फर खेत (फर फार्म्स)

फर खेत (फर फार्म्स)

फर के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकतर जानवर पशु पालन केंद्रों पर पाले जाते हैं । फर उत्पाद बनाने के लिए प्रति वर्ष मारे जाने वाले जानवरों की संख्या अब भी अज्ञात है, हालांकि कुछ आंकलन 40 – 60 मिलियन के बीच हैं, जिसमें से शायद 30 – 50 मिलियन फर खेतों में पाले गए हैं । हालांकि फर खेती में प्रयोग किए जाने वाले अधिकतर जानवर यूरोपियन यूनियन में हैं,1 चीन में फर खेती उद्योग बढ़ रहा है, और अन्य देशों जैसे यू. एस. और कनाडा में भी सार्थक फर खेती उद्योग हैं ।

जानवरों की सहप्रजातियों के आधार पर, एक कोट बनाने के लिए, 150 – 300 चिनचीला, 200 – 250 गिलहरियां, 50 – 60 मिंक, या 15 – 40 लोमड़ियां लगती हैं । फर के उत्पादन में अधिक किफायती (लाभप्रद) होने के लिए, जानवर उनके सम्पूर्ण जीवनकाल के लिए छोटे से पिंजरे में रखे जाते हैं जिसमें वे बहुत कम हिल डुल पाते हैं और दौड़ने या तैरने जैसा कुछ भी कभी नहीं कर सकते । यह ख़ासतौर पर अर्द्ध जलीय जानवरों जैसे मिंक के लिए तनावपूर्ण है, क्योंकि हालांकि उनके पास पीने का पानी है, पर उनके पास कभी भी इसकी सबसे सार्थक पहुंच नहीं होती ।

रहने के लिए बहुत छोटी जगह का होना जानवरों के लिए गंभीर तनाव का कारक है, जो आत्म – अंगच्छेदन और नरभक्षण का परिणामी होता है । यहां तक कि अधिकतर मामलों में मांओं द्वारा उनके बच्चों को खाने के साथ, कभी – कभी शिशु हत्या का व्यवहार भी घटित होता है । एकांतवास और गतिविधि में कमी के कारण, वे निराश हो जाते हैं और बार – बार रूढ़िबद्ध व्यवहार करते हैं, जैसे बिना किसी ख़ास कारण के बार – बार एक दिशा घूमना ।2 मिंक पालन केंद्रों में से एक में, 75×37.5×30 सेमी (30×15×12 इंच) के पिंजरे में कैद एक मादा मिंक बार – बार पिंजरे की छत को पकड़ते और पीठ के बल गिरती हुई देखी गई ।3 इसी के समान व्यवहार मनुष्यों में भी देखे गए हैं, जो किसी खास समय में, अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर कम नियंत्रण महसूस करते हैं, जैसे गहरे तनाव या एकांतवास (क़ैद) की परिस्थितियों में ।

जानवरों के लिए पिंजरे में क़ैद होना अपने आप में व्यथित होने का एक कारण है । इस प्रकार जानवरों को वह जगह साफ़ नहीं करनी होती जहां जानवर रखे जाते हैं, उनके पिंजरों के फर्श तार से बने होते हैं, जिससे जानवरों का मलमूत्र पिंजरों के नीचे ढेर पर जा सके । इसका अर्थ है कि पिंजरों के फर्श इन जानवरों के लिए असहज होते हैं । उन्हें उनके जीवन भर के लिए तार की जाली पर चलना, बैठना, और उनके नीचे सोना होता है । ढेर लगा हुआ मलमूत्र केवल बीमारियों और परजीवियों का संभावित स्रोत ही नहीं है, बल्कि इन जानवरों को पीड़ित करने का एक कारक भी है; मिंक की सूंघने की तीव्र इंद्री के कारण मलमूत्र की तेज बदबू उनके लिए बहुत बेचैन करने वाली होती है ।

मौसमी परिस्थितियों की वज़ह से ये जानवर काफ़ी असहजता और कभी – कभी दर्द से भी पीड़ित होते हैं । उन्हें ठंड में जमा देने वाली सर्दी और गर्मियों में झुलसा देने वाली गर्मी सहना पद सकता है, और कभी – कभी, जैसा कि मौसमी परिस्थितियों वाले खंड में समझाया गया है, वे गर्मी से होने वाले तनाव के कारण मर सकते हैं । हालांकि, यहां तक कि यदि खेत ढंके हुए हों, तब भी भारी बारिश होने पर ठंडा पानी या बर्फ़ उन तक पहुंच सकता है ।

मिंक को मारने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कई तरीक़े अक़्सर उन्हें केवल बेहोश छोड़ देते हैं । सबसे प्रचलित तरीकों में गुदा और मौखिक के रास्ते बिजली से मारना, गर्दन तोड़ना, और दम घुटना हैं । अक्सर जानवरों के जीवित रहते हुए उनकी त्वचा उतार ली जाती है जबकि वे अब भी होश में रहते हैं ।

पिछले कुछ दशकों में, फर के उपयोग की नैतिक समस्याओं के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ी है । अतः, फर उद्योगों ने कोट के केवल कुछ ख़ास हिस्सों में जैसे गर्दन, आस्तीन, और टोप में फर लगाने के साथ योजना लागू किया । इस कारण से, फर उद्योग को आर्थिक सहयोग नजरअंदाज करने के क्रम में, जो इन सभी जानवरों की मौत का कारक है, कोट और जैकेट खरीदते समय सावधान (सजग) रहना ज़रूरी है ।

 

मिंक

मिंक ऊदबिलाव परिवार के छोटे स्तनधारी जीव हैं । फर उत्पादन के लिए जो अक़्सर सबसे ज़्यादा उपयोग किए जाते हैं वे हैं अमरीकन मिंक । फर उद्योग द्वारा पैदा किए गए मिंक आमतौर पर अपने छोटे से जीवन का अधिकतर हिस्सा उसी पशु पालन केंद्र पर बिता देते हैं जहां वे जन्म लेते हैं – और अन्ततः मार दिए जाते हैं – बिना कभी बाहर गए ।

मिंक वर्ष में एक बार बसंत के दौरान बच्चे देते हैं । शिशु कुछ हफ़्तों के लिए अपनी मां के साथ रहते हैं, जिसके बाद उन्हें दूर कर लिया जाता है और हमेशा के लिए अलग कर दिए जाते हैं । वे लगभग छः महीने की उम्र में मार दिए जाते हैं, आमतौर पर नवंबर या दिसंबर कि शुरुआत के दौरान ।

यहां मिंक को मारने के कई तरीके प्रयोग में लाए जाते हैं । किसान उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड या कभी – कभी नाइट्रोजन देते हैं । कई मामलों में, उत्पादन की लागत कम करने के क्रम में, कम सकेंद्रण में कार्बन डाइऑक्साइड इस्तेमाल की जाती है । यह धीमी मौत का कारक है । लगभग 70% कार्बन डाइऑक्साइड सकेंद्रण पर इसमें जानवर के मरने से पहले दर्द में लगभग 15 मिनट लग सकते हैं ।4

ट्रैक्टर के निकास पाइप द्वारा निकलने वाली गैसें भी बड़े पैमाने पर उपयोग में लाई जाती हैं । हालांकि यहां तक कि यह तरीका कुछ देशों में इन गैसों के प्रदूषक तत्त्वों के कारण प्रतिबंधित है, फिर भी यह इस्तेमाल किया जाता है । गैस जानवरों में मरने से पहले तनाव और अकड़न का कारक होती हैं । मनुष्यों और अन्य जानवरों जैसे सूअरों के उलट, मिंक अनॉक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) को पकड़ने में समर्थ हैं जो उन्हें गहरे रूप से तनाव पहुंचाता है और काफ़ी पीड़ा देता है जब वे मारे जाते हैं ।5 मिंक को मारने का जो तरीका “कम क्रूर” माना जाता है वह क्लोराल हाइड्रेट या पेंटोबार्बिटल के इंजेक्शन द्वारा हैं । हालांकि, मिंक को मारने में कई मिनट लगते हैं, और इस समय के दौरान वे दर्द और वेदना (पीड़ा) महसूस कर सकते हैं । यह दिखाता है कि अन्य के मुक़ाबले यहां कोई मिंक को मारने का और कोई तरीका नहीं जो अधिक “मानवीय” हो; हर तरीका उनके लिए पीड़ा का कारक है ।6 जबकि कलोराल हाइड्रेट हांफने और पेशीय ऐंठन का कारक हो सकता है, उद्योग द्वारा पेंटोबार्बिटल इंजेक्शन को वरीयता दी गई है क्योंकि यह मिंक को मारने वालों को यह सुविधा प्रदान करता है कि उनके मरने से पहले वे उन्हें उनके पिंजरों में वापस ला सकें । अन्य तरीके जो प्रायः कम उपयोग किए जाते हैं वे बिजली से मारना और गर्दन तोड़ना हैं ।

खरगोश

रेक्स खरगोश फर उद्योग द्वारा प्रयोग किए जाने वाले पारंपरिक नस्ल हैं । बच्चे उनके जीवन के पहले 4 – 5 हफ़्तों में उनकी मांओंके साथ रखे जाते हैं, और फिर वे उनके भाई – बहनों के साथ अलग पिंजरों में डाल दिए जाते हैं । अंततः, जब खरगोश 7 – 8 हफ़्ते की आयु के हो जाते हैं, तो वे उनके भाइयों से अलग कर लिए जाते हैं और पूरी तरह से अकेले एक पिंजरे में 1 – 2 सप्ताह और बिताते हैं, और फिर वे मार दिए जाते हैं ।

1980 के दशक के मध्य में, एक फ़्रेंच सरकारी संस्थान आई एन आर ए ने ऑरिलग प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया । ऑरिलग खरगोश की एक नई नस्ल है जो व्यापारिक उद्देश्यों के लिए पैदा की गई है । फर (60%) की बिक्री से आने वाले अधिकतर लाभ के साथ, ऑरिलग खरगोश मांस और खरगोश दोनों के लिए प्रताड़ित किए जाते हैं । पैदा करने वाली मादाएं बच्चा पैदा करने के बाद तीन से सात दिन के बीच फिर से कृत्रिम वीर्यसेचन द्वारा गर्भवती की जाती हैं । पैदा करने में प्रयोग ना होने वाले खरगोश मार दिए जाते हैं जब वे केवल 20 हफ़्ते की आयु के होते हैं ।

खरगोश पिंजरों में एकांतवास से भी पीड़ित होते हैं । फर के लिए, या फर और मांस के लिए पाले गए ख़रगोशों के लिए तय जगह के लिए उद्योग मानक प्रति खरगोश 60×40×30 सेमी (24×16×12 इंच) का पिंजरा है । यह फर्श की केवल उतनी है जगह है जितनी जूतों के दो डब्बे घेरेंगे । खुले तार के जाली वाले पिंजरों में, कभी – कभी खरगोश लड़ाई करने से रोकने के लिए एक दूसरे से अलग रखे जाते हैं लेकिन अक़्सर एक साथ ठसाठस भरे रहते हैं । कभी – कभी खरगोश कशेरुकी – संबंधी विकृति विकसित कर लेते हैं । खरगोशों के खड़े कानों और उन्हें खोदने से रोकने के साथ, जो उनकी जन्मजात आदतें है, पिंजरे ख़रगोशों को बैठने से रोकते हैं ।

खरगोश सामाजिक जानवर हैं, और एक दूसरे से अलग रहना उनके लिए तनावपूर्ण है । खरगोश जो अलग किए गए हैं वे रूढ़िवादी व्यवहार विकसित कर सकते हैं जैसे पिंजरे के छड़ को दांत से काटना और अत्यधिक सजना । भीड़भाड़ तरीके से निवास करना भी कई परेशानियों का कारक है, और यह फर खींचने और कान काटने जैसे व्यवहार की ओर ले जाता है ।

पिंजरों के जाल वाले फर्श पिछले पैर के निचले हिस्सों (अल्क्यूरेटिव पोडोडरमेटिटिस) में पीड़ा (घाव) उत्पन्न कर सकते हैं, जो कि संक्रमण और फोड़े उत्पन्न कर सकता है । वर्ष 2003 में यह पाया गया कि 15% से अधिक मादा खरगोश पैर के निचले हिस्सों के घाव से पीड़ित थे,7 और अन्य अनुसंधान ने दिखाया है कि लगभग 40% ने पंजे की चोटों के कारण असहजता प्रकट की है ।8

कत्लखाने तक परिवहन के दौरान मृत्यु डर 7-8% ऊंची हो सकती है ।9 टूटी हड्डियां, दर्दनाक घाव, श्वसन रुक जाना, और विषाणुओं का फैलाव सामान्य हैं । किन्तु कई रेक्स खेत अपने ख़ुद के कत्लखाने वाले होते हैं । छोटे खेतों पर खरगोश लकड़ी के हथौड़े या पेड़ की शाखा से उनके सिर पर मारे जाते हैं, या बड़े खेतों या व्यापारिक कत्लखानों पर बिजली के झटकों से बेहोश किए जाते हैं । फिर खरगोश उनकी गर्दन चीर और रक्त बहाकर मारे जाते हैं ।

लोमड़ी

फर उद्योग द्वारा अक़्सर सबसे ज़्यादा प्रयोग की जाने वाली लोमड़ियां सामान्य लोमड़ियां और आर्कटिक लोमड़ियां हैं । लोमड़ियां के फर की अनुकूलता के कारण वे चुनी गई हैं, और इसलिए भी कि आमतौर पर वे विनम्र होती हैं और फर खेत के कार्यकर्ताओं को कम काटती हैं । लोमड़ियां सामान्यतः आत्मनिर्भर जानवर हैं जो सिर्फ जोड़ों में रहते हैं या पदानुक्रमित समूहों में प्रजनन के दौरान और उनके नवजात बच्चों की देखभाल के समय । फिर भी, फर खेत पर, वे अपना पूरा जीवन छोटे पिंजरों में बिताते हैं जिसमें वे आसपास के पिंजरों के अन्य कई जानवरों से घिरे रहते हैं । इस वातावरण में लोमड़ियां मानसिक परेशानियां विकसित कर लेती हैं, चिंता, घबराहट, और संदेह प्रकट करना; क़ैद में रहने से वे आक्रामक और भययुक्त व्यवहार ग्रहण करती हैं । लोमड़ियां केवल किसानों के लिए उनके फर के अनुसार उनका वर्गीकृत करने, ख़ास पशु चिकित्सा उपचार प्राप्त करने, या यदि उन्हें वीर्यसेचन हेतु दूसरे पिंजरे में स्थानांतरित करने के लिए या मारे जाने हेतु पिंजरों से निकाली जाती हैं ।

लोमड़ियां मादाओं की गर्दन के लिए 7.5 सेमी (3 इंच) और नरों के लिए 8.5 सेमी (3.5 इंच) व्यास के छेद वाले 50 सेमी (28 इंच) लंबे प्लायर से उनकी गर्दन पकड़कर संभाली जाती हैं । इन प्लायर का उपयोग लोमड़ियां के मुंह और दांत में घाव के कारक हैं जब वे लोहे को काटकर छूटने का प्रयास करते हैं ।10

लोमड़ियां वर्ष में एक बार बच्चा देती (पुनरूत्पादन) करती हैं । वे बसंत में बच्चा देती हैं, और नवजात मां के साथ लगभग एक महीना और आधा महीना रहता है । इस समय, बच्चे दूध छुड़ा दिए जाते हैं और अलग पिंजरों में डाल दिए जाते हैं, एक पिंजरा उनमें से दो द्वारा साझा होता है । नवंबर या दिसंबर में, जब उनका फर विकसित हो जाता है, तो लोमड़ियां मार दी जाती हैं ।

लोमड़ियां आमतौर पर दो इलेक्ट्रोड जिसमें निर्वहन प्रयुक्त होता है, ऐसे उपकरण का प्रयोग कर बिजली के झटकों के द्वारा मारी जाती हैं । इलेक्ट्रोड उनके मुंह और गुदा में लगाया जाता है, और विद्युत निर्वहन उन्हें तीन से चार सेकंड में मार देता है । लोमड़ियां पेंटोबार्बिटल अंतरग्रहण या उनके हृदय में बेहोश करने की औषधि द्वारा भी मारी जाती हैं ।

चिनचीला

चिनचीला सघन फर वाले कृंतक हैं, जो कि आवश्यक है, जिस कम तापमान वाले क्षेत्र, अंदेस के वे स्थानीय है इसलिए । कुछ देश जिनमें कई चिनचीला उनके फर के लिए मारे जाते हैं उनमें अर्जेंटीना, ब्राज़ील, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, पोलैंड, और हंगरी शामिल हैं । फिर भी, इस फर की प्रमुख मांग जापान, चीन, रूस, यू. एस. , जर्मनी, स्पेन और इटली में है ।

यहां चिनचीला पालन केंद्र (खेतों) में दो प्रकार के पिंजरे होते हैं: पैदा करने वाले पिंजरे और पालने वाले पिंजरे, जो सामान्यतः केवल एक जानवर रखते हैं । युवा चिनचीला 60 दिन की उम्र में उनकी मांओं से अलग कर दिए जाते हैं । पिंजरे एक दूसरे के ऊपर जमाए जा सकते हैं, जिससे कम से काम जगह में अधिकतम संख्या में जानवर रखे जा सकें । जगह में कमी, पिंजरे में बदलाव, और युवा (छोटे) चिनचीला को उनके परिवार से अलग करना, काफ़ी व्यथा से पीड़ित होना उनके लिए सामान्य है ।11

जिन तरीकों से चिनचीला मारे जाते हैं उनमें गैस देना, बिजली के झटके देना, और गर्दन तोड़ना हैं । बिजली के झटके देना सबसे सामान्य है और चिनचीला के बड़े समूहों को मारने के लिए प्रयोग होते हैं, और गर्दन तोड़ना छोटे समूहों पर इस्तेमाल होता है । बिजली से झटके देना मुख्य रूप से जानवर के एक कान और पूंछ पर इलेक्ट्रोड अनुप्रयुक्त कर किया जाता है । यहां प्रसंग हैं कि ये मौतें अक़्सर दर्दनाक हैं और अक्सर चिनचीला तुरंत नहीं मरते । इस जगह में पशी कल्याण नियम के लिए ज़रूरी है कि हृदय दर और श्वसन की जांच की जानी चाहिए यह तय करने के लिए कि जानवर मर गए हैं, लेकिन अक़्सर यह होता नहीं है । जब चिनचीला उनकी गर्दन तोड़कर मारे जाते हैं, तो वे उनकी पूंछ से पकड़े गए रहते हैं उनके सिर नीचे की ओर लटकाए हुए । फिर उनके सिर पकड़ के और तेज़ी से मरोड़े जाते हैं उनके मर जाने तक । जिस तरह वे मारे जाते हैं, ये जानवर जो दर्द सहते हैं वह पहली जगह में उनके अनावश्यक रूप से मारे जाने के विनाश में योग (जोड़ना) करता है ।


आगे की पढाई

Animal Equality (2010) Death inside gas chambers, London: Animal Equality [अभिगमन तिथि 23 सितंबर 2013].

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नोट्स

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3 Mason, G. J. (1991) “Stereotypies: A critical review”, Animal Behaviour, 41, pp. 1015-1037.

4 Enggaard Hansen, N.; Creutzberg, A. & Simonsen, H. B. (1991) “Euthanasia of mink (Mustela vison) by means of carbon dioxide (CO2), carbon mono-oxide (CO) and Nitrogen (N2)”, British Veterinary Journal, 147, pp. 140-146.

5 Raj, M. & Mason, G. (1999) “Reaction of farmed mink (Mustela vison) to argon-induced hypoxia”, Veterinary Record, 145, pp. 736-737. Raj, A. B. M. & Gregory, N. G. (1995) “Welfare implications of gas stunning pigs 1: Determination of aversion to the initial inhalation of carbon dioxide”, Animal Welfare, 4, pp. 273-280.

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9 Coalition to Abolish the Fur Trade (CAFT) (2015) The reality of commercial rabbit farming in Europe, Manchester: Coalition to Abolish the Fur Trade [अभिगमन तिथि 13 सितंबर 2017].

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11 Alderton, D. (1996) Rodents of the world, London: Blandford, p. 20.