कौन से प्राणी संवेदनशील हैं

कौन से प्राणी संवेदनशील हैं

किसी भी जीव को सचेत मानने के लिए जो मापदंड हैं, यह निष्कर्ष निकालना उचित होगा कि कशेरुकी और बड़ी संख्या में अकशेरुकी सचेत हैं । स्पष्ट रूप से जिन जानवरों के पास एक केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र है जिसका केंद्रीय अंग (मूल रूप से, एक मस्तिष्क) में कुछ विकास है । हालांकि, ऐसे कई जानवर हैं जिनके पास केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र हैं लेकिन उनका केंद्रीय अंग काफी विकसित नहीं हैं । इन मामलों में इस बात को लेकर संदेह पैदा हो सकता है कि वे सचेत हैं या नहीं । कारण यह है, कि सचेत होने के लिए, यह आवश्यक है कि एक तंत्रिका तंत्र एक निश्चित तरीके से आयोजित हो , तो विकासवादी मार्ग, अपने पिछले चरणों में, बिना किसी तंत्रिका तंत्र के जो निश्चित रूप से व्यवस्थित नहीं हो, और बाद में तंत्रिका तंत्र के माध्यम से जो केंद्रीकृत होने लगता है, लेकिन चेतना का समर्थन करने के लिए काफी नहीं है । सबसे पहले, तंत्रिका तंत्र कम -से-कम केंद्रीकृत होती है, कुछ बहुत ही सरल तंत्रिका गैंगलिया के साथ, फिर, अधिक जटिल गैंगलिया के साथ । तंत्रिका तंत्र तब तक अधिक जटिल हो जाते हैं जब तक, चेतना की घटना दिखाई देती है । विकासवादी पथ के साथ, ऐसे चरण होते हैं जहां कुछ कम-से-कम केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र होते हैं , जो चेतना को जन्म नहीं देते हैं ।

हम निश्चित रूप से यह नहीं जानते की ऐसे जीव वर्तमान में हैं या नहीं । यह भी हो सकता है कि वर्तमान में मौजूद सभी जानवर जो सचेतन हैं , उनका तंत्रिका तंत्र पर्याप्त रूप से केंद्रीकृत हो । यह भी हो सकता है की कम-से-कम केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र वाले जानवर जो सचेतन हैं , पहले से ही विलुप्त हो चुके हैं । इस मुद्दे पर हमारे पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है ।

कशेरुकी और कई अकशेरुकी सचेतन है

सभी जानवरों मैं , हम निश्चितता से कह सकते हैं कि मनुष्य और इन्वेर्टेब्रेटेस जैसे सेफेलोपोड्स (जैसे अकशेरुकी सहित कशेरुकी ऑक्टोपस और स्क्विड), सचेत हैं क्योंकि वे चेतना के मापदंडों को पूरा करते हैं । इसके अलावा, हमारे पास यह सोचने के लिए भी मजबूत कारण हैं कि आर्थ्रोपोड (कीड़े, जैसे अन्य जानवर, आरेक्निक, और क्रस्टेसियन) भी सचेत हैं । इन जानवरों की फिजियोलॉजी और उनकी संगठन चेतना जन्म देने के लिए पर्याप्त प्रतीत होते हैं, और उनका व्यवहार भी इसका समर्थन करता है ।1

अन्य जानवरों के लिए, जैसे कि बाइवाल्व मोलस्क, हमारे पास उतने मजबूत कारण नहीं हैं जैसे हमारे पास पिछले मामलों में हैं ।2 हालांकि, इसमें शामिल समस्याओं को देखते हुए चेतना के आधार पर हम पूरे तरीके से यह निर्धारित नहीं कर सकते कि वे संवेदनशील हैं ।

निम्नलिखित जानवरों के कुछ उदाहरण हैं जो दो वर्गों मे बांटे जा सकते हैं , इनमें ।

कीड़े और अन्य आर्थ्रोपोड

यह एक विवादास्पद मुद्दा है कि क्या कीड़े, आरेक्निक और अन्य आर्थ्रोपोड जैसे जानवर संवेदनशील हैं ।3

कीड़ों के मामले में, हम तर्क की निम्नलिखित पंक्ति पर विचार कर सकते हैं, जो होमोलॉजी द्वारा एक तर्क है । कीड़ों के पास एक सेंट्रल नर्वस सिस्टम होता है जो केवल गंगलिया की उपस्थिति के कारण सेंट्रलाइज़्ड नहीं है, बल्कि वास्तव में एक मस्तिष्क भी शामिल है । हालांकि, यह एक बहुत ही सरल और छोटा मस्तिष्क है । इसलिए, कीड़ों के शारीरिक विज्ञान केवल यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे सचेत हैं या नहीं । इसके अलावा, कुछ कीड़ों का व्यवहार बहुत सरल है । हालांकि, दूसरों का व्यवहार बहुत जटिल है । इसका एक स्पष्ट उदाहरण मधुमक्खियां हैं । उनके प्रसिद्ध वैगल नृत्य और उनके व्यवहार से , हमें लगता है कि वे वास्तव में अनुभव वाले प्राणी हैं, मतलब , वे सचेत हैं ।4 अन्य कीड़े जिनका मधुमक्खियों के जैसा ही शारीरिक संरचना है लेकिन वह केवल बहुत ही सरल व्यवहार प्रदर्शित करता है जैसे मच्छर जिनका सरल व्यवहार होता है । उनके नर्वस सिस्टम की समानता के कारण, हम विश्वास कर सकते हैं कि यदि मधुमक्खियां सचेत हैं, तो मच्छर भी सचेत हैं । हालांकि, हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह स्वचालित रूप से पालन नहीं करता है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कीड़े वर्तमान में मौजूद जानवरों के सबसे असंख्य वर्ग हैं । इसके कारण, उनमें से कुछ मतभेद/अंतर/भिन्नता हैं जो स्तनधारियों के बीच होने वाले भिन्नता किस की तुलना में बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं ।

कीड़ों के बीच इस अधिक भिन्नता के कारण, एक अलग प्रतिक्रिया यह दावा कर सकती है कि मधुमक्खियां (या, सामान्य रूप से, हाइमेनोप्टेरन, जिसमें मधुमक्खियां हैं और जिसमें वास्प और चींटियां भी शामिल हैं) सचेतन हैं, जबकि अन्य कीड़े नहीं हैं । या, हो सकता है, कि भले ही सभी कीड़े सचेतन हों, लेकिन मधुमक्खियां अधिक ज्वलंत अनुभव करने में सक्षम हैं । यह मामला होने की संभावना अधिक लगती है, केवल कुछ कीड़े संवेदनशील हैं कि तुलना में । यद्यपि कीड़ों के व्यवहार में अंतर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके शारीरिक विज्ञान के बीच मतभेद इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं कि हम यह निष्कर्ष निकाल सकें कि उनमें से केवल कुछ संवेदनशील हैं ।

बेशक, और कई तर्क भी संभव है । हमें लगता है कि हो सकता है कि केवल सरल व्यवहार का प्रदर्शन करने वाले प्राणियों को संवेदनशील नहीं माना जा सकता है । यहां से, हम यह बता सकते हैं कि इन जानवरों के नर्वस सिस्टम की संरचना चेतना के लिए पर्याप्त जटिल नहीं होगी (इसके सेंट्रलाइज़ेशन के बावजूद) । इसलिए, हम निष्कर्ष निकालेंगे कि, चूंकि उनके नर्वस सिस्टम केवल सरल व्यवहार का प्रदर्शन करने वाले जानवरों के समान हैं, इसलिए मधुमक्खियों जैसे जानवर वास्तव में सचेतन नहीं होंगे, क्योंकि उनके पास आवश्यक नर्वस संरचना की कमी होगी । तो हम दावा कर सकते हैं कि मधुमक्खियों जैसे ज्वलंत व्यवहार उस तंत्र के माध्यम से हो सकता है जिसका मतलब चेतना की उपस्थिति नहीं है । हालांकि, यह स्पष्टीकरण पिछले एक की तुलना में कम प्रशंसनीय लगता है (कि सभी कीड़ों जिनके नर्वस सिस्टम काफी समान हैं कि यदि कुछ कीड़े सचेतन हैं, तो उन् सभी को होना चाहिए) । यह है कि एक जीव जो सचेत हो और अपेक्षाकृत सरल व्यवहार प्रदर्शित करते हैं । जबकि यह अधिक संभव नहीं लगता कि एक जीव जो सचेत नहीं है पर जटिल व्यवहार प्रदर्शित करेगा ।5

उसी तर्क में, हम अन्य मानदंड जैसे कीड़ों मे प्राकृतिक ओपियेट्स की उपस्थिति पर विचार कर सकते हैं । इससे इस दावे को मजबूती होगी कि ये जानवर संवेदनशील हैं ।

अन्य आर्थ्रोपोड्स, जैसे आरेक्निकों के मामले में, हम विकासवादी तर्क से अपील नहीं कर सकते जैसे हमने कीड़ों के मामले में उन निष्कर्षों को लागू किया , क्योंकि वे क़रीब से संबंधित नहीं हैं । इसके बावजूद, हम होमोलॉजी से तर्क का पालन कर सकते हैं । कीड़ों की नर्वस संरचनाएं आरेक्निकों की तुलना में काफी अधिक जटिल नहीं हैं । इसके अलावा, आरेक्निकों का व्यवहार कई कीड़ों से बहुत अलग नहीं है । इसलिए, यह अनुमान लगा सकते हैं कि यदि कीड़े संवेदनशील हैं, तो आरेक्निक भी संवेदनशील हैं ।

यहाँ हम एक ऐसे प्रश्न का सामना कर रहे हैं जिसके लिए हम तत्काल और स्पष्ट उत्तर पर नहीं पहुंच सकते । हालांकि, हमें सभी विभिन्न आधारों और हमारे पास सभी साक्ष्यों पर विचार करना है ताकि खोजने की दिशा में प्रगति की जा सके जो सबसे प्रशंसनीय उत्तर होगा । यह तर्क प्रक्रिया अन्य जानवरों (जैसे वर्टिब्रेट्स ) के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के समान है । यहां हमें और अधिक कारकों पर विचार करने की आवश्यकता हो सकती है ।

द्विवाल्व और अन्य प्राणियों का नर्वस सिस्टम गांगलिआ के साथ सेंट्रलाइज़्ड

समस्या और अधिक हो जाती है अगर हम एक सरल संरचना वाले अन्य प्राणियों पर विचार करें जिनके पास मष्तिष्क नहीं है , लेकिन केवल कुछ सेंट्रल नर्वस गंगलिया है । यह कई अकशेरूकी कि संरचना है, जैसे, उदाहरण के लिए, बाइवाल्व मोलस्क (मसल्स और कस्तूरी सहित) और गैस्ट्रोपोड्स (घोंघे सहित) ।6 इन मामलों में विकासवादी तर्क के लिए अपील उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन जानवरों का व्यवहार बहुत सरल है , यह आवश्यक नहीं है कि जो सरल व्यवहार प्रदर्शित करे वो सचेतन हो । यह विशेष रूप से उन जानवरों में होता है जो चट्टानों या अन्य सतह से जुड़े रहते हैं, बिना किसी गति के, बाइवाल्व या कुछ क्रस्टेसिया जैसे बार्नाकल्स के मामले में । बाइवाल्व कुछ प्रतिक्रिया का प्रदर्शन कर सकते हैं, जैसे कि उनके शेल्स को खोलना और बंद करना । लेकिन इन प्रतिक्रियाओं को कुछ उत्तेजना-प्रतिक्रिया द्वारा ऊर्जा के मामले में अधिक आर्थिक तरीके से ट्रिगर किया जा सकता है (वास्तव में, उनका व्यवहार एक अंसेंट्रलाईज़ेड नर्वस सिस्टम वाले अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक जटिल नहीं है, जैसे मांसाहारी पौधे या कुछ एचिनोदरंस । किसी भी दर पर, उनका शारीरिक विज्ञान इस सवाल को जन्म देता है । यह हो सकता है कि वे अनुभवी हो । चेतना का आधार क्या है, इस सवाल का जवाब देने के बारे में ज्ञान की हमारी कमी को देखते हुए उस संभावना से इंकार करना संभव नहीं है ।7

ऐसे अन्य संकेतक हैं जो निर्णायक नहीं हैं, हालांकि वे हमें प्रश्न का मूल्यांकन करने में मदद कर सकते हैं । बाइवाल्व में ऐसे तंत्र होते हैं जो अन्य जानवरों के पास ओपिएट रिसेप्टर्स के अनुरूप होते हैं ।8 अन्य जानवरों में, इन रिसेप्टर्स का काम दर्द होने पर उनके दर्द को राहत देना है । इसके कारण, एक बहुत ही प्रशंसनीय स्पष्टीकरण यह है कि बाइवाल्व के पास वह क्यों है, शायद क्योंकि वे भी पीड़ित हो सकते हैं । लेकिन यह पूरी तरह निर्णायक नहीं है । यह भी संभव है कि इन जानवरों में इन पदार्थों का इस्तेमाल अलग उद्देश्य से होता हो ,जो अन्य जानवरों में उनके पास होने वाले उद्देश्य से अलग है ।

इनके अलावा, इस विचार का समर्थन करने वाले अन्य कारण हैं कि बहुत सरल सेंट्रलाइज़्ड नर्वस सिस्टम वाले बाइवाल्व और अन्य जानवर भी पीड़ित हो सकते हैं । उनमें से एक यह है कि कुछ बाइवाल्व में सरल आंखें होती हैं, और सबसे प्रशंसनीय स्पष्टीकरण यह है कि आंखे होने के नाते दृष्टि (जैसे घोंघे) का अनुभव भी होता है । 9 यह भी पता चला है कि बाइवाल्व की हृदय गति उन स्थितियों में तेज हो जाती है जिनमें उन्हें शिकारियों द्वारा खतरा होता है ।10 इसके अलावा, ध्वनियां और कंपन मसल्स और ओएस्टर्स की संवेदनशीलता सीमा में हैं ।11 ये संकेतक फिर से निर्णायक नहीं हैं, लेकिन वे दिखाते हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि ये जानवर सचेत नहीं हैं । अन्य जानवरों के मामले में जिनमे कुछ सेंट्रलाइज़्ड नर्वस सिस्टम हैं, हम कुछ ऐसा ही कह सकते हैं ।


आगे की पढ़ाई

Allen, C. & Trestman, M. (2014 [1995]) “Animal consciousness”, Zalta, E. N. (ed.) Stanford encyclopedia of philosophy, Stanford: The Metaphysics Research Lab [अभिगमन तिथि 18 फरवरी 2015].

Barr, S.; Laming, P. R.; Dick, J. T. A. & Elwood, R. W. (2008) “Nociception or pain in a decapod crustacean?”, Animal Behaviour, 75, pp. 745-751.

Birch, J. (2020) “The search for invertebrate consciousness”, Noûs, 30 August [अभिगमन तिथि 4 फरवरी 2021].

Broom, D. M. (2007) “Cognitive ability and sentience: Which aquatic animals should be protected?”, Diseases of Aquatic Organisms, 75, pp. 99-108.

Crook, R. J. (2013) “The welfare of invertebrate animals in research: Can science’s next generation improve their lot?”, Journal of Postdoctoral Research, 1 (2), pp. 9-18 [अभिगमन तिथि 22 फरवरी 2014].

Crook, R. J.; Hanlon, R. T. & Walters, E. T. (2013) “Squid have nociceptors that display widespread long-term sensitization and spontaneous activity after bodily injury”, The Journal of Neuroscience, 33, pp. 10021-10026.

Dawkins, M. S. (2001) “Who needs consciousness?”, Animal Welfare, 10, pp. 19-29.

Eisemann, C. H.; Jorgensen, W. K.; Merritt, D. J.; Rice, M. J.; Cribb, B. W.; Webb, P. D. & Zalucki, M. P. (1984) “Do insects feel pain? A biological view”, Experentia, 40, pp. 164-167.

Elwood, R. W. (2011) “Pain and suffering in invertebrates?”, ILAR Journal, 52, pp. 175-184.

Elwood, R. W. & Adams, L. (2015) “Electric shock causes physiological stress responses in shore crabs, consistent with prediction of pain”, Biology Letters, 11 (1) [अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2015].

Elwood, R. W. & Appel, M. (2009) “Pain experience in hermit crabs?”, Animal Behaviour, 77, pp. 1243-1246.

Fiorito, G. (1986) “Is there ‘pain’ in invertebrates?”, Behavioural Processes, 12, pp. 383-388.

Gentle, M. J. (1992) “Pain in birds”, Animal Welfare, 1, pp. 235-247.

Gherardi, F. (2009) “Behavioural indicators of pain in crustacean decapods”, Annali dell´Istituto Superiore di Sanita, 45, s. 432-438.

Gibbons, M.; Sarlak, S. & Chittka, L. (2022) “Descending control of nociception in insects?”, Proceedings of the Royal Society B: Biological Sciences, 289 (1978) [अभिगमन तिथि 22 जुलाई 2022].

Griffin, D. R. (1984) Animal thinking, Cambridge: Harvard University Press.

Griffin, D. R. (2001) Animal minds: Beyond cognition to consciousness, Chicago: Chicago University Press.

Harvey-Clark, C. (2011) “IACUC challenges in invertebrate research”, ILAR Journal, 52, pp. 213-220.

Horvath, K.; Angeletti, D.; Nascetti, G. & Carere, C. (2013) “Invertebrate welfare: An overlooked issue”, Annali dell´Istituto superiore di sanità, 49, pp. 9-17.

Huffard, C. L. (2013) “Cephalopod neurobiology: An introduction for biologists working in other model systems”, Invertebrate Neuroscience, 13, pp. 11-18.

Knutsson, S. (2015a) The moral importance of small animals, मॉस्टर शोधग्रन्थ, Gothenburg: University of Gothenburg [अभिगमन तिथि 4 जनवरी 2016].

Knutsson, S. (2015b) “How good or bad is the life of an insect”, Simon Knutsson, Sep. [अभिगमन तिथि 4 जनवरी 2016].

Leonard, G. H.; Bertness, M. D. & Yund, P. O. (1999) “Crab predation, waterborne cues, and inducible defenses in the blue mussel, Mytilus edulis”, Ecology, 75, pp. 1-14.

Lozada, M.; Romano, A. & Maldonado, H. (1988) “Effect of morphine and naloxone on a defensive response of the crab Chasmagnathus granulatus”, Pharmacology, Biochemistry, and Behavior, 30, pp. 635-640.

Magee, B.; Elwood, R. W. (2013) “Shock avoidance by discrimination learning in the shore crab (Carcinus maenas) is consistent with a key criterion for pain”, Journal of Experimental Biology, 216, pp. 353-358 [अभिगमन तिथि 25 दिसंबर 2015].

Maldonado, H. & Miralto, A. (1982) “Effect of morphine and naloxone on a defensive response of the mantis shrimp (Squilla mantis), Journal of Comparative Physiology, 147, pp. 455-459.

Mather, J. A. (2001) “Animal suffering: An invertebrate perspective”, Journal of Applied Animal Welfare Science, 4, pp. 151-156.

Mather, J. A. (2008) “Cephalopod consciousness: Behavioral evidence”, Consciousness and Cognition, 17, pp. 37-48.

Mather, J. A. & Anderson, R. C. (2007) “Ethics and invertebrates: A cephalopod perspective”, Diseases of Aquatic Organisms, 75, pp. 119-129.

Tomasik, B. (2016 [2015]) “The importance of insect suffering”, Essays on Reducing Suffering, Apr 25 [अभिगमन तिथि 23 मार्च 2017].

Tomasik, B. (2018 [2016]) “Brain sizes and cognitive abilities of micrometazoans”, Essays on Reducing Suffering, 16 Jun. [अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2020].

Tomasik, B. (2019 [2013]) “Speculations on population dynamics of bug suffering”, Essays on Reducing Suffering, Jun 16 [अभिगमन तिथि 18 मार्च 2020].

Tye, M. (2017) Tense bees and shell-shocked crabs: Are animals conscious?, New York: Oxford University Press.

Volpato, G. L. (2009) “Challenges in assessing fish welfare”, ILAR Journal, 50, pp. 329-337.

Walters, E. T. & Moroz, L. L. (2009) “Molluscan memory of injury: Evolutionary insights into chronic pain and neurological disorders”, Brain, Behavior and Evolution, 74, pp. 206-218 [अभिगमन तिथि 22 सितंबर 2013].

Wilson, C. D.; Arnott, G. & Elwood, R. W. (2012) “Freshwater pearl mussels show plasticity of responses to different predation risks but also show consistent individual differences in responsiveness”, Behavioural Processes, 89, pp. 299-303.

Zullo, L. & Hochner, B. (2011) “A new perspective on the organization of an invertebrate brain”, Communicative & Integrative Biology, 4, pp. 26-29.


नोट्स

1 Braithwaite, V. A. (2010) Do fish feel pain?, Oxford: Oxford University Press. Sherwin, O. M. (2001) “Can invertebrates suffer? Or how robust is argument-by-analogy?”, Animal Welfare, 10, pp. 103-108. Sneddon, L. U.; Braithwaite, V. A. & Gentle, M. J. (2003) “Do fishes have nociceptors? Evidence for the evolution of a vertebrate sensory system”, Proceedings of the Royal Society B: Biological Sciences, 270, pp. 1115-1121. Elwood, R. W.; Barr, S. & Patterson, L. (2009) “Pain and stress in crustaceans?”, Applied Animal Behaviour Science, 118, pp. 128-136.

2 Crook, R. J. & Walters, E. T. (2011) “Nociceptive behavior and physiology of molluscs: Animal welfare implications”, ILAR Journal, 52, pp. 185-195.

3 Wigglesworth, V. B. (1980) “Do insects feel pain?”, Antenna, 4, pp. 8-9. Allen-Hermanson, S. (2008) “Insects and the problem of simple minds: Are bees natural zombies?”, Journal of Philosophy, 105, pp. 389-415.

4 Balderrama, N.; Díaz, H.; Sequeda, A.; Núñez, A. & Maldonado H. (1987) “Behavioral and pharmacological analysis of the stinging response in africanized and italian bees”, Menzel, Randolf & Mercer, Alison R. (eds.) Neurobiology and behavior of honeybees, Berlin: Springer, p. 127. Núñez, J.; Almeida, L.; Balderrama, N. & Giurfa, M. (1997) “Alarm pheromone induces stress analgesia via an opioid system in the honeybee”, Physiology & Behaviour, 63, p. 78.

5 प्रकृति में जानवोरन कि पीड़ा की जांच के ज़मीनी कार्य के रूप में पुछा गया मुख्य सवाल ये है की प्रकृति में सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों का फैलाव कैसा है । Ng, Y.-K. (1995) “Towards welfare biology: Evolutionary economics of animal consciousness and suffering”, Biology and Philosophy, 10, pp. 255-285.

6 यह ध्यान में रखे कि अन्य मोलूस्कस , जैसे कि सेफ़लोपोड्स में पूरी तरह से अलग तंत्रिका तंत्र होता है जो कि कहीं अधिक जटिल है ।

7 Crook, R. J. & Walters, E. T. (2011) “Nociceptive behavior and physiology of molluscs: Animal welfare implications”, op. cit.

8 Smith, J. A. (1991) “A question of pain in invertebrates”, ILAR Journal, 33, pp. 25-31. Sonetti, D.; Mola, L.; Casares, F.; Bianchi, E.; Guarna, M. & Stefano, G. B. (1999) “Endogenous morphine levels increase in molluscan neural and immune tissues after physical trauma”, Brain Research, 835, pp. 137-147. Cadet, P.; Zhu, W.; Mantione, K. J.; Baggerman, G. & Stefano, G. B. (2002) “Cold stress alters Mytilus edulis pedal ganglia expression of μ opiate receptor transcripts determined by real-time RT-PCR and morphine levels”, Molecular Brain Research, 99, pp. 26-33.

9 Morton, B. (2001) “The evolution of eyes in the Bivalvia”, Gibson, R. N.; Barnes, M. & Atkinson, R. J. A. (eds.) Oceanography and marine Biology: An annual review, vol. 39, London: Taylor & Francis, pp. 165-205. Morton, B. (2008) “The evolution of eyes in the Bivalvia: New insights”, American Malacological Bulletin, 26, pp. 35-45. Aberhan, M.; Nürnberg, S. & Kiessling, W. (2012) “Vision and the diversification of Phanerozoic marine invertebrates”, Paleobiology, 38, pp. 187-204. Malkowsky, Y.; Götze, M.-C. (2014) “Impact of habitat and life trait on character evolution of pallial eyes in Pectinidae (Mollusca: bivalvia)”, Organisms Diversity & Evolution, 14, pp. 173-185. Morton, B. & Puljas, S. (2015) “The ectopic compound ommatidium-like pallial eyes of three species of Mediterranean (Adriatic Sea) Glycymeris (Bivalvia: Arcoida). Decreasing visual acuity with increasing depth?”, Acta Zoologica, 97, pp. 464-474.

10 Kamenos, N. A.; Calosi, P. & Moore, P. G. (2006) “Substratum-mediated heart rate responses of an invertebrate to predation threat”, Animal Behaviour, 71, pp. 809-813.

11 Charifi, M.; Sow, M.; Ciret, P.; Benomar, S. & Massabuau, J.-C. (2017) “The sense of hearing in the Pacific oyster, Magallana gigas”, PLOS ONE, 12 (10) [अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2018].