंड के लिए जीवित प्रतीत होता है जैसा की हम उसका एंटेना हिलता हुआ देख सकते हैं । फिर कई मृत मधुमक्खियों से वीर्य लिया जाता है और दूसरी मधुमक्खी में अंतःक्षिप्त किया जाता है; इस वीडियो में यह देखा जा सकता है

यात्रा (परिवहन)

अक्सर रानी मधुमक्खियों के समूह इस जगह से उस जगह ले जाए जाते हैं । इस दौरान मधुमक्खियों की स्थिति जिनसे वे गुजरती हैं, उनके लिए काफी असहज और हानिकारक हो सकती है । ज़्यादा गर्म और ठंडी होने के कारण अक्सर रानियां मर जाती हैं । वे कीटनाशकों और अन्य ज़हरीले उत्पादों के प्रति भी अनावृत हो सकती हैं । और पहुंचाए जाने के दौरान अक्सर वे संग्रह कर इंतजार में छोड़ दी जाती हैं ।

इसके अलावा, एक साथ बड़ी संख्या में मधुमक्खियों के परिवहन के कारण बीमारियां भी बहुत आसानी से फैलती हैं । अब हम देखेंगे कि कौन सी बीमारियां मधुमक्खियों को प्रभावित करती हैं ।

बीमारी

जैसा कि खेतों में शोषित होने वाले कई अन्य जानवरों के मामले में होता है, जिन स्थितियों में मधुमक्खियां रखी और इस्तेमाल की जाती हैं वह उन्हें अलग – अलग बीमारियों से पीड़ित होने को संभावित करता है ।17 यहां बीमारियों कि एक श्रृंखला है जिनसे मधुमक्खियां पीड़ित होती हैं: अमेरिकन फाउल ब्रूड, यूरोपियन फ़ाउल ब्रूड, नोसेमा, आबादी गिरने का विकार, चाकब्रूड साथ ही साथ विभिन्न विषाणु । शोषण द्वारा होने वाली पीड़ा से नुक़सान के अलावा यह मधुमक्खियों के लिए पीड़ित होने और मौत का अन्य कारक है । ऐसा नहीं है कि वे जंगल में कई बीमारियों से पीड़ित नहीं होती हैं; वे होती हैं और बीमारी से बड़ी संख्या में मारी जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसा जंगल में रहने वाले कई अन्य जानवरों के मामले में होता है (यहां तक कि यहां ये तरीक़े भी हैं जिसमें हम उनकी मदद और ऐसा होने से बचा सकते हैं) । यह केवल मनुष्य के हाथों होने वाले शोषण से होने वाली पीड़ा है जो उन्हें विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होने को सापेक्षित रूप से आसान बनाता है, उनके पीड़ित होने के लिए मजबूर होने के कारण, उन्हें अतिरिक्त कार्य करने और नियमित रूप से खिलाए (भरण) न जाने के कारण ।

एक स्थिति जिससे मधुमक्खियां अक्सर पीड़ित होती है वह अमेरिकन फाउल ब्रूड है, जो वयस्क मधुमक्खियों में पलने वाले लार्वा को प्रभावित करता है । पाएनीबासिलस लार्वा, एक बैक्टीरिया, लार्वा के भोजन को दूषित करता है । विकसित होती मधुमक्खियों की आंतों में बैक्टीरिया अंकुरित होते हैं और सम्पूर्ण लार्वा को संक्रमित करना शुरू करते हैं, मधुमक्खियों से जो कुछ भी बचता है वह बैक्टीरिया है । अंततः, यह बीमारी समूची आबादी की मृत्यु का कारक होती है, जैसे यह सारे ब्रूड को मार देती है जिसे बदला नहीं जा सकता ।

यह बीमारी बड़ी आसानी से आबादी से आबादी तक फैल सकती है, उच्च और निम्न तापमान के प्रति बहुत प्रतिरोधी है और यहां तक कि 50 वर्ष तक रह सकती है । इस बीमारी से संक्रमित आबादियां अक्सर जला दी जाती हैं ।

यूरोपियन फाउल ब्रूड भी लार्वा को प्रभावित करता है । यह मेलिस्स कुक्कुस प्लूटोन बैक्टीरिया द्वारा भोजन के दूषित होने के कारण होता है । बैक्टीरिया लार्वा के जीव में पुनरूत्पादन करते और इसके भोजन खिलाते हैं, कुछ लार्वा भूख से मर जाते हैं ।

लार्वा इसके अंदर बड़ी मात्रा में बैक्टीरिया होने के कारण सफेद रंग लिए हुए दिखती हैं या थोड़ा बहुत “पिघली” हुई दिख सकती हैं । यदि कोई आबादी बड़े पैमाने पर संक्रमित हो तो यह आसानी से नष्ट हो सकती है ।

वर्ष 2007 में यू. एस. में लगभग 700,000 आबादी (बस्ती) मारी गई । यह प्रतिवेदित (सूचित) किया गया था कि वहां छत्तों के अंदर या बहुत पास मृत मधुमक्खियों का कोई निशान नहीं था । इसे आबादी गिरने का विकार (सी सी डी – कॉलोनी कोलाप्स डिसऑर्डर) कहा गया है । इसके कारक अब भी अज्ञात हैं । हालांकि कुछ संभावित जानकारियों में मधुमक्खियों में रासायनिक दूषण, पथॉजेंस, परजीवी और तनाव होना शामिल हैं ।

चाकब्रूड अस्कोसफेरिया अपिस फंगस से होने वाली एक बीमारी है । फंगुस मधुमक्खी लार्वा को संक्रमित करते हैं, जो सख़्त और सफेद हो जाते हैं । कुछ का मानना है कि चाकब्रूड उच्च स्तरीय तनाव से संबंधित है ।

एकाराइन माइट्स मधुमक्खियों की श्वासनली में रहते हैं और मधुमक्खी की सांस लेने की क्षमता पर गंभीर दुष्प्रभाव डालते हैं । जैसे – जैसे माइट्स बढ़ते हैं वे मधुमक्खियों की श्वासनली छोड़ देते हैं और अगला पोषिता खोजते हैं । यदि मधुमक्खियां इन माइट्स से संक्रमित होती हैं तो कभी – कभी वे छत्ते के सामने रेंगती हुई पाई जाती हैं और असमंजस और गुमराह रूप में दिख सकती हैं ।

ट्रोपिलाएलाप्स एक अन्य जानवर है जो मधुमक्खियों को परजीवी कृत करता है । ये माइट्स मधुमक्खी लार्वा के हाइमोलिंफ पर रहते हैं और जब वे बढ़ते हैं तो उनके लिए गंभीर नुकसान का कारक होते हैं ।

वर्रोआ डिस्ट्रक्टर, जो वर्तमान में मधुमक्खियों के लिए सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाने वाला परजीवी है, कोश के अंदर जा कर अंडे देता है ठीक इसके पहले कि यह बंद हो जाए । बेबी माइट्स इसके हाएमोलिंफ पीकर कोश के अंदर के मधुमक्खी लार्वा को परजीवीकृत कर देते हैं । यदि संक्रमण गंभीर हो तो आबादी का हर पहलू समस्यात्मक होना शुरू हो सकता है । हो सकता है मधुमक्खियां कुपोषित, विकृत और पंगु पंखों वाली होने लगें ।18

हमें मधुमक्खियों का शोषण करने की ज़रूरत नहीं है

मधुमक्खियों का शोषण जानवरों के शोषण की प्रक्रियाओं में से एक है जिसका परिणाम अधिक जानवरों कि मौत है (ख़ासतौर से सर्दियों और आबादी गिरने के दौरान होने वाली मौतों के कारण) । हालांकि, मधुमक्खियों के शोषण से प्राप्त होने वाले उत्पादों में से कोई भी ज़रूरी नहीं है । हमें शहद या अन्य उत्पाद जो मधुमक्खियों का शोषण करते हैं, उनका उपभोग करने की आवश्यकता नहीं है । यदि हम इसका स्वाद या बनावट पसंद करते हैं तो हम अन्य उत्पादों जैसे सिरप या गुड़ का इस्तेमाल कर सकते हैं । इनमें से कुछ के उत्पाद बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले हैं जैसे कि अगेव सिरप या मेपल सिरप ।


आगे पढ़े

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टिप्पणियां

1 मनुष्यों द्वारा मधुमक्खियों के शोषण से उनको नुकसान पहुंचाने वाले तरीकों की एक विस्तृत परीक्षा के लिए, देखें Lewis, N. (2010) “Why honey is not vegan”, Vegetus.org [अभिगमन तिथि 15 जनवरी 2021].

2 Balderrama, N.; Díaz, H.; Sequeda, A.; Núñez, N. & Maldonado, H. (1987) “Behavioral and pharmacological analysis of the stinging response in Africanized and Italian bees”, Menzel, R. & Mercer, A. (eds.) Neurobiology and behavior of honeybees, New York: Springer, pp. 121-128. Núñez, J. A.; Almeida, L.; Balderrama, N. & Giurfa, M. (1997) “Alarm pheromone induces stress analgesia via an opioid system in the honeybee”, Physiology & Behaviour, 63, pp. 75-80. Chen, Y. L.; Hung, Y. S. & Yang, E. C. (2008) “Biogenic amine levels change in the brains of stressed honeybees”, Archives of Insect Biochemistry and Physiology, 68, pp. 241-250. Bateson, M.; Desire, S.; Gartside, S. E. & Wright, G. A. (2011) “Agitated honeybees exhibit pessimistic cognitive biases”, Current Biology, 21, pp. 1070-1073 [अभिगमन तिथि 27 फरवरी 2017]. Klein, C. & Barron, A. B. (2016) “Insects have the capacity for subjective experience”, Animal Sentience, 9 (1) [अभिगमन तिथि 27 फरवरी 2017]. Loukola, O. J.; Perry, C. J.; Coscos, L. & Chittka, L. (2017) “Bumblebees show cognitive flexibility by improving on an observed complex behavior”, Science, 355, pp. 833-836.

3 ऑक्टोपस में कई कशेरुकाओं और कुछ स्तनधारियों के समान की तुलना में मानसिक क्षमता अधिक होती है । यह नैतिक रूप से प्रासंगिक नहीं है, लेकिन उन सबूतों का निष्कर्ष निकालता है जो वे भावुक हैं, क्योंकि उन क्षमताओं को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को पहले स्थान पर सचेत रहना पड़ता है । यह भी दर्शाता है कि यह सोचना कि अकशेरुकी अत्यंत सरल प्राणी हैं जिनके लिए हमें परवाह नहीं करनी चाहिए, कई मामलों में वास्तव में भ्रामक है ।

4 Riley, J. R.; Greggers, U.; Smith, A. D.; Reynolds, D. R.; Menzel, R. (2005) “The flight paths of honeybees recruited by the waggle dance”, Nature, 435, pp. 205-207.

5 North Carolina Department of Agriculture & Consumer Services (ca. 2010) “North Carolina honey…”, Marketing, North Carolina Department of Agriculture & Consumer Services [अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2016].

6 Root, A. I. (1980) The ABC and XYZ of bee culture: An encyclopedia pertaining to scientific and practical culture of bees, Medina: A.I. Root Co., p. 121.

7 Schmidt, J. & Buchmann, S. (1992) “Other products of the hive”, Graham, J. M. (ed.) The hive and the honey bee, op. cit., pp. 927-988.

8 Dutau, G. & Rance, F. (2009) “Honey and honey-product allergies”, Revue Française d’Allergologie, 49 (6), pp. S16-S22.

9 Sammataro, D. & Avitabile, A. (2011) The beekeeper’s handbook, Ithaca: Cornell University Press.

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