यह पृष्ठ इस बारे में है कि जंगल में रहने वाले जानवर किस तरह की बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं । जंगल में जानवरों का जीवन कैसा होता है, इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस भाग पर देखें; सिचुएशन ऑफ एनिमल्स इन द वाइल्ड (प्रकृति में जानवरों की स्थिति) ।
बीमारी के कारण मनुष्यों को होने वाली उस अत्यधिक पीड़ा के बारे में सोचिए जो आधुनिक दवाओं के आगमन से पहले थी । यही स्थिति जंगल में जानवरों की है । उपचार की उपलब्धता में कमी और कभी- कभी आराम और स्वस्थ होने की संभावना में कमी के द्वारा बीमारियों के कारण होने वाले नुकसान और भी बुरे होते हैं, इसके अलावा शरीर के कार्य करने और स्वस्थ होने की क्षमता पर इनके बुरे प्रभावों की ओर, पर्यावरणीय स्थितियों और अन्य तनावकारी पहलुओं के नकारात्मक प्रभावों को और बढ़ा सकते हैं, जिनका जंगली जानवर सामना करते हैं । इसका परिणाम बढ़कर पीड़ा और मृत्यु हो सकता है ।1
एक जानवर के पास किसी भी समय केवल एक सीमित ऊर्जा होती है और अवश्य ही यह बदलती है । जो भी जानवर रोगों से मर रहे हैं वे यह चुनाव कर सकते हैं कि वे अपनी ऊर्जा का उपयोग रोगों से लडने की बजाय बच्चा पैदा करने या पुनरूत्पादन करने में करें । इसका अर्थ है कि जानवरों की वे प्रजातियां जिनमें पैतृक देखभाल उपलब्ध है, हो सकता है कि जब वे बीमार हों तो वे अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हों, और मरने के बाद के बाद अपने बच्चों को और भी दयनीय हालत में छोड़ जायें ।2
Mकई जानवरों ने बीमारी की पहचान दिखाने को नज़रअंदाज़ करना विकसित कर लिया है । कमज़ोर और दयनीय दिखने वाले जानवर शिकारियों के लिए मुख्य लक्ष्य होते हैं । इसके अतिरिक्त, हो सकता है कि समूहों में रहने वाले अपना सामाजिक स्थान खो दें या परित्यक्त जो जाएं और अपना बचाव खुद ही करने के लिए छोड़ दिए जाएं जब वे कम से कम समर्थ हों ।
वैकल्पिक रूप से, कभी- कभी जानवर चुनिंदा रूप से बीमारियों के आदतें प्रदर्शित करते हैं जैसे सस्ती या ऊंघना । यह तब होता है जब बीमारियों की आदतें किसी रोग के कारण नहीं होते बल्कि एक रोग से लडने से बची ऊर्जा के कारण होते हैं । वर्ष के नियत समय पर निर्धारित और अन्य परिस्थितियां, बीमारियों के आचरण पुनरूत्पादन की संभावनाओं को कम कर सकते हैं या महत्वपूर्ण क्षेत्र के बचाव को असंभव बना सकते हैं । हो सकता है एक जानवर अपने क्षेत्र का बचाव करने का प्रयास करने की बजाय आराम और स्वस्थ होने में ज़्यादा समय लगाए, तब जबकि वह बच्चे जनने के मौसम में ना हो । बच्चे जनने के मौसम के दौरान, हो सकता है वे अपनी ऊर्जा का उपयोग स्वस्थ होने की बजाय पुनरूत्पादन और अपने घोंसले या ख़ोह के बचाव के लिए करें ।3
इस प्रकार, एक जानवर को एक बीमारी या रोग के कारण बहुत पीड़ा हो सकती है जिसे हम बिना चिकित्सकीय जांच किए नहीं पहचान सकते । जिस तरह से और भी अनुसंधान इस बात पर जारी हैं कि जंगल में बीमारियों के कारण जानवर कैसे प्रभावित हैं, इस क्षेत्र में हमारी जानकारी बढ़ना जारी है ।4 इस बीच में, यहां कुछ जानवरों में पहचानने योग्य व्यावहारिक संकेत हैं जो सुस्ती, भूख़ में कमी और स्फूर्ति घटने के साथ- साथ बुख़ार का अनुभव करते हैं, जैसा कि ऊपर उल्लेखित है, जानवर अपना आचरण व्यक्त ना करना तय कर सकते हैं यदि इसकी लागत बहुत अधिक हो ।5 मनुष्य भी अस्पताल में बड़ी संख्या में जानवरों के निरीक्षण या शव परीक्षाओं के माध्यम से बहुत कुछ सीख सकते हैं ।
स्वास्थ्य के संकेतों की पहचान हेतु शरीर को बिना खोले जांच करने वाली कुछ तकनीकें पर्याप्त हैं । अवरक्त चित्रों और चलचित्र (वीडियो), बायोएकॉस्टिक्स और पंखों, बालों, मल और निकल चुकी त्वचा, भोजन, गतिविधि, बातचीत, शरीर के तापमान, आराम करने और विस्थापन के बारे में जानकारी दे सकते हैं । ये तरीके कठिन इलाकों और कठोर जलवायु में कारगर हो सकते हैं, और छुपे हुए और रात्रिकालीन प्रजातियों के सदस्य जिनका निरीक्षण कठिन है उनके बारे में जानकारी जमा की जा सकती है । उदाहरण के लिए, थर्मल इमेजिंग (उष्णता आधारित चित्र) तकनीक का उपयोग लंगड़ेपन के कारण, चोटों और संचालन प्रणाली में सूजन होना, संक्रामक रोगों के निदान और तनाव स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है ।6
कुछ जानवरों का निरीक्षण करना पूर्णतया कठिन है, जैसे कि छोटे जानवर जो अपने जीवन का अधिकतम समय जमीन के नीचे बिताते हैं और अत्यन्त बहुत छोटे अकशेरुकी वाले होते हैं । समुद्री जानवरों का अध्ययन भी कठिन हो सकता है क्योंकि उनकी संख्या अधिक होती है और उनका बिना शरीर खोले अध्ययन करना ज़्यादा कठिन है । इन कारकों के फलस्वरूप और सापेक्ष रूप से इस मुद्दे पर अध्ययन करने में रूचि की कमी के कारण, यहां जंगल में रहने वाले जानवरों की रोगों द्वारा होने वाली पीडा को हल्के में लेने की प्रवृत्ति है । जो बीमारियां मनुष्यों या घरेलू जानवरों में संचारित हो सकती हैं वे ज़्यादा पहचानी जाती हैं ।7
यहां प्रकृति में ऐसी बहुत सी बीमारियां है जो अमानूष जानवरों को प्रभावित करती हैं, उन सभी को यहां सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता । इनमे से कुछ बीमारियों से मनुष्य भी पीड़ित हो सकते हैं जैसे कि फ्लू, निमोनिया, क्षय रोग, हैज़ा, इबोला, एंथ्रेक्स, ई कोली, सालमोनेला, डिप्थीरिया और रेबीज़ । कैंसर भी स्थलीय और समुद्री दोनों जानवरों में सामान्य है ।8 व्हेल की कुछ जनसंख्या मनुष्यों के समान दर से कैंसर से पीड़ित है ।9 अन्य सामान्य रोग जो कि जंगल में रहने वाले जानवरों को संक्रमित कर सकते हैं वे क्लेश, बहुकालीन थकाने वाली बीमारी, अफ़्रीकन स्वाइन बुखार, कीड़े और कई प्रकार के फफुंदीय संक्रमण हैं । परजीवी संक्रमण भी सामान्य हैं,10 और उन जानवरों में ज़्यादा प्रचलित और गंभीर हैं जिनकी प्रतिरक्षा क्षमता अन्य कारकों द्वारा कमज़ोर है जैसे कि संक्रामक रोग, मौसम, कुपोषण,शारीरिक बदलाव या11 अन्य जानवरों के साथ प्रतिकूल संबंधों के कारण होने वाले तनाव ।
जब जानवरों में रोगों कि बात आती है तो ज़्यादातर लोग इस बारे में नहीं सोचते की किस प्रकार अकशेरुकी पीड़ित हो सकते हैं । वे अन्य जानवरों कि तरह जीवाणु- संबंधी, विषाक्त संक्रामक और फफूंदीय संक्रमण ग्रहण करते हैं । इनमे से कुछ, ख़ास तरह के जानवरों को संक्रमित करते हैं, वे अकशेरुकी जानवरों में नहीं फैलते, लेकिन उनका इलाज़ टीकों, जीवाणुनाशकों, और फंगुसरोधियों द्वारा समान रूप से हो सकता है ।12 यहां स्थलीय और समुद्री अकशेरुकी जानवरों में पाए जाने वाले सामान्य रोग इस प्रकार हैं ।
तितलियों को प्रभावित करने वाली एक बड़ी बीमारी न्यूक्लियर पोलीहाइड्रोसिस वायरस या काली मौत है । इस यह इसलिए कहते हैं क्योंकि जो इससे प्रभावित होता है उसे सुस्ती होती है और उनका शरीर क्षय होते हुए कला पड़ने लगता है । उनके शरीर का क्षय होने के कारण वे भीतर से द्रवित होने और रिसने लगते हैं । विषाणु (वायरस) आम तौर पर इल्ली के रूप में हमला करता है । यह इल्ली से एक बड़े तनाव का कारण उत्पन्न करता है, जो कि भोजन ग्रहण करना छोड़ देना या उल्टी कर सकता है । विषाणु इल्लियों को मारने के लिए तीन दिन तक का समय ले सकता है ।13 तरलीकृत शरीर की संक्रमित बूंदें पत्तों पर आसानी से फैलती हैं और पत्तों को खाने वाली इल्लियों को संक्रमित करते हुए परजीवियों द्वारा आगे भी फैलती हैं ।14
बड़े पैमाने पर क्रिकेट्स को पीड़ा देने वाली एक बीमारी को क्रिकेट पक्षाघात विषाणु के नाम से जाना जाता है । संक्रमित क्रिकेट्स कुपोषित होकर, कूदने के परेशानी हो जाने के कारण सामंजस्य गवां कर, उनके पैर विक्षिप्त हो जाते हैं और वे उल्टे गिर जाते हैं जहां कुछ दिन लेटे रहने के बाद उनकी मौत हो जाती है । यह स्पष्ट नहीं है कि क्रिकेट के लिए यह तनाव या पीड़ा का कारण है । यह अन्य कीड़ों को भी संक्रमित कर सकता है, और वैसा ही तनाव मधुमक्खियों और मक्खियों को संक्रमित करता है । यह मल द्वारा मुंह के संपर्क से फैलता है । यह विषाणु पहली बार ऑस्ट्रेलिया में पाया गया था, लेकिन तब से, दुनियाभर में इसके कई रूप पाए जा चुके हैं । हो सकता है यह वैसे ही तनाव वाला विषाणु ना हो, किन्तु इसके प्रभाव वैसे ही हैं, जिसके प्रभावितों में से 95% मर चुके हैं ।15
लोब्स्टर एक सामान्य बीमारी से पीड़ित होते हैं जिसे सरल रूप में घोंघा बीमारी नाम से जाना जाता है । स्वस्थ लोबस्टर में एक चिकनी सुरक्षात्मक परत होती है जो घोंघे को जीवाणु द्वारा खाए जाने से बचाती है । घोंघा बीमारी द्वारा, घोंघे का क्षय होने के कारण यह परत विलुप्त हो जाती है, और बदल जाती है । गर्म पानी में रहने वाले लोबस्टर ज़्यादा अतिसंवेदनशील होते हैं । यह बीमारी अपने आप में जानलेवा नहीं है लेकिन यह लॉबस्टर में कष्ट और कमजोरी का कारण हो सकती है जो कि अन्य हानियों जैसे चोटों और शिकारियों से हानियों द्वारा उनकी दयनीयता को बढ़ाता है ।16
समुद्री वातावरण में विषाणु अत्यंत सामान्य हैं । सफ़ेद धब्बों वाले रोग सुस्ती और उच्च संक्रामक विषाणु हैं जो झींगा, झींगा मछली और अन्य समुद्री जीवों को प्रभावित करते हैं । केवल एक या दो झींगों के विषाणु के संपर्क में आने से झींगों की पूरी जनसंख्या संक्रमित हो सकती है । इसके मुख्य लक्षण कम ऊर्जा, भूख में कमी और पूरे शरीर पर आने वाले सफ़ेद छोटे धब्बे हैं । यह प्रतिरक्षा क्षमता को बहुत कम करता है और इसके संपर्क में आने के तुरंत बाद जानवर मर जाते हैं । यह पानी के द्वारा फैलता है ।17
विद्रिग अबालोन सिंड्रोम एक प्रलयकारी बीमारी के कारण एबालोन भूख़ से मर सकती है । यह बीमारी संक्रमित जानवरों में जीवाणु द्वारा पाचन तंत्र परत का उपभोग करने से होती है । यह एक एबलोन को भोजन पचाने से रोक कर, पाचन किण्वन (एंजाइम) को नष्ट कर सकता है । जीवित रहने के लिए, ऐबालोन अपने ही शरीर से उपभोग करता है । इसके कारण मांसपेशियां कम होती हैं, फलस्वरूप “मुरझायापन” प्रत्यक्ष होता है । इसके कमज़ोर होने की स्थिति में संक्रमित जानवर भूख से मर जाएंगे या शिकारियों द्वारा खा लिए जाएंगे । यह जलजनित मल द्वारा संचारित होता है, और जब जलीय तापमान बढ़ता है तो एबलोंस इसके प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं ।18
कशेरुकी जानवरों को प्रभावित करने वाली बीमारियों के बारे में ज़्यादातर ज्ञात हैं । कशेरुकी बीमारियां अध्ययन करने में आसान हैं क्योंकि जानवर बहुत बड़ी संख्या में हैं और कई कशेरुकी बीमारियां, मनुष्यों और घरेलू जानवरों के साथ – साथ विविध कशेरुकियों के मध्य संचारित होने के योग्य होती हैं । कशेरुकी जानवरों में सामान्य बीमारियों के रूप नीचे दिए गए हैं ।
फाइब्रोपपिल्लोमटोसिस एक विषाणु है जो समुद्री कछुओं को संक्रमित करता है । यह ऊतकों में सूजन, रक्तवाहिकाओं का जमना और आंख, सिर, गले, मछली के पंख और कई आंतरिक अंगों में घावों का कारण बनता है । इसकी वजह से प्रतिरक्षा तंत्र में दुर्बलता और शामनिक प्रभाव होता है जो कछुओं को अन्य बीमारियों के प्रति ग्रहणशील बनता है और पर्यावरण में उनकी अन्य तनावकारी कारकों के समक्ष प्रतिक्रिया करने की क्षमता को घटाता है । जब तक कि यह अपने आप दूर जा सकें, यह लगातार घातक है । यह ट्रेमाटॉड परजीवियों द्वारा फैलता है जो कि मध्यवर्ती पोषिता की तरह कार्य करता है ।19
स्तनपायी प्राणियों की तरह, पक्षी भी फ्लू के प्रति अतिसंवेदनशील हैं । यद्यपि तनाव अलग हैं, पर वे भी हैजा और मलेरिया से बार-बार ग्रसित होते हैं । उष्ण (गर्म) और आर्कटिक जलवायु दोनों में रहने वाले पक्षियों में एवियन हैजा एक सामान्य जीवाणु रोग है । कई पक्षी इससे ग्रसित होते हैं लेकिन यह बीमारी तभी सक्रिय होती है जब पक्षी शारीरिक या मानसिक रूप से तनाव में होते हैं । इस कारण से वज़न में कमी, बलगम आना, दस्त और सांस फूलती है । यह यकृत (लिवर), स्प्लीन (तिल्ली) और त्वचा पर आक्रमण कर सकता है और सूजन की वजह से गठिया का कारण हो सकता है । एवियन हैजा में एक उच्च मृत्यु- दर हो सकती है, ख़ासतौर से तब, जब यह आबादी में फैले । पिछले 50 सालों में, भौगोलिक और प्रजातियों पर बुरे असर के मामले, दोनों रूपों में ही बीमारी फैली है और इसका बार– बार फैलना सामान्य है । यह सीधे संपर्क और गंदे पानी या मिट्टी के अंतर्ग्रहण द्वारा फैलता है ।20 बहुत ठंडा मौसम या अत्यधिक पानी, पक्षियों को अपने आवास छोड़कर गर्म क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर करने वाले सामान्य कारक हैं जो कि संक्रमित पक्षियों में बीमारी ला सकते हैं ।21
एवियन मलेरिया जो कि घातक हो सकता है, पक्षियों में होने वाला एक परजीवी संक्रमण है । पक्षियों की 75% – 100% जनसंख्या इसकी वाहक है किन्तु यह तभी प्रकट होती है जब परजीवियों का सकेंद्रण एक नियत स्तर पर पहुंचता है । वयस्क पक्षियों कि अपेक्षा अल्पवयस्क पक्षी इसके प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं ।22
दीर्घकालिक हानिकारक बीमारी एक उच्च संक्रामक रोग है जो हिरण, बारहसिंगा और जंगली सांडों के तंत्रिका तंत्र और कई अंगों पर आक्रमण करता है और अन्ततः मस्तिष्क में छेद कर देता है ।23 इसके लक्षणों को प्रकट होने में एक से अधिक वर्ष लग सकता है । इसके लक्षणों में वज़न घटना, निर्जलीकरण, बुरा समन्वय और मनुष्यों के प्रति भय का कम होना शामिल है । यह हमेशा घातक है, और वर्तमान में इसका कोई टीका और इलाज़ नहीं है । संक्रमित रक्त या मूत्र से दूषित मिट्टी और पौधे अन्य जानवरों को 16 वर्ष तक संक्रमित कर सकते हैं ।24
डिस्टेम्पर खसरा से संबंधित एक संक्रामक बीमारी है जो स्तनधारियों के जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल), श्वसन संबंधी और तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है । आमतौर पर यह कुत्तों से संबंधित है किन्तु यह कई जंगली जानवरों को भी प्रभावित करता है जिसमें रेकून, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, हिरण, बंदर और सील शामिल हैं । संक्रमित जानवर वैसा ही व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं जो रेबीज़ के कारण होता है, जिनमें लार गिराना, गोल घूमना, पंजे चाटना-चबाना, वातावरण के प्रति प्रतिक्रियाहीनता और मनुष्यों से डर खत्म होना शामिल है । इसके कारण बुखार, उल्टी, बेहोशी और पक्षाघात हो सकता है । विषाणु हवाई संपर्क, लार से संपर्क, और गर्भनाल द्वारा मां से बच्चे को संचारित होता है । यह आमतौर पर घातक है । जो कोई भी जीवित बचा हो, हो सकता है उन्हें स्थायी स्नायविक क्षति पहुंची हो ।25
उभयचर प्राणी जानलेवा त्वचा रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं, जैसे कि फफुंदीय संक्रमण और रानावायरस । पानी के फफुंदीय संक्रमण चिटिद्रियोमिकोसिस को “लिखित रूप में प्राणघातक रोगजनक” कहा गया है । यह नम जलवायु में मेंढकों, सलामांदर्, और अन्य उभयचर प्राणियों पर बुरा असर डालता है । फफूंद जानवरों की त्वचा खाती है, जिसके कारण उपापचयी परिवर्तन होते हैं और बाद में हृदयाघात के द्वारा जानवर मर जाते हैं । यह नियमित रूप से प्रतिरक्षी उभयचरों से अन्य कमज़ोर जानवरों की ओर फैलता है ।26
रानावायरस एक त्वचा रोग है जो उभयचरों, सरीसृप और मछलियों को संक्रमित करता है । यह अल्पवयस्क उभयचर और सरीसृप पर हमला करते हैं और अतिसंवेदशील जानवरों के लिए घातक होते हैं । इसके कारण त्वचा पर रक्त आना, और पेशियों और अन्य आंतरिक अंगों पर घाव हो जाते हैं । इसमें सूजन और तरल पदार्थ का जमना सामान्य है जो कि सांस फूलने और झटके लगने का कारण हो सकते हैं । विषाणु तेज़ी से फैलते हैं और यह प्रतिरोधी इकाइयों जिन्होंने इसे फैलाया है, के द्वारा वर्षों तक आश्रय पा सकते हैं । अधिक प्रतिरोधी प्रजातियों से निकटता द्वारा एक अतिसंवेदनील जनसंख्या इससे ग्रसित हो सकती है । यह सीधे संपर्क, मिट्टी और जल के द्वारा संचारित हो सकता है । यह मछलियों और मेंढकों के बीच फैल सकता है और संभावित रूप से सरीसृप, उभयचर और मछलियों में फैल सकता है ।27
हानिकारक शैवाल पौधों द्वारा उत्पादित विषाक्त रसायनों द्वारा अक्सर मछलियों, समुद्री स्तनधारी, पक्षी और चमगादड़ प्रभावित होते हैं । इससे स्थलीय जानवर भी प्रभावित हो सकते हैं । विषैले पदार्थ जानवरों के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को खराब करते हैं और गंभीर रूप से घायल कर सकते हैं या मार सकते हैं ।28 यह दूषित जल में तैरने या पीने, विषैले शैवाल खाने और दूषित अणुओं को सांस में लेने से फैलता है ।29
अन्य शैवाल पौधे विष उत्सर्जित नहीं करते बल्कि जल में अपने सड़ने के दौरान जल से आक्सीजन ग्रहण करते हैं, जो कि मछलियों और अकशेरुकियों के श्वसन को प्रभावित करता है । सड़ता हुआ शैवाल भी मछलियों के गले में फंस सकता है और उनका दम घोंट सकता है ।30
निम्नलिखित संसाधन कुछ उदाहरणों को सूचीबद्ध करते हैं जो जंगली जानवरों के बीच बीमारी के कारण होने वाले कष्ट के पैमाने की बेहतर समझ देते हैं:
Animal disease information – Center for Food Security & Public Health
A-Z list of significant animal pests and diseases – Queensland Government
Animal disease information – United States Department of Agriculture
Information on aquatic and terrestrial animal diseases – World Organisation for Animal Health
Animal diseases – EPIZONE
Journal of Wildlife Diseases – Quarterly journal of the Wildlife Disease Association
Parasites and diseases – Alaska Department of Fish and Game31
प्रकृति में बीमारियां आम हैं, और मौसम की स्थिति से प्रभावित होती हैं, परजीवी संक्रमण, खराब पोषण या भय से तनाव । पशु भी अपनी ऊर्जा खर्च करने के तरीके में व्यापार करते हैं । ऐसे मामलों में जहां उनके पास बीमारी से बचाव या प्रजनन के लिए केवल पर्याप्त ऊर्जा होती है, प्रजनन अक्सर पसंदीदा होता है । जंगल में रहने वाले जानवर अक्सर उन बीमारियों से मर जाते हैं जिन्हें रोका या इलाज किया जा सकता है । इन तरीकों से उन्हें पहले से ही कैसे मदद की जा रही है, इस बारे में जानकारी के लिए, हमारे पृष्ठ को देखें टीकाकरण और बीमार जानवरों को ठीक करें ।
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