प्रकृति में शत्रुता: एक तरह का द्वंद्व

प्रकृति में शत्रुता: एक तरह का द्वंद्व

यह लेख प्रकृति में एक तरह की शत्रुता के बारे में है | अन्य लेख “समान प्रजातियों के जानवरों के बीच लड़ाई की चर्चा” और दूसरा “यौन द्वंद्वों की बात” करता है | जंगल में जानवरों की पीड़ा के अन्य तरीकों के बारे में जानकारी के लिए, हमारे सामान्य अनुभाग “जंगल में जानवरों की स्थिति” देखें |

प्रकृति में, पारिस्थितिकी सम्बन्ध जिसमें एक जीव की हानि से दूसरे जीव को लाभ होता है, उसे “प्रतिरोधपूर्ण संबंध” कहते हैं | प्रतिरोधपूर्ण संबंध इसलिए आये क्योंकि जीवों में द्वंद्वात्मक रुचियाँ हैं | उदाहरण के लिए, एक किलनी की रूचि एक हिरण का खून पीने में हो सकती है क्योंकि यह किलनी को पोषण उपलब्ध करता है और इस प्रकार से उसे लाभ होता है | यह हिरन की रुचियों के साथ द्वंद्व करता है क्योंकि उसकी ऊर्जा का भाग किलनी का पालन करने में सोख लिया गया है, और यह हिरण को शारीरिक रूप से कमज़ोर कर नुकसान पहुंचा सकता है | प्रतिरोधपूर्ण संबंधों के मुख्य उदाहरण वे हैं जिनमें एक जीव दूसरे जीव को हानि पहुंचा कर अपना पोषण करते हैं, ख़ासतौर से, परजीविता या शिकार द्वारा |

प्रजातियों के अंतर्गत भी प्रतिरोधपूर्ण संबंध हो सकते हैं, जब एक समान प्रजातियों की इकाइयों की रुचियों में द्वंद्व हो | उदाहरण के लिए, सीमित संसाधनों के साथ पर्यावरण में, एक समुदाय के अन्दर अपने क्षेत्र, साथी या सामाजिक स्तर की सुरक्षा के लिए जानवर लड़ेंगे | कुछ जानवर भाई-बहनों और बच्चों सहित अपनी ही प्रजाति के सदस्यों को खाते हैं | हम इस तरह के संबंधों की चर्चा अन्तः जातीय द्वंद्व के लेख में करेंगे | एक प्रजाति के अंतर्गत नर और मादा के बीच भी प्रतिरोधपूर्ण संबंध हो सकते हैं |

अन्तर्जातीय प्रतिरोधपूर्ण संबंधों के दो मुख्य मामले परजीविता और परभक्षण हैं | परभक्षी सामान्यतः उस जानवर से बड़े या समान आकार के होते हैं जिन पर वे हमला करते हैं, जबकि परजीवी आम टूर अपर बहुत छोटे होते हैं |1 परभक्षी आम तौर अपर अपने जीवनकाल में कई या अनेक जानवरों को मरते हैं और उनका एक दूसरे से सामना बहुत कम समय का होता है, जिनमें आमतौर पर केवल पीछा करना और मार देना शामिल है | परजीवी सामान्यतः एक ही पोषिता में अपनी सारी उम्र बिता देते हैं, आमतौर पर उन्हें मारते नहीं हैं | परजीव्याभ इसके अपवाद हैं जो एक पोषिता से सम्बंधित होते और जो उन्हें अंततः मार देते हैं | एक उदाहरण: दतैया परिवार है जिसकी मादाएं एक जीवित पोषिता में एक इल्ली की तरह अंडे देती हैं | बाद में लारवा अपने पोषिता का उपभोग करती है जिन्हें वे तब मार देती हैं जब पोषिता का शरीर परित्यक्त होने के क़रीब होता है |

परजीविता और परजीव्याभ्ता

परजीविता बहुत ही सामान्य है |2 अधिकतर जंगली जानवर अनेक तरह के परजीवियों को शरण दिए रहते हैं | उनमें से कई रोगजनक सूक्ष्मजीव हैं जैसे कि विषाणु जो कि अपने पोषिताओं को बीमार करके हानि पहुंचा सकते हैं | अन्य बड़े जीव हैं जैसे कि जानवर |

कुछ परजीवी अपने हमला करने वाले जानवरों को बहुत कम हानि पहुंचाते हैं | हालाँकि, कुछ उन्हें पीड़ा पहुंचाते और कमज़ोर कर देते हैं | परजीव्याभ आख़िरकार अपने हमला करने वाले जानवरों को मार देते हैं | यहाँ हानि के अप्रत्यक्ष प्रकार भी हैं | उदाहरण के लिए, परजीवी की क्रिया थकान ला सकती है, जो पोषिता के लिए भोजन खोजना और परभक्षियों से बचने को मुश्किल बना सकता है |

कुछ परजीवी अपने पोषिताओं को नपुंसक बना देते हैं, उनके अन्य तंत्रों को ठीक से बरक़रार रखते हैं ताकि पोषिता जीवित रह सके, फ़िर उनकी जो ऊर्जा पुनरुत्पादन में ख़र्च की जाती उसे परजीवी को जीवित रखने की ओर फेर देते हैं |3

कुछ परजीवी अपने पोषिताओं (ख़ासतौर से मस्ध्यवर्ती पोषिता) में व्यव्हारजनित परिवर्तन लाते हैं जो उन्हें परभक्षियों (अंतिम पोषिताओं) के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील बनाता है |4 मध्यवर्ती पोषिता अल्पवयस्क परजीवी विकसित होने और बढ़ने के लिए एक वातावरण उपलब्ध करते हैं | अंतिम पोषिता वो है जहां यौन रूप से विकसित परजीवी पुनरुत्पादन करते हैं | उदाहरण के लिए, अकस्मात् परजीवी दिक्रोकोएलिअम देन्द्रिक्टियम अंतिम पोषिता के अन्दर पुनरुत्पादन करते हैं, चराई, जुगाली करने वाले जानवरों जैसे गायें या भेड़ में, और पोषिता के मलों में अंडे देती हैं | प्रथम मध्यवर्ती पोषिता एक सामान्य घोंघा (संषुक) है जो मल खाता है और लारवा परजीवियों द्वारा पीड़ित होता है | घोंघा परजीवी के चारों ओर अल्सर बनाता है जिसे वो बाद में उगल देता है | ये अल्सर द्वितीय मध्यवर्ती पोषिता, एक चींटी द्वारा उपभोग किये जाते हैं | परजीवी चींटी के व्यव्हार को नियंत्रित करने में सक्षम है जो उसे घास के पत्ते के छोर पर चढ़ने के लिए बाध्य करता है जहाँ वह चरने वाले पशु द्वारा खा लिया जाएगा, जहाँ अब वयस्क परजीवी पुनरुत्पादन कर सकता है |5

परजीवी अन्तःपरजीवी या बाह्यपरजीवी हो सकते हैं | अन्तःपरजीवी पोषिता के शरीर के अन्दर रहते हैं | ये रक्त ऊतकों, शरीर गुहा, पाचन प्रणाली और अन्य अंगों में रहते हुए पोषिता के संसाधनों से उपभोग और पुनरुत्पादन करते हैं | सामान्य तरह के जिनमें प्रोटोजोआ (एककोशीय जीव), और आंत्रकृमि (बहुकोशीय कीड़े: फीताकृमि,सूत्रकृमि, पर्णकृमि) शामिल हैं | बाह्यपरजीवी भी पोषिता के संसाधनों पर जीते हैं किन्तु वे ऐसा शरीर के बाहर से करते हैं, आमतौर पर उनकी सतह (त्वचा या पंखों) पर रहते हुये | कुछ सामान्य तरह के संधिपाद हैं जैसे किलनी और घुन |

जंगल में एक जानवर के लिये यह मुश्किल है कि किसी एक समय में उन पर विविध प्रजातियों वाले परजीवी ना हों | यह आकलन किया गया है कि परजीवी अन्य जानवरों की संख्या में चार से एक तक की कमी कर देते हैं |6 परजीवी चाहे पोषिता-विशिष्ट या सामान्यज्ञक हो, बाद में वर्गीकृत समूह जैसे मछली, पक्षी, या स्तनधारी में सीमित हो जाती है |

कुछ परजीवियों को परात्परजीवी कहते हैं क्योंकि ये अन्य परजीवियों से भोजन ग्रहण करते हैं | वे अधिपर्जीवियों के साथ उलझन में नहीं होते, जो कि एक अकेले पोषिता में बड़ी जनसँख्या में रहते हैं (जैसे कि ततैया जिनकी लारवा इल्लियों के परजीवी हैं) |7 जंगली जानवरों के बीच प्रचलित परजीवियों के कुछ उदाहरण नीचे दिये गए हैं |

स्तनधारियों को हुई परजीवी पीड़ा

त्रिचिनेल्ला

त्रिचिनेल्ला जंगली जानवरों में पाया जाने वाला एक सूत्रकृमि (परजैविक गोलकृमि) है, ज़्यादातर जंगली भालुओं और अन्य स्तनधारियों में पाये गए हैं |8 यह पेट में सुक्ष्मजीवी अल्सर द्वारा होने वाली एक बीमारी त्रिचिनेल्लोसिस के लिए उत्तरदायी है | एक बार छोटी आंत में पहुँचने के बाद वे पुनरुत्पादन करते हैं और रक्त धारा में प्रवेश कर, कई अंगों जैसे रेटिना, म्युकार्डियम और इस्केलेटल पेशियों को प्रभावित करते, एडिमा का कारण, पेशीय दर्द, बुख़ार और कमज़ोरी उत्पन्न करते हैं |

पट्टकृमि (स्फ़ीतकृमि)

स्फ़ीतकृमि एक फीताकृमि (फीताकृमि परजीवी) है जो पौष्टिकता श्रृंखला द्वारा ख़ुरों (सफ़ेद पूंछ वाले हिरण,मूस,करिबू और बारहसिंगा), छोटे स्तनधारियों (मूषक,मूस और चूहों) और बड़े परभक्षियों (भेदियों, भेड़िया, लोमड़ी, बिल्लियों और लकड़बग्घों) के बीच से संचरित होता है | कृमि मध्यवर्ती पोषिता के आतंरिक अंगों में अल्सर में रहते हैं और आख़िरी पोषिता के मध्यवर्ती पोषिता के खा लेने के बाद अंतिम पोषिताओं में पहुँच जाते हैं | अंतिम पोषिताओं के मल का अंतर्ग्रहण जानवरों में संक्रमण के एक नये चक्र को शुरू करता है जो मध्यवर्ती पोषिता है | स्फ़ीतकृमि, परिणामी रोग, शारीरिक कमज़ोरी, हिलडुल ना पाना, और अंगों के ख़राब होने में उत्तरदायी है |

दाद

दाद एक मांस खाने वाला परजीवी है जो दाद बीमारी के लिए उत्तरदायी है, यह बीमारी जंगली नासूर (भेड़ियों) में बडमक्खी द्वारा काट लिए जाने पर संचरित होती है9 एक पहले से ही दूषित जानवर का खून चूसने के द्वारा मक्खी संक्रमित हो जाती है | मक्खी इसे काट कर, लार के द्वारा दूसरों तक पहुंचाती है | इसके लक्षणों की तीव्रता काटी हुई जगह से कुष्ट रोग जैसी क्षति और नाक व मुंह में ऊतक क्षति तक बदलती है | इसके और गंभीर रूप में, यह मृत्यु ला सकता है |

सर्कोप्ट्स खुजली कुत्ता

खुजली वाले सर्कोप्तिक घुन एक बाह्य परजीवी है, जंगली स्तनधारियों जैसे बिल्ली, सूअर, घोड़े और अन्य कई प्रजातियों में प्रचुर मात्रा में सर्कोप्तिक खुजली (खाज) बीमारी के लिए उत्तरदायी है |10

इसका संक्रमण घुन में एक प्रत्युर्जी (एलर्जिक) प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, जिसके परिणामस्वरूप गम्भीर खुजली और निकोटना, त्वचा को मसल कर और रक्ततापूर्ण क्षति पहुंचाता है | यह अंधेपन और बहरेपन का कारण हो सकता है | संक्रमित जानवर अक्सर बहुत कमज़ोर हो जाते हैं और लक्षणों का दिखना बहुत तेज़ हो जाता है जब भोजन की हानि और अन्य बीमारियाँ एक साथ होती हैं | यूरोपियन लोमड़ियों के बीच लोमड़ियों को प्रभावित करने वाली बीमारी का एक गंभीर रूप उच्च मृत्यु दर के लिए उत्तरदायी है | लोमड़ी कई अन्य परजीवियों के अंतिम सामान्य पोषिता हैं, जैसे फीताकृमि (फीता) की कई जातियां, क्रेनोसोमा (फेफड़ाकृमि) और फिलारोइड्स (श्वसन प्रणाली) के साथ कई अन्य,11 और इन परजीवियों का मिश्रण सर्कोप्टिक घुनों के दुर्बल करने वाले प्रभाव को बढ़ता है |

बाबेसिया

जंगली स्तनधारियों में बाबेसिया एक प्रचलित प्रोटोजोआ परजीवी है, ख़ासतौर से जंगली खुर बबेसिओसिस के लिए उत्तरदायी है जो एक मलेरिया से बहुत मिलती-जुलती बीमारी है |12 घुन के काटने के दौरान निकले लार के द्वारा परजीवी पोषिता तक पहुँचता है | एक बार लाल रक्त कोशिकाओं तक पहुँच कर, परजीवी पुनरुत्पादन और वंशवृद्धि कर इसके अत्यधिक गंभीर प्रभावों रुधिरलयी रक्तहीनता (एनीमिया), पीलिया और हीमोग्लोबिनुरीया का कारण बनते हैं | यह एक सशक्त रूप से घातक बीमारी है |

स्तनधारियों और पक्षियों द्वारा सहभाजी सामान्य परजीवी

स्तनधारियों को संक्रमित करने वाले सामान्य परजीवी अन्य प्रजातियों को पीड़ा देते हैं | उदाहरण के लिए, टोक्सोप्लास्मा गोंडी जंगली जानवरों और पक्षियों के बीच फैलने वाला एक प्रोटोजोआ परजीवी है | प्रारम्भ में यह बिल्लियों में पाया गया, हालाँकि, अन्य प्रजातियों जैसे मैना और कृंतक प्रजातियों में इसका प्रभाव देखा गया है | टोक्सोप्लास्मोसिस इसी के जैसे एक बीमारी ख़रगोश, ऑस्ट्रलियन मर्सुपियल्स, बन्दर और उच्च श्रेणी के अन्य छोटे स्तनपायी प्राणियों में उच्च मृत्यु दर के कारक के रूप में पायी गई है |13 यहाँ तक कि कुछ मामलों में परजैविक संक्रमण अलक्षणपूर्ण हो सकता है, कमज़ोर हो चुकी इकाइयों में यह मस्तिष्क कोप का कारण और आँखों, ह्रदय और यकृत को प्रभावित कर सकता है |

अन्य उदाहरण गिअर्डिया लाम्बिया एक प्रोटोजोआ परजीवी है जिससे ‘गिअर्दियासिस’ होती है जो उद्बिलाव, कई प्रकार के ख़ुरों और जलीय पक्षियों में होता है |14 बीमारी संक्रमित जानवरों के मल द्वारा किलनी से दूषित पानी द्वारा होती है | आँतों के लक्षण आमतौर पर संक्रमण से सम्बंधित होते हैं, जैसे कि बहुकालिक दस्त, उदरीय (पेट सम्बन्धी) ऐंठन, मतली, निर्जलन और वजन घटना |

पक्षियों द्वारा झेली जाने वाली परजैविक पीड़ा

त्रिकोमोनोसिस

जंगली पक्षी आमतौर पर त्रिकोमोनोसिस से पीड़ित रहते हैं, यह त्रिकोमोनास परजीवी द्वारा होने वाली एक बीमारी है | यह एक कमज़ोरी लाने वाली बीमारी है जो प्रायः मुंह, अन्न प्रणाली, गला और पक्षियों के पेट ग्रंथि के साथ-साथ अन्य अंगों जैसे यकृत को प्रभावित करती है | जंगली पक्षियों में त्रिकोमोनोसिस की तीव्रता प्रजातियों के अनुसार बदलती है, कबूतरों और पडकी में तेजी से लेकर, शिकारा और बाज़ में सामान्य, उल्लुओं में आकस्मिक, गाने वाली चिड़ियों में बहुत कम तक होता है |15

नीचे दिया गया वीडियो पक्षियों द्वारा प्रदर्शित त्रिकोमोनोसिस के लक्षणों, टूट चुकी चोंचों के साथ, गटकने में कठिनाई, उन्घाई, असावधानी को दिखाता है |

हैमोस्पोरिडा

हैमोस्पोरिडा एक सूक्ष्म अन्तःकोशिकी परजैविक प्रोटोजोआ है, जो संक्रमित से असंक्रमित पक्षियों में मक्खियों के काटने के द्वारा संचरित होता है | पक्षियों की ३३०० से ज्यादा प्रजातियों की जांच की गई, जिनमें बत्तख़, गीस, हंस के साथ ६८% से ज्यादा परजीवियों के पोषिता थे | जंगली टर्की और कबूतर भी संक्रमण की उच्च दर दर्शाते हैं | इन परजीवियों के साथ जानवरों अन्य लक्षणों के साथ रक्तहीनता और वजन में कमी होने लगती है | यह युवा पक्षियों के लिए मृत्यु दर का एक कारक है |16

सारकोसिस्टिस

जंगली पक्षियों में पाया गया अन्य दुर्बलताजन्य परजैविक प्रोटोजोआ सारकोसिस्टिस है | किलनी युक्त मल से दूषित भोजन या पानी के अंतर्ग्रहण के बाद पक्षी संक्रमित हो जाते हैं | तब परजीवी रक्त धारा में पहुँचने से पहले, जहां ये नये किलनी उत्पादित करते हैं, पक्षी भी अंत में बढ़ते हैं | संक्रमण का परिणाम पेशीय ऊतकों की क्षति, साथ ही अन्य दुर्बलकारी प्रभाव, पोषिताओं की परभक्षियों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है |

कीड़े (कृमि)

दोनों स्थलीय और जलीय पक्षी भी अक्सर विभिन्न प्रकार के कृमियों से परजीवीकृत होते हैं | संक्रमण की तीव्रता पर अधीनता से,थोड़ी कमज़ोरी से लेकर कुल शारीरिक क्षति तक, हो सकता है पक्षी लक्षणों की एक श्रंखला अनुभव करें, उदाहरण के लिए इयुस्ट्रोंगीलिडोसिस, कई सामान्य गोलकृमि द्वारा जनित एक बीमारी है जिसका परिणाम जीवाणु जनित पेट का झिल्ली रोग और द्वितीयक संक्रमणों साथ ही साथ मोटी परतों वाली कणिकागुल्मों के साथ खुले बिल या संक्रमित पक्षियों की आंत, होता है |

पक्षियों में बड़े पैमाने पर पाए गए अन्य परजीवी श्वासनली के कीड़े (कृमि) हैं | ये श्वसननली और वायुनली में बाधा डालते हैं जिसके परिणामस्वरुप बड़ी श्वसन सम्बन्धी परेशानी होती है | प्रतिक्रिया में, संक्रमित पक्षी सामान्यतः परजीवियों को बाहर निकालने के लिए खांसते, छींकते और सिर हिलाते हैं | वे हो सकता है शरीर का वजन खोएं, रक्तहीनता और अक्सर भुखमरी से मर जाएँ |17 एकसमान दुर्बलप्राय कृमि ह्रदयकृमि हैं, जो हंसों और गीस के बीच पाई गई है | यह एक सामान्य शक्तिहीनता के लिए उत्तरदायी है |

सरीसृप और उभयचरों के बीच परजीवी प्रोटोजोआ संक्रमण

Protozoan infections

हैमोप्रोतिअस, खून चूसने वाले कीड़ों द्वारा संचरित एक प्रोटोजोआ परजीवी, सरीसृप और उभयचरों की कई प्रजातियों, ज्तादातर कछुओं और कच्छ्पों में पाई गई है |18 इसका कंकालीय पेशियों और अन्य अंगों जैसे यकृत (लीवर) पर दुर्बलता लाने वाला प्रभाव पड़ता है | एक अन्य परजैविक संक्रमण जिसमें ऐन्तामोएना इन्वादेंस शामिल है, जो कि कोलिटिस, यकृत और अन्य अंगों में कीड़े का और कभी-कभी मृत्यु का कारक है,19 और स्पिरोचिड पर्णकृमि से (कछुवे और घोंघे)20 की धमनियों और ह्रदय पर बड़ा प्रभाव पड़ता है |21अन्य परजैविक संक्रमण साथ ही क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस, कई प्रकार के सरीसृप, ज़्यादातर साँपों और छिपकलियों में पाये जाते हैं, जो उल्टी, दस्त, वजन में कमी और आमाशय श्लेषमल झिल्ली में सूजन लाते हैं |22

अकशेरुकी में परजैविकता

इक्युमोनिडाई और ब्राकोनिडाई किलनी

अकशेरुकियों के बीच ज्ञात परजीविता का सबसे लोकप्रिय उदाहरण इक्युमोनिडाई और ब्राकोनिडाई किलनी है | ये जानवर अन्य कीड़ों के शरीर में अपने अंडे देते हैं, जैसे इल्लियाँ और चीटियाँ | जब चूज़े अण्डों से निकलते हैं, तो लारवा अपने पोषिता को जीवित खाना शुरू करता है, पोषिता के मार्मिक अंगों को अंत तक बरक़रार रखते हुये | सिर्फ़ तब जब पोषिता के खाने योग्य अमार्मिक अंग खा लिए जाते हैं तो पोषिता मर जाता है | इनमें से कुछ किलनियाँ परात्परजीवी हैं, अपने अंडे अन्य परजीवी किलनियों के शरीर में देते हैं |23

नीचे दिया वीडियो किलनी के लारवा का उनके कृमि पोषिता के शरीर से उत्पन्न होने को दिखाता है |

परभक्षण

जंगली जानवरों में पीड़ा के कारणों में से एक है परभक्षण | इसके सबसे आधारभूत स्तर पर, परभक्षण एक प्रतिरोधपूर्ण संबंध है जहां एक जीव (शिकारी) अन्य जीव (शिकार) का उपभोग कर अपनी ऊर्जा प्राप्त करता है, जिसमे शिकार जीवित रहते हैं जब शिकारी हमला करता है |24 मानक परिभाषाओं में से एक परभक्षण इसको प्रक्रिया के तौर पर समझाता है जिसमें एक ख़ास जानवर अन्य जानवर को पकड़ता और मारता है और फ़िर उस जानवर के शरीर का एक भाग या पूरा खा जाता है |25

शिकार किये गये जानवर कैसे मरते हैं?

जानवर जिनका शिकार किया गया है, कई तरह से मारे और खाये जाते हैं | शिकार के मरने से पहले लगने वाला समय भी बदलता है | कुछ शिकारियों द्वारा उनका शरीर खाने से पहले मार दिया जाता है | कुछ शिकारी सीधे जीवित जानवरों को खाते हैं | कुछ जानवर, जैसे की बगुले और साँपों की कुछ प्रजातियाँ अपने शिकार को पूरा जीवित निगल और पचा लेती हैं |

जानवरों द्वारा सहन की जाने वाली पीड़ा का अनुमान लगाना मुश्किल है जब वे शिकार बन जाते या मार दिए जाते हैं | एन्दार्फिंस के उत्सर्जन के कारण जो कि दर्द और तनाव के अनुभव को कम करता है, हो सकता है यह प्रारंभ में उतना बुरा ना हो | हालाँकि यह महत्वपूर्ण है कि जानवरों द्वारा महसूस किये गये दर्द, जब उन पर हमला होता है, और पीछा किये जाने के दौरान हो सकने वाले डर और संकट और शिकारियों (परभक्षियों) से डर में जीने को कम ना आँका जाये |

अकशेरुकी

बहुत से जानवरों में से सबसे अधिक अकशेरुकी हैं | उदाहरण के लिए, यह आकलन किया गया है कि 10 क्विन्टिलियन इकाई कीड़े एक समय पर जीवित रहते हैं,26 प्रत्येक मनुष्य के लिए लगभग 200 मिलियन अकशेरुकी27 वर्ग में से शेष संधिपाद प्राणी (मकड़ी, परुषकवची, कनखजूरे), घोंघे (ऑक्टोपस, समुद्रफेनी, संषुक), कुंडल कीड़े (भूमिकृमि और जोंक) और निदेरियंस (जेलीफिश, समुद्री अनीमोन, आदि) भी शामिल हैं | इनके अंतर्गत, हम घातक परभक्षी पा सकते हैं जैसे मांस खाने वाले चींटी और नीले वलय वाला ऑक्टोपस साथ ही साथ वे जानवर जो जानवरों जैसे केकड़े, मल मक्खियाँ और मक्खियों द्वारा शिकार किये जाते हैं | कुछ परभक्षी, जैसे मांस खाने वाली चींटी और मकड़ियां भी कशेरुकी जानवरों जैसे मेंढ़क, छोटे पक्षी और स्तनपायी | इपोमिस झींगुर अपने शिकार को ज़हर द्वारा (कभी-कभी मेंढ़कों और अन्य बड़े जानवर) पंगु बना देते हैं और फ़िर वे उन्हें जीवित खा जाते हैं, जैसा नीचे दिए गए वीडियो में देखा गया है |

जानवरों की बड़ी संख्या जो शिकार बनती है, वे अकशेरुकी हैं | नीचे हम अकशेरुकी के शिकार होने के कुछ तरीके देखेंगे |

मक्खियाँ जानवरों की एक श्रेणी द्वारा शिकार बनती हैं जिनमें कीड़े, पक्षी और स्तनपायी शामिल हैं | लखेरियों की कुछ प्रजातियाँ मक्खियों पर हमला करती हैं और या तो वे उन्हें ख़ुद खाती हैं या अपने लारवा को खिलाने के लिए वे उनके शरीर को अपने घोंसलों में ले जाती हैं | नीचे दिया वीडियो एक बीवोल्फ़ को मक्खी का पीछा करता और उस पर हमला करता हुआ दिखता है | जब मक्खी फूलों का रस पीने में व्यस्त होती है, तो किलनी उस पर झपट्टा मारती है, फ़िर उसमें घातक विष छोड़ देती है | मक्खी अपने हमलावर के विरुद्ध संघर्ष करती है, पर उसके डंक किलनी के कवच में नहीं घुस सकते | किलनी अपने शिकार के सिर से सीधे मुंह से फूल का रस पीती है, फ़िर अपने बच्चों को खिलाने के लिये मक्खी के शरीर को वापस अपने घोंसले में ले जाती है |

वर्रों की अन्य प्रजातियाँ मक्खी के लारवा खाने के क्रम में मधुमक्खी के छत्तों पर धावा बोलते हैं | नीचे दिये गये वीडियो में 30 भयंकर (बड़े) वर्र मधुमक्खी के छत्ते पर हमला करते हैं | जिसमें से एक प्रति मिनट 40 मक्खियों को मार सकता है | सारी मधुमक्खियों को मारने के बाद, वर्र छत्तों में घुसते हैं और मक्खी के लारवा का मांस खा जाते हैं |

कुछ पक्षी मक्खियों के पेट के हिस्से खाने से पहले डंक तोड़कर शहद पेट सहित शिकार करते हैं |28 यह आकलन किया गया है कि पक्षी प्रति वर्ष 400 से 500 मिलियन टन कीड़ों का उपभोग करते हैं,29 जो कि प्रति वर्ष जानवरों की इकाइयों का सैकड़ों मिलियन टन है |

नीचे दिया गया वीडियो फुदगी और सारिका, साथ ही साथ मेंढ़क और छिपकली को कैक्टस मक्खियों के झुण्ड को खाता हुआ दिखाता है | जब नर मक्खी मादाओं के लिए लड़ते हैं, तब पक्षियों के लिए उन्हें चुगना आसान होता है |

मकड़ियाँ कीटों, अन्य मकड़ियों और कभी-कभी पक्षियों और छिपकलियों पर शिकार करते हैं | यहाँ 48000 से ज्यादा मकड़ियों की ज्ञात प्रजातियाँ हैं, जिनमें एक को छोड़ सभी परभक्षी हैं | यह आकलन किया गया है कि मकड़ियाँ प्रति वर्ष 400 और 800 मिलियन टन जानवरों को मार देती हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में संधिपाद प्राणी हैं |30 सबसे लोकप्रिय तरीका जाले निर्मित करना है और जानवरों के उनमें उड़ के आने और फंस जाने का इंतज़ार करना | मकड़ियाँ कम्पन के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं और जाले के केंद्र में इंतज़ार करती हैं, वे फंसे हुये जानवर के उस कम्पन को भांप लेती हैं जो वे उत्पन्न करते हैं | आमतौर पर मकड़ी फंसे हुये जानवर के निकलने के संघर्ष से थक जाने का इंतज़ार करेगी, फ़िर वह मारने के लिये अन्दर आयेगी | मकड़ियों के नुकीले दांत होते हैं, अधिकतर इनका उपयोग पकडे हुये जानवर के शरीर में विष छोड़ने के लिये करते हैं, या तो उन्हें मार देते हैं | फ़िर कुछ मकड़ियाँ जानवर को रेशम के कोकून में लपेट देती हैं | आखिरकार, वे जानवर के शरीर को तरल रूप में तोडने के लिये उन पर पाचक किण्वक उगलती हैं जिससे वे खाने के योग्य हो जाते हैं | ज़हर के प्रकार और पकडे गये जानवर के आकर और प्रजाति के आधार पर, इस प्रक्रिया के दौरान जानवर तब भी जीवित और दर्द महसूस कर सकता है |

नीचे दिया गया वीडियो मकड़ी के जाले में फंसी मक्खी को उसके द्वारा मारने को दिखाता है | मक्खी एक बड़ा संघर्ष करती है किन्तु मकड़ी द्वारा कमज़ोर साबित होती है | मक्खी को मारने के बाद मकड़ी उसे खाने की तैयारी में उसके शरीर को रेशम से लपेटना शुरू करती है |

अन्य मकड़ियाँ जाले उपयोग करने की बजाय अपने शिकार पर हमला और झपट्टा मारेंगी | नीचे हम ब्रिटिश ज़ेब्रा जंपिंग मकड़ी को ग्रीन्बोटल मक्खी का शिकार करते देख सकते हैं |

कुछ मकड़ियाँ बड़े जानवरों जैसे पक्षी, मेंढ़क और चमगादड़ों को भी मार सकती हैं |

मकड़ियाँ सिर्फ़ शिकारी नहीं हैं, वे शिकार भी होती हैं | पोर्टियाँ जंपिंग मकड़ी की एक जाति है जो अन्य मकड़ियों, ख़ासकर जाले बुनने वाली का शिकार करने में निपुण हैं | वे बुद्धिमत्ता स्तर दिखाते हुये जानवरों के शिकार के लिये ऐसे तरीके अपना सकती हैं जिन्हें पहले ना तो वे और ना ही उनके पूर्वजों ने उपयोग किया है | मकड़ियाँ भी पक्षी,मेंढ़कों और छिपकलियों द्वारा खायी जाती हैं | नीचे दिया गया वीडियो पोर्टिया मकड़ी का अन्य मकड़ियों के विरूद्ध प्रयोग किये गए शिकार तकनीकों को प्रदर्शित करता है |

ऑक्टोपस परुषकवची जैसे केकड़े और झींगे, सीप जानवर जैसे व्हेल्क और क्लैम, मछलियाँ, और अन्य कपालपादों, साथ ही अन्य ओक्टोपसों को खाते हैं | तली में रहने वाले ऑक्टोपस समुद्र तल पर चट्टानों और दरारों के आसपास घूमते हैं | जब ऑक्टोपस को एक केकड़ा दिखता है, तो वह ख़ुद को तेज़ी से उसकी ओर बढाती है और अपने मज़बूत हाथों से उसे अपने मुंह की ओर खींच लेती है | फ़िर वह केकड़े को अपने चोंच से फाड़ने से पहले उसमें पंगु बनाने वाला तरल डाल देता है | जब वे खोलदार घोंघे पर हमला करते हैं, तो ऑक्टोपस या तो खोल को अलग करने में बल लगाते हैं या वे खोल में एक छोटा सा छेद करते हैं और एक तंत्रिका विष अन्तःक्षेप कर देते हैं जो जानवर को मार देता है, इस तरह घोंघे की पेशियों का ढीला होना ऑक्टोपस को नर्म ऊतक को उतारने में मदद करता है | खोल में छेद करने में लगभग 3 घंटे लग सकते हैं |31

नीचे दिये गए वीडियो में हम ऑक्टोपस को पत्थर के कुंड (ताल) से केकड़ों को पकड़ने के लिए ऊपर आते, फ़िर उसे खाने के लिए अंदर ले जाते हुये देख सकते हैं |

कटलफ़िश (समुद्रफेनी) भी केकड़ों और मछलियों का शिकार करती है | वे अपनी त्वचा का रंग बदलने में सक्षम हैं या तो छलावरण (छल के लिये) या छोटे जानवरों जैसे केकड़ों को बदलते रंग दिखा कर सम्मोहित करने के लिए |32 अपनी आठ भुजाओं के अलावा उनमें दो विशेष तरह के चूषक शिकंजे होते हैं जिसे वे अत्यंत तेज़ी से केकड़ों और मछलियों को पकड़ कर उन्हें अपने धारदार चोंच में खींचने के लिये उपयोग कर सकते हैं, जो केकड़े के खोल को तोड़ सकता है | नीचे दिया गया वीडियो समुद्रफेनी (कटलफ़िश) का केकड़े को पकड़ना दिखाता है |

उनकी बुद्धिमत्ता और छलावरण (छल करने की) क्षमता के बावजूद, कपालपाद अपने परभक्षियों के प्रति दयनीय हैं जैसे शार्क, डॉल्फ़िन और अन्य कपालपद प्राणी । नीचे दिया गया वीडियो मोरे इल मछली का एक ऑक्टोपस को पकड़ना दिखाता है । ऑक्टोपस अपने शिकंजों से एक चट्टान से चिपटने का प्रयास करता है, लेकिन इल उसके लिए बहुत मज़बूत है । वे नब्बे सेकंड तक संघर्ष करते हैं जब तक कि इल ऑक्टोपस को उसके छिपे स्थान से खींच लेने में और उसे अपने खाने की मांद में ले जाने में सफल नहीं हो जाती ।

मध्यम आकार के जानवर

जब हम परभक्षियों के बारे में सोचते हैं, हमारा झुकाव बड़े जानवरों की ओर होता है । ये वही हैं जिन्हें हम प्राकृतिक वृत्ति चित्रों, जंगली जानवर उद्यान, संचार साधनों, और बच्चों की किताबों में देखते हैं । वे मनुष्यों के लिए भी ख़तरा खड़ा कर सकते हैं । वे अल्प संख्या में हैं, हालांकि, तब भी जब हम कशेरुकी जानवरों को ध्यान में रखें । परभक्षी कशेरूकियों की बड़ी संख्या शेरों, मगरमच्छों और भेड़ियों से बहुत छोटी होती है । यहां क़रीब 170000 जैगुआर,33 70000 तेंदुआ, 30000 काउगर (अमेरिकी तेंदुआ), 20000 शेर,34 7000 चीता और 3000 बाघ हैं । 35 इन्हें एक साथ लेने पर, बड़ी बिल्ली की प्रजाति की सबसे सामान्य प्रजाति में 300000 से कम इकाइयां शामिल हैं । इसके विपरीत, लगभग 100 मिलियन जंगली जानवरों सहित छोटी बिल्लियों की वैश्विक जनसंख्या क़रीब 200 से 600 मिलियन के बीच है, अकेले यूनाइटेड स्टेट्स में, घरेलू बिल्लियां 6.3 से 22.3बिलियन के बीच स्तनपाइयों और 1.3 से 4 बिलियन पक्षियों को मार देती हैं । 36 जिस किसी ने भी एक बिल्ली को चूहा मारते हुए देखा है वह प्रमाणित कर सकता है कि ये मौतें त्वरित नहीं हैं । अक्सर घरेलू बिल्लियां उनके द्वारा पकड़े गए जानवरों के साथ खेलेंगी जब तक कि वे आख़िरकार अपने घावों से मर ना जाएं ।

यद्यपि, बिल्लियां प्यारी और मनुष्यों के प्रति सामान्यतः अहानिकर होती हैं, वे चूहों के प्रति शक्तिशाली और ख़तरनाक परभक्षी होती हैं । इस परिप्रेक्ष्य में रखने पर, हमें इस मसले में जानवरों के आपेक्षिक आकर और वज़न के बारे में विचार करना चाहिए ।

हम यह देख सकते हैं यदि एक मनुष्य और एक शेर के बीच आकार और वज़न में अंतर को ध्यान में रखें । एक वयस्क नर शेर का वज़न लगभग 190 किलोग्राम और लंबाई 2.5 मीटर होती है । 37 एक वयस्क मनुष्य जिसका वजन 83.6 किलोग्राम और लंबाई 1.75 मीटर है को देखें । 38 यह वयस्क मनुष्य का वज़न शेर से 2.5 गुना कम और लंबाई या ऊंचाई 1.5 गुना कम दिखाता है । इसके विपरीत, एक औसत घरेलू बिल्ली का वज़न 4 से 5 किलोग्राम के बीच, ऊंचाई 25 सेंटीमीटर और लंबाई (पूंछ सहित) 46 सेंटीमीटर होती है, जबकि एक वयस्क घरेलू चूहा 10 सेंटीमीटर लंबा (पूंछ सहित) और 45 ग्राम वजनी हो सकता है । अर्थात् एक सामान्य घरेलू बिल्ली चूहे से 100 गुना भारी और 45 गुना लंबी होती है । चूहे पर एक बिल्ली द्वारा हमला होना मनुष्य पर शेर के हमले के मुक़ाबले काफ़ी बुरा हो सकता है । यहां सीख ये है कि मनुष्य के दृष्टिकोण से परभक्षी का छोटा आकर अप्रासंगिक है यदि उनके द्वारा हमला किए गए जानवरों के अनुभव को ध्यान में रखें । हमें इस बात से सावधान रहना चाहिए कि “छोटे” परभक्षियों के पंजों और दातों में शिकार जानवरों द्वारा सहे गए भय और पीड़ा को कम ना आंकें ।

मध्यम आकार के अन्य जानवर और छोटे कशेरुकी, मछलियों या पक्षियों द्वारा शिकार बनते हैं । उदाहरण के लिए, पाइक मछली, मेंढ़क, छोटे स्तनधारी और पक्षी साथ ही साथ अकशेरुकी जानवरों को खाते हैं । पाइक्स के पास अपने शिकारियों का भक्षण करने के विशेष तरीके हैं: वे उन्हें जबड़े के किनारों में पकड़ते हैं, फिर जानवर को चारों ओर घुमा कर पहले सिर और उन्हें पूरा निगल जाते हैं । बड़े जानवरों के लिए, उन्हें पकड़कर खाने से पहले वे उन्हें नीचे गिरा देंगी । नीचे दिया गया वीडियो स्पाइक का बत्तख़ के बच्चे को पकड़ना दिखाता है ।

कुछ पक्षी कई अन्य जानवरों पर भी शिकार करते हैं । बड़े पक्षी जिनमें बगुले शामिल हैं, जो ताज़े पानी और तटीय पक्षी हैं, अंटार्कटिका के अलावा प्रत्येक महाद्वीप में पाए जाते हैं, वे मछली, उभयचर, सरीसृप, परूषकवची, छोटे पक्षी और स्तनधारियों को खाते हैं । ये पक्षी ख़ासतौर से शिकार जानवरों को पूरा निगल जाते हैं, अक्सर जबकि वे जीवित रहते हैं, हालांकि कभी-कभी वे उन्हें पहले दबा देते हैं । पहला वीडियो बगुले को एक छिपकली पूरा निगलते हुए दिखाता है जबकि वह अभी जीवित है ।

दूसरे वीडियो में एक बगुला एक खरगोश खा रहा है जो प्रतीत होता है कि वह खरगोश को पानी के नीचे ले जा कर मार देता है जब तक की वह दबा रहता है ।

बड़े कशेरुकी

बड़े जानवरों के परभक्षी ज़्यादा जाने जाते हैं, लेकिन उनकी संख्या छोटे जानवरों के परभक्षियों से काफ़ी कम है । कई लोगों के लिए बड़ी बिल्लियां सबसे परिचित परभक्षी हैं । जानवरों को उनके द्वारा आक्रमण का सामना करने पर कैसा महसूस होता है, इसका एक अंदाज़ा देने के लिए, एक मादा शेर द्वारा एक ज़ेब्रा को मारने की स्पष्ट जानकारी नीचे मिलती है:

शेरनी अपने टेढ़े धारदार नाखून ज़ेब्रा के पिछले हिस्से में घुसा देती है । वह कठोर खाल को चीर कर और पेशी में गहरे तक कस लेती है । डरा हुआ जानवर ज़मीन पर गिरने से ज़ोर से चीख़ता है । थोड़ी ही देर बाद शेरनी इसके कूल्हों से पंजे हटाती है और ज़ेब्रा के गले पर अपने दांत गड़ाती है, डर की आवाज़ ख़त्म करते हुए । उसके भेदक दांत लंबे और पैने हैं, लेकिन ज़ेब्रा जैसा बड़ा जानवर जिसकी त्वचा के नीचे एक मोटी मांस की परत के साथ एक बड़ी गर्दन है, इसलिए, हालांकि दांत खाल को चेद कर देते हैं पर वे किसी बड़ी रक्त वाहिकाओं तक पहुंचने के लिए बहुत छोटे हैं । अतः वह अपने मजबूत जबड़ों से इसकी श्वसन नली कस के उसके फेफड़ों से ऑक्सीजन प्रवाह रोक कर, श्वसावरोधन द्वारा ज़ेब्रा को मार डालती है । यह एक धीमी मृत्यु है । यदि ये एक छोटा जानवर होता, मान लीजिए एक बड़े कुत्ते के आकार का थॉमसन गजेले (गज़ेला थॉमसन), तो वह गर्दन के पिछले हिस्से पर काटी होती, उसके भेदक दांत कशेरुकाओं और खोपड़ी के आधार को तोड दिए होते, जो तुरंत मौत का कारण है । इस तरह से ज़ेब्रा की मौत 5 या 6 मिनट तक खिंचेगी । 39

नीचे दिया गया वीडियो शेर का श्वसावरोधन द्वारा ज़ेब्रा को मारना दिखाता है । वह अब भी जीवित है जबकि शेर उसका मांस खाना शुरू करता है ।

हर साल शेरों द्वारा मारे गए जानवरों की संख्या को सिद्ध करना आसान नहीं है, लेकिन ज्ञात तथ्यों के आधार पर हम एक उचित अनुमान लगा सकते हैं । शेरों की वैश्विक जनसंख्या के आधार पर, हम आकलन करते हैं कि हर साल शेरों द्वारा लगभग 280000 जानवर मारे जाते हैं । 40

जब हम परभक्षियों के बारे में सोचते हैं तो ख़ासकर जो बड़े जानवर दिमाग़ में आते हैं वे मगरमच्छ है । बड़ी प्रजातियों जैसे नील नदी या खारे पानी के मगरमच्छ, बड़े स्तनधारियों जैसे हिरण, ज़ेब्रा और जिराफ को मार सकते हैं । ये घात लगाने वाले परभक्षी हैं, जिसका अर्थ है वे खुद को पानी के स्रोत के किनारे के पास में छिपा लेते हैं और जब एक जानवर उनके क्षेत्र में लक्ष्य पर आते हैं तो वे अचानक हमला करते हैं । जब कई मगरमच्छ एक अकेले जानवर पर हमला करते हैं, आमतौर पर वे उसे टुकड़ों में फाड़कर मारते हैं । जब एक अकेला मगरमच्छ एक बड़े जानवर जैसे ज़ेब्रा पर हमला करते हैं, तो वे या तो उसे अपने शक्तिशाली जबड़ों में असहाय रूप से पकड़ कर पानी में दबा देंगे या वे उसे पानी में बलपूर्वक रूप से पटक कर उसकी गर्दन तोड़ देंगे । यह आकलन किया गया है कि दुनिया में 250000 से 500000 नील या अफ़्रीकन मगरमच्छ, 200000 से 300000 ख़ारे पानी वाले मगरमच्छ और एक मिलियन से अधिक अमरीकी मगर हैं । 41 नीचे मगरमच्छों और मगर के अपने शिकार मारने के कुछ वीडियो हैं । पहला वीडियो मगरमच्छों के समूह के एक हिरण मारने का है ।

दूसरा वीडियो एक पानी के स्रोत पर एक मगरमच्छ का एक जिराफ़ पर घात लगाने का है । मारने के बाद, शरीर पर हक जमाने शेर आ जाते हैं ।

अगला वीडियो न्यू ऑर्लिंस दलदल में एक अमरीकन मगर को एक जंगली सूअर पकड़ने और दबाने को दिखाता है ।

वॉल प्लुमवुड, को ऑस्ट्रेलिया में काकादू राष्ट्रीय उद्यान में खारे पानी के मगर के हमले में जीवित बच गई थी, यहां वो पल फिर याद आते हैं जब वह छूटने का असफल प्रयास कर रही है तो मगरमच्छ ने देख लिया है ।

पानी से निकल के बड़े दांतों वाले जबड़ों की संदेहास्पद दृष्टि से मुझे धुंधलापन हो रहा था । फिर में पैरों के बीच बहुत तेज चिमटी में फंस गई और घुटनदायक नम अंधेरे में चकरा गई ।

फ़िर वह मगरमच्छ द्वारा खुद के “मृत्यु चक्र” में डूब जाने के अनुभव को बताती है ।

मगरमच्छ मृत्यु चक्र का अनुभव किए लोगों में से इसे बताने के लिए थोड़े लोग जीवित बचे । आवश्यक रूप से, यह अनुभव पूर्ण आतंक के शब्दों से परे है । मगरमच्छ का श्वसन और उपापचयन दीर्घकालीन संघर्ष के लायक नहीं है, इसलिए चक्र शिकार के प्रतिरोध से जल्द उबरने के लिए तैयार किया गया एक तीव्र प्रस्फोट है । फिर मगरमच्छ दुर्बलता से संघर्ष करते शिकार को पानी के नीचे दबा लेने तक पकड़ा रहता है । सहन शक्ति से परे, चक्र उबलते कालेपन का एक अपकेंद्रण था जो एक लंबे वक़्त तक था, लेकिन जब मुझे लगा कि मैं पूरी तरह खत्म हो गई, चक्र अचानक रुक गया । मेरे पांवों ने ज़मीन छुई, मेरे सिर ने सतह तोड़ दिया और हवा में खींच कर खांसते हुए, खुद को जीवित पाकर मैं मेरे थी । मगरमच्छ अब भी मुझे अपने नुकीले पंजों में पैरों के बीच पकड़े था । अपने क्षतविक्षत शरीर के बचने की संभावनाओं पर मैंने रोना शुरू ही किया था कि मगरमच्छ ने अचानक मुझे दूसरे मृत्यु चक्र में ले लिया ।

दूसरे मृत्यु चक्र के पश्चात्, वह एक डाल (शाखा) को पकड़ने में सफ़ल हुई । उसने उस पर लिपटे रहना और ख़ुद को इसके हिस्सों पर झुलाए रखना तय किया बजाय कि फिर से पानी के अंदर खिंच जाना ।

ख़ुद को फ़िर से घुमावदार, घुटनदायक नर्क में फेंक दिए जाने की बजाय मगरमच्छ को अपने शरीर का एक हिस्सा चीर लेने देने के संकल्प से मैंने डाल (शाखा) को पकड़ लिया ।

अंत में, वह मगरमच्छ के जबड़ों में जो घाव सहे उसे याद करती है ।

पहली पकड़ द्वारा घायल हुए ऊसंधी (पेट और जांघ के बीच का भाग) के क्षय को देखने के लिए मैंने अपने कपड़े नहीं हटाए । मैं जो देख सकती थी वो काफ़ी बुरा था । थोड़ी चर्बी, पट्टा और पेशियां दिखाने के साथ बाईं जांघ खुली लटकी थी और एक बीमार, स्तब्ध आभास मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रहा था । मैंने घावों को बांधने के लिए कुछ कपड़े फाड़े और खून बहती जांघ पर एक रक्तबंध (पट्टी) बनाया । 42

बड़े जानवर भी जीवित खाए जा सकते हैं ।

कुछ परभक्षी अन्य जानवरों को उन्हें पहले मारने कि बजाय जब वे जीवित रहते हैं तभी खाना पसंद करते हैं । अक्सर लकड़बग्घा और अफ़्रीकन जंगली कुत्ते ऐसा करते हैं, जल्दी से उनकी आंतें निकाल कर या उनके जननांगों को पहले खा कर । नीचे दिए गए पहले वीडियो में एक इंपाला (हिरण) जंगली कुत्तों के समूह के ख़िलाफ़ लड़ता है तब भी जब वे उसकी इच्छाशक्ति को डिगा चुके हैं । वे उसे वश में करके, जीवित खा जाते हैं ।

दूसरे वीडियो में, एक लकड़बग्घा एक हिरण को ज़मीन पर गिरा कर और उसे जीवित खा जाता है ।

नीचे दिए गए साक्ष्य एक फोटोग्राफर जो एक हाथी के जीवित खाए जाने का गवाह है, द्वारा पेश है । टिप्पणी यहां प्रदर्शित चित्र से संबद्ध है ।

यह दृश्य प्रकृति में मेरे द्वारा देखे दृश्यों में शायद सबसे चौंकाने वाला और भावात्मक रूप से कठिन है । यह युवा हाथी कीचड़ में फंस गया था और अपने अभिभावकों द्वारा छोड़ दिया गया है । इसे लकड़बग्घों ने पाया और उसे जीवित खाना शुरू किया । जाहिर है बछड़ा हिल नहीं सकता था और लकड़बग्घा सूंड से शुरू कर चुका था और उससे पहले ही उसके सिर और मांस खा गया, जब तक हमने अन्ततः रेंजर को बच्चे को मृत्यु निद्रा में डालने के लिए, ज़ाहिर है सभी नियमों और अधिनियम के ख़िलाफ़ हस्तक्षेप ना करने के लिए मनाया, अन्ततः इसके दु:खद अंत से छूटने के पहले, वह कई घंटों के लिए तड़पा ।

हमने हाथी को उसी वक़्त पाया जब सूंड खाई जा चुकी थी और मैं केवल थोड़ी सी तस्वीरें ले सका । इस समय पर, बछड़े के लिए बहुत देर हो चुकी थी लेकिन उसने जाने नहीं दिया…. लगभग 2 घंटे बाद हाथी अब भी जीवित था और उस लकड़बग्घे ने उसकी आंखें खा चुकी थी और उसकी खोपड़ी त्वचारहित कर चुका था । बछड़ा अब भी लड़ रहा था और लगातार मदद के लिए चिल्ला रहा था ।

जैसा कि नीचे दिया वीडियो दिखाता है, कोमोडो ड्रैगन भी अपने शिकार को जीवित खाने के लिए जाने जाते हैं ।

नीचे दिए गए वीडियो में, हैं एक भालू को एक बारहसिंगा के बच्चे को जीवित खाते हुए देखते हैं ।

जानवरों की पीड़ा के अन्य तरीके

जो जानवर पकड़े और खाए जाने से बचते हैं वे भी अपने वातावरण में परभक्षियों की उपस्थिति से कई तरीकों से पीड़ित होते हैं । जब वे परभक्षियों के साथ वातावरण साझा करते हैं, तो हो सकता है वे मानसिक संकट, खराब पोषण, बच्चों की मृत्यु, और चोट से पीड़ित हों । नीचे शिकार (परभक्षण) से बच गए जानवरों के पीड़ित होने के तरीकों में कुछ विस्तृत विवरण हैं ।

मनोवैज्ञानिक पीड़ा

बहुत सारे अध्ययन से परभक्षियों कारण व्यवहार पर होने वाले प्रभाव प्रदर्शित हुए हैं । 43 गीत गाने वाली चिड़िया ने यह दिखाया है कि जब वे परभक्षण का ख़तरा महसूस करती हैं तो उनके बच्चे पैदा होना 40% तक घट जाता है । 44

कभी-कभी यह समझा जाता है कि जानवरों द्वारा परभक्षियों की उपस्थिति में अनुभव किया गया भय “आवश्यक रूप से तीव्र और अल्पकालिक” होता है,45 अर्थात् ये भय की प्रतिक्रिया उनके लिए सामान्य स्थिति में आने से पहले स्थिति का सामना करने के लिए ज़रूरी समय काल तक ही रहती है । इसका अनुमान लगाने के लिए जबकि भय के स्थाई प्रभाव का जानवरों जो शिकार हैं की पुनरूत्पादन स्वास्थ्य को नष्ट करता है, ऐसी लंबी अवधि कुअनुकूल होगी । 46

हालांकि यह दृष्टिकोण लंबे समय तक टिकने लायक नहीं है, क्योंकि अध्ययन से यह प्रदर्शित हुए है कि परभक्षक- प्रेरित भय जंगली जानवरों में लंबे समय तक टिकने वाला प्रभाव डालता है । 47 शिकार किए गए जंगली जानवरों में चिरकालिक भय परभक्षी वातावरण जिसमें वे विकसित हुए हैं, के प्रति एक अनुकूलनीय विकासवादी प्रक्रिया है । यह तब से है जब से परभक्षियों द्वारा शिकार किये गए जानवर मार दिए जाने के नियमित ख़तरे में होते हैं, जो भय प्रतिक्रियाएं वे प्रदर्शित करते हैं वे अनुकूलनीय हैं, क्योंकि वे जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं । यद्यपि वैयक्तिक जानवरों के लिए अरुचिकर स्पष्टता जो पी टी एस डी जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, एक विकासशील परिप्रेक्ष्य से ये प्रतिक्रियाएं पुनरूत्पादन करने के लिए पर्याप्त समय अवधि तक जानवरों के जीवित बचे रहने को पुख़्ता करने के लिए एक ज़रूरी तालमेल है । 48 जानवरों में परभक्षी- उत्प्रेरित तनाव और पी टी एस डी और मनुष्यों में तनाव स्थाई (चिरकालिक) के बीच समानताएं दी गई हैं, साथ ही परभक्षियों पर व्यावहारिक और तंत्रिकीय (तंत्रिका संबंधी) प्रभावों के विवरण का सही दस्तावेज़, ऐसा संभावित रूप से प्रतीत होता है कि स्थाई (चिरकालिक भय) बड़े तनाव का कारक होता है ।

परभक्षी कैसे पीड़ित होते हैं

सारी हानियां भुगतने वाले शिकार जानवरों और सारे लाभ प्राप्त करने वाले परभक्षियों के साथ परभक्षण की हानिकारक प्रकृति एकतरफा मामला नहीं है । परभक्षियों का जीवन भी कठिनाइयों से भरा है, जिनमें से कई के जीवन परभक्षी ढंग पर उनके आसरे का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष परिणाम है ।

भुखमरी

परभक्षी (शिकारी) जानवरों द्वारा सामना करने वाली हानियों में से सबसे आम ख़तरा भुखमरी है । परभक्षियों के लिए भूख से मरना सामान्य है क्योंकि परभक्षी जनसंख्या के शिकार के लिए या तो पर्याप्त जानवर नहीं हैं या सफलतापूर्वक शिकार करने के लिए वे बूढ़े, घायल या बीमार हो चुके हैं । बूढ़े नर शेर ख़ासतौर से भुखमरी से दयनीय होते हैं जब वे छोटे शेरों द्वारा अपने अभिमान से बाहर कर दिए जाते हैं । आमतौर पर, अभिमानी तौर पर मादा शेर अधिकतर शिकार करती हैं । अक्सर एक अकेला नर (शेर) अपने लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त करने में असमर्थ होता है । शेर के लिए भूख से मरने में कई सप्ताह लग सकते हैं ।

यहां तक कि शेरों का एक साथ अभिमान स्वरूप शिकार करना भुखमरी का सामना कर सकता है । नीचे दिया गया वीडियो एक गौरवशाली भूख प्रदर्शित करता है ।

माता ऑक्टोपस अपने बच्चों की रक्षा करते हुए भूख से मरती है, यहां तक कि जब उसके लिए भोजन उपलब्ध है । यह व्यवहार ऑक्टोपस की दृष्टिग्रंथि से हार्मोन्स का उत्सर्जन इसका कारक प्रतीत होता है । यह ज्ञात नहीं है कि यह आत्मघाती व्यवहार क्यों प्रवृत्त हुए है, यद्यपि यह अनुमान लगाया गया है कि यह बच्चों की नरभक्षिता को नज़रंदाज़ करने कि एक क्रियाविधि हो । 49

परभक्षी कितनी बार भूख से मरते हैं? बिना सरल जवाब के यह एक जटिल सवाल है । यह प्रजातियों, स्थानीय वातावरण, वर्ष और शिकार जनसंख्या द्वारा बदलता है । हम एक बात जानते हैं कि कई पारिस्थितिक तंत्र में परभक्षी और शिकार की सापेक्षिक जनसंख्या स्थाई नहीं है; बल्कि उनकी संख्या चक्र में बढ़ती और घटती है । जब शिकार कि जनसंख्या बढ़ती है, तो परभक्षियों की संख्या बढ़ती है क्योंकि यहां शिकार करने के लिए कई जानवर हैं । हालांकि, जब परभक्षी जनसंख्या बढ़ती है, तो ये कई सारे जानवरों का शिकार करते हैं जिससे शिकार जनसंख्या फ़िर से कम होने लगती है । जब एक बार शिकार जनसंख्या गिरती है, परभक्षी जनसंख्या भी गिरती है जब परभक्षी भूख से मरते हैं । फ़िर जब एक बार परभक्षी जनसंख्या गिरती है, तब शिकार जनसंख्या फ़िर से बढ़नी शुरू हो जाती है । परभक्षी–शिकार के अस्थाई, चक्रीय प्रकृति का अर्थ है कि भूख परभक्षियों के लिए एक सामान्य अनुभव है ।

चोट

शिकार करना एक ख़तरनाक क्रियाकलाप है । परभक्षियों के लिए शिकार के दौरान चोटिल होना सामान्य है, या तो उनके आक्रमण किए गए जानवर के बचाव द्वारा, उनके द्वारा मारे गए जानवर को लेने के लिए अन्य परभक्षियों के आक्रमण द्वारा, सरल रूप में कठिन इलाकों में तेज़ रफ़्तार से पीछा करने में अपनी स्थिरता खोने के द्वारा । यदि चोट परभक्षी को शिकार करने या खाने से रोकने के लिए पर्याप्त गंभीर है, तो फिर वह भुखमरी से मर सकता है । कभी-कभी शिकारी उसे भावी शिकार द्वारा सीधे मार दिया जाता है । यहां शेर के भैंसों से चोटिल होने के दो वीडियो हैं । पहले में, शेर भैंस की सींग द्वारा घोंप दिया गया है, एक चोट जिससे उसका बचना असम्भाव्य है ।

दूसरे में, वह भैंसों के झुण्ड द्वारा मृत्यु के लिए कुचल दी गई है ।

नीचे दी गई तस्वीर एक भेड़िए कि खोपड़ी है जो यलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान में जन्मा और मरा था । उद्यान में भेड़ियों पर क़रीब से निरीक्षण और अध्ययन किया गया है, इसलिए उसका जीवन कैसा था इसका हमें अच्छा अंदाज़ा है । वह अप्रैल 2010 में पैदा हुआ था । उसने बचपन में अपना जन्म संकुल छोड़ दिया, एक संगी ढूंढ़ा और एक नया संकुल शुरू किया, जिसकी कई वर्षों तक अगुवाई किया । उस पहले साल में, उसने अपने संगी के साथ नस्ल बढ़ाई । अगले वर्ष, उनके बच्चों के साथ उसकी संगी मर गई । अप्रैल 2016 में वह स्पष्ट रूप से बुरी हालत में था । उसने वज़न खो दिया, लंगड़ाना शुरू कर दिया, और हमेशा अपने संकुल के साथ नहीं था । सितंबर में, वह अकेले एक मादा बारहसिंगा पर आक्रमण करने और मारने का साक्षी था । वह अवश्य ही साहसिकता द्वारा दुस्साहसी कार्य करने के लिए प्रेरित हुआ था, जबकि आमतौर ओर एक स्वस्थ बारहसिंगा को संभालने के लिए कम से कम चार भेड़ियों की ज़रूरत होती है । इसके बाद जल्द ही, एक प्रतिद्वंद्वी संकुल ने उसे मार डाला और बारहसिंगा का शरीर अपने लिए ले गए । एक शव-परीक्षा हुई और यह पाया गया कि उसका जबड़ा टूटा हुआ था, और कई महीनों से, संभाव्य रूप से एक बारहसिंगा या बायसन के पदाघात से वह अवश्य ही गहरी पीड़ा में था, और ज़ाहिर तौर पर चोट ने उसके स्वयं को भोजन कराने की क्षमता पर प्रभाव डाला – उसका वज़न सामान्य से 2/3 हो गया था । चोट गंभीर थी और व्यापक तौर पर पथराने के बावजूद (शरीर की हड्डी तोड़ने की उपचारात्मक विधि), घाव कभी सही रूप में ठीक नहीं हुआ । उसने वज़न खो दिया, लंगड़ाना शुरू कर दिया, और हमेशा अपने संकुल के साथ नहीं था । सितंबर में, वह अकेले एक मादा बारहसिंगा पर आक्रमण करने और मारने का साक्षी था । वह अवश्य ही साहसिकता द्वारा दुस्साहसी कार्य करने के लिए प्रेरित हुआ था, जबकि आमतौर ओर एक स्वस्थ बारहसिंगा को संभालने के लिए कम से कम चार भेड़ियों की ज़रूरत होती है । इसके बाद जल्द ही, एक प्रतिद्वंद्वी संकुल ने उसे मार डाला और बारहसिंगा का शरीर अपने लिए ले गए । एक शव-परीक्षा हुई और यह पाया गया कि उसका जबड़ा टूटा हुआ था, और कई महीनों से, संभाव्य रूप से एक बारहसिंगा या बायसन के पदाघात से वह अवश्य ही गहरी पीड़ा में था, और ज़ाहिर तौर पर चोट ने उसके स्वयं को भोजन कराने की क्षमता पर प्रभाव डाला – उसका वज़न सामान्य से 2/3 हो गया था । चोट गंभीर थी और व्यापक तौर पर पथराने के बावजूद (शरीर की हड्डी तोड़ने की उपचारात्मक विधि), घाव कभी सही रूप में ठीक नहीं हुआ । 50

निष्कर्ष के लिए, प्रकृति में प्रतिरोधपूर्ण संबंध जैसे कि परजीविता और परभक्षण सर्वव्यापी है । वे हर स्तर पर पाए जाते हैं, कीड़ों से लेकर स्तनधारियों और प्रत्येक रहने योग्य वातावरण में ।

जंगल में जानवरों की पीड़ा के तरीकों के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारा मुख्य पृष्ठ “जंगल में जानवरों की स्थिति” देखें । अन्य प्रकार के प्रतिरोधपूर्ण संबंधों के बारे में जानकारी के लिए समान प्रजाति के जानवरों के बीच लड़ाई की चर्चा और यौन द्वंद्व देखें ।


आगे की पढाई

Abrams, P. A. & Matsuda, H. (1993) “Effects of adaptive predatory and anti-predator behaviour in a two-prey one-predator system”, Evolutionary Ecology, 7, pp. 312-326.

Animals eating animals (2010-2014) Animals eating animals: Nature at its finest can be a thing of beauty. Here’s images of the carnage that results, animalseatinganimals.com [अभिगमन तिथि 30 मई 2014].

Beddington, J. R. & Hammond, P. S. (1977) “On the dynamics of host-parasite-hyperparasite interactions”, Journal of Animal Ecology, 46, pp. 811-821 [अभिगमन तिथि 16 दिसंबर 2016].

Biro, P. A.; Abrahams, M. V.; Post, J. R. & Parkinson, E. A. (2004) “Predators select against high growth rates and risk-taking behaviour in domestic trout populations”, Proceedings of the Royal Society London B: Biological Sciences, 271, pp. 2233-2237 [अभिगमन तिथि 3 मार्च 2014].

Blamires, S. J.; Piorkowski, D.; Chuang, A.; Tseng, Y.-H.; Toft, S. & Tso, I.-M. (2015) “Can differential nutrient extraction explain property variations in a predatory trap?”, Royal Society Open Science, 2 [अभिगमन तिथि 22 मार्च 2015].

Boesch, C. (1991) “The effect of leopard predation on grouping patterns by forest chimpanzees”, Behaviour, 117, pp. 220-142.

Bonta, M.; Gosford, R.; Eussen, D.; Ferguson, N.; Loveless, E. & Witwer, M. (2017) “Intentional fire-spreading by “firehawk” raptors in Northern Australia”, Journal of Ethnobiology, 37, pp. 700-718.

Brooker, R. J.; Widmaier, E. P.; Graham, L. E. & Stiling, P. D. (2012 [2011]) Biology: For Bio 211 and 212, 2nd ed., New York: McGraw-Hill.

Brown, J. S.; Laundre, J. W. & Gurung, M. (1999) “The ecology of fear: Optimal foraging, game theory, and trophic interactions”, Journal of Mammalogy, 80, pp. 385-399.

Bunke, M.; Alexander, M. E.; Dick, J. T. A.; Hatcher, M. J.; Paterson, R. & Dunn, A. M. (2015) “Eaten alive: Cannibalism is enhanced by parasites”, Royal Society Open Science, 2 [अभिगमन तिथि 22 मार्च 2015].

Cressman, R. (2006) “Uninvadability in N-species frequency models for resident-mutant systems with discrete or continuous time”, Theoretical Population Biology, 69, pp. 253-262.

Cressman, R. & Garay, J. (2003a) “Evolutionary stability in Lotka-Volterra systems”, Journal of Theoretical Biology, 222, pp. 233-245.

Cressman, R. & Garay, J. (2003b) “Stability in N-species coevolutionary systems”, Theoretical Population Biology, 64, pp. 519-533.

Cressman, R. & Garay, J. (2006) “A game-theoretic model for punctuated equilibrium: Species invasion and stasis through coevolution”, Biosystems, 84, pp. 1-14.

Edmunds, M. (1974) Defence in animals: A survey of anti-predator defences, New York: Longman.

Eisenberg, J. N. S.; Washburn, J. O. & Schreiber, S. J. (2000) “Generalist feeding behaviour of Aedes sierrensis larvae and their effects on protozoan populations”, Ecology, 81, pp. 921-935 [अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2014].

Eshel, I.; Sansone, E. & Shaked, A. (2006) “Gregarious behaviour of evasive prey”, Journal of Mathematical Biology, 52, pp. 595-612.

Faria, C. (2016) Animal ethics goes wild: The problem of wild animal suffering and intervention in nature, Barcelona: Universitat Pompeu Fabra, pp. 75-85.

Fiksen, Ø.; Eliassen, S. & Titelman, J. (2005) “Multiple predators in the pelagic: Modelling behavioural cascades”, Journal of Animal Ecology, 74, pp. 423-429 [अभिगमन तिथि 14 जनवरी 2014].

Godfray, H. C. J. (2004) “Parasitoids”, Current Biology, 14 (12), R456.

Hochberg, M. E. & Holt, R. D. (1995) “Refuge evolution and the population dynamics of coupled host-parasitoid associations”, Evolutionary Ecology, 9, pp. 633-661.

Hofbauer, J. & Sigmund, K. (1998) Evolutionary games and population dynamics, Cambridge: Cambridge University Press.

Holbrook, S. J. & Schmitt, R. J. (2002) “Competition for shelter space causes density-dependent predation mortality in damselfishes”, Ecology, 83, pp. 2855-2868 [अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2013].

Holt, R. D. (1977) “Predation, apparent competition, and structure of prey communities”, Theoretical Population Biology, 12, pp. 197-229.

Holt, R. D. (1985) “Population dynamics in two-patch environments: Some anomalous consequences of an optimal habitat distribution”, Theoretical Population Biology, 28, pp. 181-208.

Holt, R. D. & Lawton, J. H. (1994) “The ecological consequences of shared natural enemies”, Annual Review of Ecology and Systematics, 25, pp. 495-520.

Hopla, C. E.; Durden, L. A. & Keirans, J. E. (1994) “Ectoparasites and classification”, Revue scientifique et technique (International Office of Epizootics), 13, pp. 985-1017.

Huffaker, C. B. (1958) “Experimental studies on predation: dispersion factors and predator-prey oscillations”, Hilgardia, 27, pp. 343-383.

Hughes, R. N. & Taylor, M. J. (1997) “Genotype-enviromental interaction expressed in the foraging behaviour of dogwhelks, Nucella lapillus (L.) under simulated environmental hazard”, Proceedings of the Royal Society London B, 264, pp. 417-422 [अभिगमन तिथि 2 जनवरी 2014].

Internet Center for Wildlife Damage Management (2005) “Livestock and animal predation identification”, icwdm.org [अभिगमन तिथि 4 जून 2013].

Jervis, M. A. & Kidd, N. A. C. (1986) “Host-feeding strategies in hymenopteran parasitoids”, Biological Reviews, 61, pp. 395-434.

Leeuwen, E. van; Jansen, V. A. A. & Bright, P. W. (2007) “How population dynamics shape the functional response in a one-predator-two-prey system”, Ecology, 88, pp. 1571-1581 [अभिगमन तिथि 13 मार्च 2014].

Marrow, P.; Dieckmann, U. & Law, R. (1996) “Evolutionary dynamics of predator-prey systems: An ecological perspective”, Journal of Mathematical Biology, 34, pp. 556-578.

McMahan, J. (2010a) “The meat eaters”, The New York Times (online), 19 September [अभिगमन तिथि 23 मार्च 2013].

McMahan, J. (2010b) “Predators: A response”, The New York Times (online), 28 September [अभिगमन तिथि 12 मई 2013].

McNamara, J. M. & Houston, A. I. (1992) “Risk-sensitive foraging: A review of the theory”, Bulletin of Mathematical Biology, 54, pp. 355-378.

Mnaya, B.; Wolanski, E. & Kiwango, Y. (2006) “Papyrus wetlands a lunar-modulated refuge for aquatic fauna”, Wetlands Ecology and Management, 14, pp. 359-363.

Olivier, D. (2016) “On the right of predators to life”, David Olivier’s blog, April 30 [अभिगमन तिथि 16 दिसंबर 2016].

Pielou, E. C. (1977) Mathematical ecology, New York: Wiley.

Roemer, G. W. & Donlan, C. J. (2004) “Biology, policy and law in endangered species conservation: I. The case history of the Island Fox on the Northern Channel Islands”, Endangered Species UPDATE, 21, pp. 23-31.

Roemer, G. W.; Donlan, C. J. & Courchamp, F. (2002) “Golden eagles, feral pigs, and insular carnivores: How exotic species turn native predators into prey”, Proceedings of the National Academy of Sciences of the USA (PNAS), 99, pp. 791-796 [अभिगमन तिथि 26 दिसंबर 2013].

Ruxton, G. D. (1995) “Short term refuge use and stability of predator-prey models”, Theoretical Population Biology, 47, pp. 1-17.

Saleem, M.; Sadiyal, A. H.; Prasetyo, E. & Arora, P. R. (2006) “Evolutionarily stable strategies for defensive switching”, Applied Mathematics and Computation, 177, pp. 697-713.

Sapontzis, S. F. (1984) “Predation”, Ethics and Animals, 5, pp. 27-38 [अभिगमन तिथि 21 February 2013].

Schumacher, J. (2006) “Selected infectious diseases of wild reptiles and amphibians”, Journal of Exotic Pet Medicine, 15, pp. 18-24.

Schutt, B. (2017) Cannibalism: A perfectly natural history, Chapel Hill: Algonquin Books of Chapel Hill.

Sih, A. (1987) “Prey refuges and predator-prey stability”, Theoretical Population Biology, 31, pp. 1-12.

Vincent, T. L. & Brown, J. S. (2005) Evolutionary game theory, natural selection and Darwinian dynamics, Cambridge: Cambridge University Press.

Voigt, K. & Voigt, S. (2015) Cats and wildlife, Wight: Wight Nature Wildlife Rescue and Rehabilitation.

Williams, T. M.; Kendall, T. L.; Richter, B. P.; Ribeiro-French, C. R.; John, J. S.; Odell, K. L.; Losch, B. A.; Feuerbach, D. A. & Stamper, M. A. (2017) “Swimming and diving energetics in dolphins: A stroke-by-stroke analysis for predicting the cost of flight responses in wild odontocetes”, Journal of Experimental Biology, 220, pp. 1135-1145 [अभिगमन तिथि 2 मई 2017].

Ylönen, H.; Pech, R. & Davis, S. (2003) “Heterogeneous landscapes and the role of refuge on the population dynamics of a specialist predator and its prey”, Evolutionary Ecology, 17, pp. 349-369.


नोट्स

1 Minelli, A. (2008) “Predation”, S. E. Jørgensen (ed.) Encyclopedia of ecology, Amsterdam: Elsevier, pp. 2923-2929.

2 मरीन इकोलॉजिस्ट केविन लॉफ़र्टी परजीवीवाद को “पृथ्वी पर सबसे लोकप्रिय जीवन शैली” कहते हैं, यह देखते हुए कि जानवरों और पौधों की सभी प्रजातियों में से लगभग आधी अपने जीवनचक्र में किसी न किसी स्तर पर परजीवी हैं, और कुछ, यदि कोई है, तो प्रजातियों को किसी भी परजीवी से संक्रमित नहीं किया जाता है । Lafferty, K. D. (2008) “Parasites”, Jørgensen, S. E. (ed) Encyclopedia of ecology, op. cit., pp. 2640-2644.

3 Poulin, R. & Randhawa, H. S. (2015) “Evolution of parasitism along convergent lines: From ecology to genomics”, Parasitology, 142 (suppl. 1), pp. S6–S15 [अभिगमन तिथि 4 दिसंबर 2019].

4 Gopko, M.; Mikheev, V. N. & Taskinen, J. (2017) “Deterioration of basic components of the anti-predator behavior in fish harboring eye fluke larvae”, Behavioral Ecology and Sociobiology, 71, 68.

5 Otranto, D. & Traversa, D. (2002) “A review of dicrocoeliosis of ruminants including recent advances in the diagnosis and treatment”, Veterinary Parasitology, 107: pp. 317-335.

6 Zimmler, C. (2003) Parasite Rex: Inside the bizarre world of nature’s most dangerous creatures, New York: Atria.

7 Sullivan, D. J. & Völkl, W. (1999) “Hyperparasitism: Multitrophic ecology and behaviour”, Annual Review of Entomology, 44, pp. 291-315. Van Alphen, J. J. & Visser, M. E. (1990) “Superparasitism as an adaptive strategy for insect parasitoids”, Annual Review of Entomology, 35, pp. 59-79.

8 Gortázar, C.; Ferroglio, E.; Höfle, U.; Frölich, K. & Vicente, J. (2007) “Diseases shared between wildlife and livestock: A European perspective”, European Journal of Wildlife Research, 53, pp. 241-256.

9 Ibid.

10 Ibid. Martin, A. M.; Fraser, T. A.; Lesku, J. A.; Simpson, K.; Roberts, G. L.; Garvey, J.; Polkinghorne, A.; Burridgeand, C. P. & Carver, S. (2018) “The cascading pathogenic consequences of Sarcoptes scabiei infection that manifest in host disease”, Royal Society Open Science, 5 (4) [अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2019].

11 Simpson, V. R. (2002) “Wild animals as reservoirs of infectious diseases in the UK”, The Veterinary Journal, 163, pp. 128-146.

12 Ibid.

13 Ibid.

14 Martin, C.; Pastoret, P. P.; Brochier, B.; Humblet, M. F. & Saegerman, C. (2011) “A survey of the transmission of infectious diseases/infections between wild and domestic ungulates in Europe”, Veterinary Research, 42 [अभिगमन तिथि 21 अक्टूबर 2016].

15 Graczyk, T. K.; Fayer, R.; Trout, J. M.; Lewis, E. J.; Farley, C. A.; Sulaiman, I. & Lal, A. A. (1998) “Giardia sp. cysts and infectious Cryptosporidium parvum oocysts in the feces of migratory Canada geese (Branta canadensis)”, Applied and Environmental Microbiology, 64, pp. 2736-2738 [अभिगमन तिथि 4 अगस्त 2020].

16 Cole, R. A. & Friend, M. (1999) Parasites and parisitic diseases (field manual of wildlife diseases), sec. 5, Lincoln: University of Nebraska [अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2014].

17 Ibid.

18 Ibid.

19 Jovani, R.; Amo, L.; Arriero, E.; Krone, O.; Marzal, A.; Shurulinkov, P.; Tomás, G.; Sol, D.; Hagen, J.; López, P.; Martín, J.; Navarro, C. & Torres, J. (2004) “Double gametocyte infections in apicomplexan parasites of birds and reptiles”, Parasitology Research, 94, pp. 155-157.

20 Bradford, C. M.; Denver, M. C., & Cranfield, M. R. (2008) “Development of a polymerase chain reaction test for Entamoeba invadens”, Journal Zoological Wildlife Medicine, 39, pp. 201-207.

21 Tkach, V. V.; Snyder, S. D.; Vaughan, J. A. (2009) “A new species of blood fluke (Digenea: Spirorchiidae) from the Malayan Box turtle, Cuora amboinensis (Cryptodira: Geomydidae) in Thailand”, Journal of Parasitology, 95, pp. 743-746.

22 Chen, H.; Kuo, R. J.; Chang, T. C.; Hus, C. K.; Bray, R. A. & Cheng, I. J. (2012) “Fluke (Spirorchiidae) infections in sea turtles stranded on Taiwan: Prevalence and pathology”, Journal of Parasitology, 98, pp. 437-439.

23 Weng, J. L., & Barrantes Montero, G. (2007) “Natural history and larval behavior of the parasitoid Zatypota petronae (Hymenoptera: Ichneumonidae)”, Journal of Hymenoptera Research, 16, pp. 327-336; Komatsu, T. & Konishi, K. (2010) “Parasitic behaviors of two ant parasitoid wasps (Ichneumonidae: Hybrizontinae)”, Sociobiology, 56, pp. 575-584.

24 Begon, M.; Townsend, C. R. & Harper, J. L. (2006) Ecology: From individuals to ecosystems, Oxford: Blackwell, p. 266.

25 Minelli, A. (2008) “Predation”, S. E. Jørgensen (ed.) Encyclopedia of ecology, op. cit.

26 National Museum of Natural History & Smithsonian Institute (2018) “Numbers of insects (species and individuals)”, Information Sheet, 18 [अभिगमन तिथि 20 जुलाई 2019].

27 Pedigo, L. & Rice, M. (2009 [1989]) Entomology and pest management, 6th ed., Long Grove Illinois: Waveland, p. 1.

28 Bumblebee.org (2019) “Predators of bumblebees”, Bumblebee.org [अभिगमन तिथि 12 दिसंबर 2019].

29 Nyffeler, M.; Şekercioğlu, Ç. H. & Whelan, C. J. (2018) “Insectivorous birds consume an estimated 400–500 million tons of prey annually”, The Science of Nature, 105 [अभिगमन तिथि 2 दिसंबर 2019].

30 अगर हम मकड़ियों द्वारा शिकार किए गए किसी जानवर के औसत वजन के रूप में एक औसत हाउसफुल (12 mg) का वजन लेते हैं, और हर साल मारे गए 400 मिलियन टन जानवरों के निचले अनुमान में इसे विभाजित करते हैं, तो हमें 33 मिलियन चौपायों के मारे जाने का चौंका देने वाला आंकड़ा मिलता है । हर साल मकड़ियों द्वारा ।

31 Carefoot, T. (2011) “Learn about octopuses and relatives”, A Snail’s Odyssey [अभिगमन तिथि 23 September 2019].

32 How, M. J.; Norman, M. D.; Finn, J.; Chung, W. S. & Marshall, N. J. (2017) “Dynamic skin patterns in cephalopods”, Frontiers in Physiology, 8 [accessed 28 जुलाई 2019]

33 Jędrzejewski, W.; Robinson, H. S.; Abarca, M.; Zeller, K. A.; Velasquez, G.; Paemelaere, E. A. D.; Goldberg, J. F.; Payan, E.; Hoogesteijn, R.; Boede, E. O.; Schmidt, K.; Lampo, M.; Viloria, Á. L.; Carreño, R.; Robinson, N.; Lukacs, P. M.; Nowak, J. J.; Salom-Pérez, R.; Castañeda, F.; Boron, V. & Quigley, H. (2018) “Estimating large carnivore populations at global scale based on spatial predictions of density and distribution – Application to the jaguar (Panthera onca)”, PLOS ONE, 13 (3) [अभिगमन तिथि 14 नवंबर 2019].

34 Cougar Network (2015) “Cougar facts”, Cougar Network [अभिगमन तिथि 28 September 2019].

35 Goodrich, J.; Lynam, A.; Miquelle, D.; Wibisono, H.; Kawanishi, K.; Pattanavibool, A.; Htun, S.; Tempa, T.; Karki, J.; Jhala, Y. & Karanth, U. (2014) “Tiger: Panthera tigris”, The IUCN Red List of Threatened Species, 20 April [अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2019].

36 संयुक्त राज्य अमेरिका की बिल्ली की आबादी के एक अनुमान के लिए देखें Loss, S. R.; Will, T. & Marra, P. P. (2013) “The impact of free-ranging domestic cats on wildlife of the United States”, Nature Communications, 4 [अभिगमन तिथि 2 नवंबर 2019]. दुनिया में उनकी आबादी के अनुमान के लिए देख Migiro, G. (2018) “How many cats are there in the world?”, worldatlas.com, November 7 [अभिगमन तिथि 14 नवंबर 2019].

37 Bradford, A (2019) “Lions: The uniquely social ‘king of the jungle’”, Live Science, August 19 [अभिगमन तिथि 24 अक्टूबर 2019].

38 BBC News Services (2010) “Statistics reveal Britain’s ‘Mr and Mrs Average’”, BBC News, 13 October [अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2019].

39 McGowan, C. (1997) The raptor and the lamb: Predators and prey in the living world, New York: Henry Holt, pp. 12-13.

40 वैश्विक जंगली शेर की आबादी लगभग 20,000 व्यक्तियों की है । औसतन, एक वयस्क शेर को प्रति दिन लगभग 8 किलो मांस की आवश्यकता होती है । 8 किलो को 365 से गुणा करने पर हमें प्रति वर्ष प्रति शेर न्यूनतम 2,920 किलोग्राम मांस मिलता है । अधिकांश जानवर जो खाते हैं उनका वजन 50 से 300 किलोग्राम के बीच होता है । उच्च पक्ष पर बात करते हुए, हम प्रति व्यक्ति 200 किलोग्राम खाद्य मांस का अनुमान लगा सकते हैं । इसका मतलब है कि प्रत्येक वयस्क शेर प्रति वर्ष लगभग 14 जानवरों को मार देगा । शेरों की संख्या के हिसाब से प्रति वर्ष इन 14 को मारने से हमें प्रति वर्ष शेरों द्वारा मारे गए 280,000 जानवरों का आंकड़ा मिलता है । McCarthy, E. M. (2008) “What do lions eat?”, Online Biology Dictionary [अभिगमन तिथि 26 नवंबर 2019]; Packer, C. (2015) “Frequently Asked Questions”, Driven to Discover [अभिगमन तिथि 29 नवंबर 2019]; WWF (2016) “The magnificent lion: The symbol of Africa”, wwf.org.uk [अभिगमन तिथि 4 नवंबर 2019].

41 Crocodiles of the World (2015) “Conservation status”, Crocodiles of the World [अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2019].

42 Plumwood, V. (2012) “Prey to a crocodile”, Imagining Other [अभिगमन तिथि 19 नवंबर 2019].

43 Adamec, R. E. & Shallow, T. (1993) “Lasting effects on rodent anxiety of a single exposure to a cat”, Physiology and Behavior, 54, pp. 101-109.

44 Zanette, L. Y., White, A., Allen, M. C. & Clinchy, M. (2011) “Perceived predation risk reduces the number of offspring songbirds produce per year.”, Science, 334, pp. 1398-13401.

45 Ibid.

46 Schulkin, J. (2003) Rethinking homeostasis, Cambridge: MIT Press. Sheriff, M. J.; Krebs, C. J. & Boonstra, R. (2009) “The sensitive hare: Sublethal effects of predator stress on reproduction in snowshoe hares”, Journal of Animal Ecology, 78, pp. 1249-1258 [अभिगमन तिथि 5 दिसंबर 2019].

47 Suraci, J. P.; Clinchy, M.; Dill, L. M.; Roberts, D. & Zanette, L. Y. (2016) “Fear of large carnivores causes a trophic cascade”, Nature Communications, 7 [अभिगमन तिथि 6 दिसंबर 2019]. Zanette, L. Y.; White, A.; Allen, M. C. & Clinchy, M. (2011) “Perceived predation risk reduces the number of offspring songbirds produce per year”, Science, 334, pp. 1398-13401.

48 Clinchy, M.; Schulkin, J.; Zanette, L. Y.; Sheriff, M. J.; McGowan, P. O. & Boonstra, R. (2011) “The neurological ecology of fear: Insights neuroscientists and ecologists have to offer one another”, Frontiers in Behavioral Neuroscience, 5 [अभिगमन तिथि 30 नवंबर 2019].

49 Wang, Z. Y. & Ragsdale, C. W. (2018) “Multiple optic gland signaling pathways implicated in octopus maternal behaviors and death”, Journal of Experimental Biology, 221 [अभिगमन तिथि 6 नवंबर 2019].

50 उनकी कहानी को पूरा देखने के लिए Smith, W. D. (2019) “My time with ‘male 911’: This Yellowstone wolf was safe from people, but not from nature”, The Washington Post, 31 May [अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2019]; National Park Service (2017) “The hard life of a Yellowstone wolf”, National Park Service, August 1 [अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2019].