जमीनी खेतों पर रहने वाले जानवरों द्वारा सही जाने वाली (जिनसे वे पीड़ित होते हैं) बीमारियां

जमीनी खेतों पर रहने वाले जानवरों द्वारा सही जाने वाली (जिनसे वे पीड़ित होते हैं) बीमारियां

जमीनी खेतों पर रहने वाले अमानुष जानवरों की स्थिति उन्हें कई बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाती है । इसके अलावा भीड़ भरी परिस्थितियां इन बीमारियों के फैलने को उस स्तर तक सुगम बनाती हैं कि वे बड़ी महामारी बन सकती हैं ।

इसके अतिरिक्त, जानवर आमतौर पर कमज़ोरी लाने वाली एक बड़ी श्रृंखला द्वारा पीड़ित होते हैं, जैसे जंगल में बीमारियों के प्रकार बताते हैं । जंगल में, यह उन्हें अन्य जानवरों द्वारा मार दिए जाने के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील बनाता है । खेतों में रहने वाले जानवर बीमार या संभाव्य रूप से बीमार होने से मनुष्यों द्वारा मारे जाने के ख़तरे का सामना करते हैं, यहां तक कि उससे भी पहले जबकि वे मार दिए जाते, यदि वे सापेक्षित रूप से स्वस्थ होते ।

नीचे, खेतों में पाले गए स्तनधारियों और पक्षियों को पीड़ित करने वाली बड़ी बीमारियों के उदाहरण (नमूने, प्रतिरूप) हैं । इन बीमारियों ने केवल संक्रमित जानवरों को ही बड़ी हानि नहीं पहुंचाई है, बल्कि जानवरों कि बड़ी संख्या के बड़े पैमाने पर कत्ल करने को भी सक्रिय किया है, उनके फैलने से मनुष्यों के लिए अधिक नुकसानों को नज़रंदाज़ करने के क्रम में ।

एवियन इन्फ्लूएंजा

समुद्री जानवरों के बाद, जो जानवर बड़ी संख्या में मनुष्यों द्वारा शोषित हैं, वे चूजे (मुर्गियां & मुर्गे) हैं । एवियन इन्फ्लूएंजा मनुष्यों सहित, पक्षियों और अन्य जानवरों को प्रभावित करने वाली वैश्विक महामारी में बदल चुकी है । एवियन इन्फ्लूएंजा, जिसे एवियन फ्लू या पक्षी फ्लू भी कहा जाता है, फ्लू विषाणु के कारण होने वाली एक उच्च संक्रमण वाली बीमारी है । यह मनुष्यों सहित पक्षियों और कभी – कभी दूसरे जानवरों के बीच संचारित होता है । यह पक्षियों में उच्च स्तर की मृत्यु दर का कारक होता है, जो कुछ दिनों की एक उष्मायन प्रक्रिया के बाद, तीन से पांच दिन के भीतर मर सकते हैं । मनुष्यों में , लक्षण सामान्य फ्लू के साथ अस्पष्ट हो सकते हैं, हालांकि सबसे गंभीर मामले श्वसन समस्याओं और निमोनिया के कारक हो सकते हैं ।

विषाणुओं के विभिन्न प्रकारों (नस्लों) द्वारा यहां महामारी हुई है । सबसे भयानक प्रकार एच 5 एन 1 है, जिसे मनुष्य जनसंख्या के लिए सबसे ख़तरनाक माना गया है । मनुष्यों में इस बीमारी के संचरण के भय के कारण और पॉल्ट्री उद्योग में आर्थिक नुकसान को नजरअंदाज करने के क्रम में, कई देशों में बड़ी मात्रा में पक्षी मारे जा चुके हैं ।

2000 के दशक में, लाखों स्वस्थ पक्षियों को नष्ट कर दिया गया, उनके एवियन फ्लू के संभावित संचरण के कारण । अकेले वर्ष 2003 और 2006 के बीच 200 मिलियन से अधिक चूज़े, गीस और बत्तख, एशिया, अफ़्रीका, यूरोप और मध्य पूर्व में मारे गए ।1 दूसरे मामलों में, दिए गए उचित कारण उल्लिखित हैं ।

  • अप्रैल 2004 में, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा में एवियन फ्लू के प्रकोप से 19 मिलियन पक्षी मारे गए ।2
  • वर्ष 2007 में सैफॉल्क, इंग्लैंड के पक्षी फार्म पर 159000 टर्की मारे गए और दक्षिण जर्मनी में एक फार्म (खेत) पर अन्य 160000 जानवर मारे गए ।3
  • जनवरी 2011 में, जापान में चूज़े में बर्ड फ्लू के पांच मामले पाए जाने के बाद 400000 चूज़े मार दिए गए ।
  • अप्रैल 2011 में, दक्षिण अफ़्रीका के दक्षिण पश्चिमी में एक बर्ड फ्लू का प्रकोप पाया गया । सुरक्षात्मक पैमाने के रूप में कम से कम ऑस्ट्रिचेस मारे गए ।

जानवरों को मारने के सबसे सामान्य तरीके देश और मारे जाने वाले जानवरों की संख्या पर महत्वपूर्ण रूप से बदलते हैं । जानवरों को ज़हरीली गैस देना, बिजली के झटके, पीटने और इकट्ठा कर, जीवित जलाए (आमतौर पर बड़ी आग में फेंककर), जीवित दफनाए (प्लास्टिक झिल्लियों और आग बुझाने के झाग के नीचे) या गलाने (थकाने) वाली मशीनों या लकड़ी काटने चीरने वाली मशीनों में जीवित डाला जा सकता है जिससे वे लकड़ी के छोटे टुकड़े करने वाली मशीनों में (जीवित और पूर्णतः होश में) फ़ेंक दिए जाते हैं ।4

ये सभी जानवर, चाहे वे वास्तव में बीमार हैं, बीमार होने के संदेह में हैं, या बीमारी के प्रति संवेदशील हैं, उद्योग के लिए ख़तरनाक कचरा माने जाते हैं । जैसे कि, यह ज़रूरी समझा गया है कि जितनी जल्दी हो सके उन्हें मार और उनका निपटान कर दिया जाए । इस वजह से, और क्योंकि जानवरों की संख्या आमतौर पर बहुत अधिक भी है, उन्हें मारने कि ज़िम्मेदारी लिए कार्यकर्ता जितना तेज़ संभव हो कार्य करेंगे और उन्हें सबसे सस्ते तरीके से मारेंगे, जानवरों को होने वाली पीडा को ध्यान में रखे बिना । भोजन के लिए पाले जाने वाले अमानुष जानवर वस्तु की तरह माने जाते हैं, और जब इन वस्तुओं द्वारा उनका शोषण करने वालों के लिए लाभ देना रुक जाता है, तो अक्सर उन्हें उनकी भलाई का ध्यान रखे बिना मिटा (मार) दिया जाता है ।

बोवाइन स्पोंगीफॉर्म एंसफलोपैथी

बोवाइन स्पोंगीफॉर्म एंसफलोपैथी गोजातीय तंत्रिका तंत्र की एक क्षरण जन्य बीमारी है जो कि संक्रमित प्रोटीन (प्रयांस) की उपस्थिति के कारण होती है । यह ज़्यादातर गायों को प्रभावित करती है । लेकिन मनुष्यों में भी संचारित (फ़ैल) सकती है । यह सबसे पहले नवंबर 1986 में यू के में पाई गई । इस बीमारी का संचरण काल (फैलाव काल) अपेक्षाकृत लंबा है औसतन लगभग चार – पांच वर्ष, किन्तु संभवतः और लम्बा । यह बीमारी पीड़ितों में अन्य लक्षणों, उनके चलने – गिरने में बेडौल समन्वय दिखने के साथ तंत्रिका तंत्र की अवनति (क्षरण) का कारक होती है । अंततः जो इकाइयां इससे संक्रमित होती हैं, इससे मर जाती हैं ।5

वर्ष 1994 तक यूरोपियन यूनियन में बी एस ई वाले जानवरों के 146895 मामले पाए गए और वर्ष 1995 से 2007 तक 189875 और मामले पाए गए ।

बीमारियों के कई संभावित कारणों पर प्रारंभ में ध्यान दिया गया । वैज्ञानिक समुदाय द्वारा सबसे स्वीकार्य कारक यह है कि यह विभिन्न परिस्थितियों में मारे गए जानवरों, जिनमें कुछ क्षरण तंत्र की बीमारियों से पीड़ित शामिल हैं (उदाहरण के लिए स्केपी भेड़) के मांस और हड्डियों के चूरे से बने भोजन के उपयोग से हुआ था ।

बीमारी के निवारण के लिए शाकाहारियों को दिए जाने वाले भोजन में से पाशविक प्रोटीन का विलोपन करना ज़रूरी है । दिसंबर 2000 से जून 2001 तक, एक महामारी के भय से, यूरोपीय यूनियन ने मानवीय उपभोग के लिए मारे जाने वाले किसी भी जानवर को भोजन के रूप में परिष्कृत पाशविक प्रोटीन खिलाए जाने पर अस्थाई रूप से प्रतिबंध लगा दिया । यह प्रतिबंध पीस हुए मांस, हड्डी, खूरों, सींग, और कोई भी भोज्य पदार्थ जो रक्त और प्लाज़्मा के उत्पाद से बना है, को सम्मिलित करता है, कुछ अपवादों जैसे, फिश फ्लोर (पीसी हुई मछलियां) के जुगाली न करने वाले जानवरों को खिलाए जाने के साथ ।

अन्य प्रमाणित मानक यह था कि या तो संक्रमित या असंक्रमित होने के प्रति संदेहास्पद जानवर को भी मार कर और उनका शरीर तुरंत जला दिया जाए ।

एक एहतियाती मानक के रूप में, कई खेतों में सभी जानवर मार दिए गए, यहां तक कि यदि वहां केवल एक बीमार जानवर था या वहां मात्र एक संदेह था कि उनमें से एक बीमारी से पीड़ित था । अकेले ग्रेट ब्रिटेन में, कथित “मैड काऊ डिजीज” के प्रकोप के शिकार के दौरान इस कारण के लिए 4.4 मिलियन गोजातीय जानवर मार दिए गए ।6

पैर (पांव) और मुंह की बीमारी

पैर (पांव) और मुंह की बीमारी विषाणु से होने वाली एक बहुत संक्रामक स्थिति है जो सूअरों, गायों, भेड़ और बकरियों को प्रभावित करता है । यह आमतौर पर मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता, केवल कुछ असाधारण मामलों को छोड़कर जहां संक्रमित हुए लोग विषाणु से बहुत करीब से संपर्क में रहे हैं ।

यह पहले दो ता तीन दिनों के दौरान तेज़ बुखार लाता है, जिसके बाद जानवरों के मुंह की श्लेष झिल्ली और पांवों में दर्दनाक छाले उभर आते हैं । यह कई पीड़ितों की भूख में कमी लाने का कारक होता है जिसके फलस्वरूप यह उनमें वज़न में कमी और कम दुग्ध उत्पादन का कारण होता है । अधिकतर मामलों में, यह बीमारी जानलेवा नहीं है और इसके प्रति सुरक्षा के लिए टीके उपलब्ध हैं ।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, कई पांव (पैर) और मुंह की बीमारी के प्रकोप घटित हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप लाखों जानवरों की मौत हुई है । बड़ी संख्या में घटित मौतें बीमारी के प्राणघातक होने के कारण नहीं हुई हैं, बल्कि विभिन्न देशों में एहतियाती मानकों को लागू करने से हुई हैं, जिसमें स्वस्थ जानवरों को मारना शामिल है । उनमें से कई मौतों का कारण अन्य जानवरों को बीमारी से मारने से बचाने के लिए नहीं, बल्कि संक्रमित हो सकने वाले जानवरों से उत्पादकता में कमी को रोकने के लिए थे । कुछ ध्यान देने योग्य मामले नीचे सूचीबद्ध हैं ।

  • वर्ष 1997 में ताइवान में पांव और मुंह की बीमारी का एक प्रकोप हुआ, जिसके फलस्वरूप प्रकोप के दौरान प्रतिदिन 200000 से अधिक सूअर मारे गए, उनमें से अधिकतर को बिजली के झटके दिए गए । कुल, लगभग 40 लाख सूअर मारे गए, और उनके शरीर जला या दफना दिए गए ।7
  • वर्ष 2001 में, यू के में पांव और मुंह की एक महामारी घटी । 2000 संक्रमित जानवर मारे गए और, एहतियातन तौर पर 6.5 और 10 मिलियन के बीच जानवर मारे गए ।8
  • फ़रवरी 28, 2001 को फ्रांस ने 30,000 भेड़ों को मारने कि योजना की घोषणा की जो ग्रेट ब्रिटेन से आने वाले जानवरों के संपर्क में हो सकते थे । अंततः उस वर्ष फ्रांस में मारे गए कुल जानवरों कि संख्या 50,000 तक बढ़ गई ।9
  • नवंबर 2010 में, दक्षिण कोरिया में इस बीमारी का एक प्रकोप पाया गया । जनवरी 2011 में 1.4 मिलियन सूअरों को बड़े पैमाने पर मारना शुरू हुआ । दक्षिण कोरिया सरकार ने उन्हें मारने के सबसे सरल और सस्ते तरीके अपनाने का निर्णय लिया । फलस्वरूप सूअर जीवित और पूर्णतः होश में दफनाए जाने से यातनापूर्ण मौत से पीड़ित हुए, अंततः दम घुटने या उन शरीरों के वज़न से जिन्हें उनकी बड़ी कब्रों में उनके ऊपर गिरा दिया गया, के नीचे दबने से मर गए ।

इसके अलावा, समान मुद्दे (समस्या) के कारण कोरिया और जापान में 100,000 से अधिक गाएं और सांड कत्ल कर दिए गए ।10

अन्य बीमारियां

अन्य बीमारी जिसने जानवरों को बड़ी संख्या (महत्वपूर्ण रूप से) प्रभावित किया है, जिस कारण से वे कत्ल किए गए हैं, स्वाइन वेसिक्युलर डिजीज (एस वी डी) है । यह बीमारी स्वाइन वेसिक्युलर डिजीज से होती है और इससे संक्रमित होने वालों को उनके शरीर के विभिन्न भागों (उनके मुंह और पांव सहित) में अक्सर का कारक हो सकती है ।11

अन्य बीमारियां जिनसे जानवर नियमित रूप से पीड़ित होते हैं, यदि वे खेत कि परिस्थितियों में रहते हैं, निम्नलिखित शामिल हैं:

एकारियासिस एवियन मिकोप्लासमोसिस ब्लू आई डिसीज
बलूटोंग बोटुलिज्म बोवाइन ट्यूबरक्यूलोसिस
बोवाइन वायरल डायरिया ब्रसेल्लोसिस कैम्पीलोबैक्टीरियोसिस
क्रिप्टोकोकोसिस डेरमाटोफिटोसिस एपिजूटिक हेमाटोपोयटिक नेक्रोसिस
एपिजूटिक लिम्फांगिटिस हेमोरोजिक सेपटीसेमिया लेप्टोस्पिरोसिस
मासटिटिस माइकोबैक्टीरियोसिस पोरसाइन एपीडेमिक डायरिया
परोसिन रिप्रोडक्टिव रेसपिरेटरी सिंड्रोम (पी आर आर एस) सैलमोनेला स्क्रिववोर्म मियासिस शीप एण्ड गोट पोक्स
स्मालपोक्स टोक्सोप्लास्मोसिस वेसिक्यूलर स्टोमाटिटिस
वायरल हेमोरोजिक फीवर (एरेनावायरस और फिलोवायरस से होने वाले) वायरल हेमोरोजिक सेपटीसेमिया वेस्ट नील वायरस

 


आगे की पढ़ाई

AVIS (2001) “OIE disease cards”, AVIS, Food and Agriculture Organization of the United Nations [अभिगमन तिथि 25 मार्च 2020].

Bengis, R. G.; Kock, R. A. & Fischer, J. (2002) “Infectious animal diseases: The wildlife/livestock interface”, Revue Scientifique et Technique, 21, pp. 53-65.

Committee on Foreign Animal Diseases of the United States Animal Health Association (2008) Foreign animal diseases: The gray book, 7th ed., St. Joseph: United States Animal Health Association.

Craig, R. A. (1919) Common diseases of farm animals, Philadelphia: J. B. Lippincott.

Food and Agricultural Organization of the United Nations (2017) “Animal production and health”, Agriculture and Consumer Protection Department [अभिगमन तिथि 23 मार्च 2020].

Martinez-Salas, E.; Saiz, M. & Sobrino, F. (2008) “Foot-and-mouth disease virus”, in Mettenleiter, T. C. & Sobrino, F. (eds.) Animal viruses: Molecular biology, Norfolk: Caister Academic Press, pp. 1-38.

Miller, L. & Hurley, K. (2009) Infectious disease management in animal shelters, Ames: Wiley-Blackwell.

Rezac, D. J.; Thomson, D. U.; Siemens, M. G.; Prouty, F. L.; Reinhardt, C. D. & Bartle, S. J. (2014) “A survey of gross pathologic conditions in cull cows at slaughter in the Great Lakes region of the United States”, Journal of Dairy Science, 97, pp. 4227-4235.

Spickler, A. R. (2020) “Animal disease information”, The Center for Food Security and Public Health [अभिगमन तिथि 20 मार्च 2020].

Tully, D. C. & Fares, M. A. (2008) “The tale of a modern animal plague: Tracing the evolutionary history and determining the time-scale for foot and mouth disease virus”, Virology, 382, pp. 250-256.


नोट्स

1 Serjeant, J. (2006) “Amid bird flu, activists plead for humane culling”, Daily News, 5 June [अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2013].

2 Tweed, S. A.; Skowronski, D. M.; David, S. T.; Larder, A.; Petric, M.; Lees, M.; Li, Y.; Katz, J.; Krajden, M.; Tellier, R.; Halpert, C.; Hirst, M.; Astell, C.; Lawrence, D. & Mak, A. (2004) “Human illness from avian influenza H7N3, British Columbia”, Emerging Infectious Diseases, 10, pp. 2196-2199 [अभिगमन तिथि 30 मार्च 2013].

3 BBC News (2008) “Timeline: Bird flu in the UK”, BBC, 10 January [अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2013].

4 Tenpenny, S. J. (2006) Fowl! Bird flu: It’s not what you think, Kampala: NMA Media Press.

5 Seuberlich, T. (2014) “Overview of bovine spongiform encephalopathy”, MERCK Manual: Veterinary Manual, Mar [अभिगमन तिथि 29 मार्च 2020]. Spickler, A. R. (2016) “Bovine spongiform encephalopathy”, The Center for Food Security and Public Health [अभिगमन तिथि 22 मार्च 2020]. World Health Organization (2013) “Bovine spongiform encephalopathy (BSE)”, Zoonoses, World Health Organization [अभिगमन तिथि 29 मार्च 2013].

6 Brown, D. (2000) “The ‘recipe for disaster’ that killed 80 and left a £5bn bill”, The Telegraph, 27 October [अभिगमन तिथि 2 अप्रैल 2013]. Segarra, A. E. & Rawson, J. M. (2001) “Mad cow disease: Agriculture issues”, Foreigh Press Centers, मार्च 12 [अभिगमन तिथि 27 मार्च 2020].

7 U. S. Department of Agriculture (1997) “Foot-and-mouth disease spreads chaos in pork markets”, FASonline, Livestock and Poultry: World Markets and Trade Circular Archives, October.

8 BBC News (2007) “Farm infected with foot-and-mouth”, BBC, 4 August [अभिगमन तिथि 2 अप्रैल 2013].

9 Wong, C. M. (2011) “South Korea reportedly buries 1.4 million pigs alive to combat foot and mouth disease”, The Huffington Post, 25 May [अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2013].

10 UN News Centre (2010) “UN agency warns of increased foot-and-mouth threats after outbreaks in Asia”, UN News Centre, 28 April [अभिगमन तिथि 27 मार्च 2013]. Muroga, N.; Hayama, Y.; Yamamoto, T.; Kurogi, A.; Tsuda, T. & Tsutsui, T. (2012) “The 2010 foot-and-mouth disease epidemic in Japan”, Journal of Veterinary Medical Science, 74, pp. 399-404 [अभिगमन तिथि 30 मार्च 2020].

11 Morilla, A.; Yoon, K.-J. & Zimmerman, J. J. (2002) Trends in emerging viral infections of swine, Ames: Iowa State Press.