यह विषय जंगल में रहने वाले जानवरों की स्थितियों की जांच की श्रृंखला का एक भाग है । जंगल में जानवरों की पीड़ा और मरने के तरीकों की जांच करने के लिए और विषयों हेतु, हमारे मुख्य पृष्ठ “जंगल में जानवरों की स्थिति (द सिचुएशन ऑफ एनिमल्स इन द वाइल्ड)” देखें । हम जानवरों कि मदद कैसे कर सकते हैं, इसकी जानकारी के लिए हमारा पृष्ठ “ जंगल में जानवरों को आधारभूत ज़रूरतें उपलब्ध कराना (प्रोवाइडिंग फॉर बेसिक नीड्स ऑफ एनिमल्स इन द वाइल्ड)” देखें ।
पैदा होना भुखमरी का सबसे सामान्य कारण है । जानवरों की अधिकतर प्रजातियां बहुत बड़ी संख्या में पुनरूत्पादन करती हैं । उदाहरण के लिए, संधिपाद प्राणी और मछलियां अपने जीवन काल में हजारों लाखों अंडे दे सकती हैं । यदि इनमें से अधिकतर जानवर जीवित बच जाएं, तो जानवरों की जनसंख्या तेज़ और घातांकीय तरीके से बढ़ जाएगी । हालांकि, ऐसा होता नहीं है – जानवरों की जनसंख्या पीढ़ी दर पीढ़ी अपेक्षाकृत स्थिर बनी रहती है । जनसंख्या के स्थिर बने रहने के क्रम में, औसत रूप से प्रति माता–पिता केवल एक शिशु वयस्क होने तक जीवित बच सकता है । शेष मर जाएंगे । कुछ अंडे फूटते नहीं, कुछ जानवर शिकारियों द्वारा मार दिए जाते हैं, सहोदर (अन्य भाई बहन), और यहां तक कि अभिभावक जन्म के तुरंत बाद मर जाते हैं, लेकिन जन्म लेने या अंडे से निकलने के तुरंत बाद मौत के सबसे सामान्य कारणों में से एक है, भुखमरी ।
कभी–कभी भूख और कुपोषण के प्रभाव कम हो जाते हैं क्योंकि कुपोषित मादाएं गर्भ धारण नहीं करतीं इसलिए कम से कम जानवर पैदा होते हैं को केवल भूख से मर सकते हैं । हालांकि, यह उन प्रभावों को ख़त्म नहीं करता जो भूख का इस जनसंख्या की इकाइयों पर है । जानवर सामान्य रूप से पुनरूत्पादन करते हैं और बड़ी संख्या में संवेदनशील प्राणियों को जीवन रूप देते हैं, इनमें से कई जनसंख्या में जानवरों की संख्या को स्थिर रखते हैं । इन नए जन्में जानवरों के लिए उपलब्ध भोजन एक मुख्य कारक है, इस बात के निर्धारण में कि उनमें से कितने जीवित होंगे । अतः जंगली जानवरों के लिए भोजन में कमी एक नियमित परेशानी है, ख़ासतौर से शीत ऋतु और बसंत ऋतु के प्रारंभ में जब भोजन का अभाव रहता है ।
जो कोई भी जीवित बचते हैं, उनके लिए यहां कई चुनौतियां और ख़तरे हैं जो उन्हें आसानी से कुपोषण, भुखमरी और प्यास कि ओर धकेल सकते हैं ।
संगमन के ठीक पहले और बाद माता – पिता भुखमरी के उच्चतम ख़तरे पर होते हैं, जब उनका ऊर्जा स्तर और वसा भंडार घटता है । बच्चे भी ज़्यादा दयनीय होते हैं, यहां तक कि उन प्रजातियों में भी जिनमें कम बच्चे हैं और उन्हें तरूणों (अल्पवयस्कों) की देखभाल करनी है । अपनी माओं से समयपूर्व अलग होने वाले स्तनधारी तरुण जीवित रहने के लिए ज़रूरी भोजन मुश्किल से जुटा पाते हैं । यदि भोजन दुर्लभ हो, तो एक मां अपने बच्चों के पोषण के लिए ख़ुद को भूखा रख सकती है । वैकल्पिक रूप से, वह अपने बच्चों को छोड़ सकती है, उन्हें खाना खिलाने या स्तनपान करने से मना कर सकती है ।1 कभी–कभी कुपोषित माताएं दूध उत्पादन करने में असमर्थ होती हैं । इन परिस्थितियों में , बच्चे घोंसले या खोह में या तो भूखे रहते हैं या परित्यक्त हो जाते हैं, जैसा कि अक्सर गिलहरियों के बीच देखा गया है ।
ग़ैर स्तनधारी प्राणी में संगमन और पितृत्व के दौरान भुखमरी का खतरा और भी अधिक हो सकता है, जिस तरह उनका वसा भंडार घटता है और उनकी भोजन की उपलब्धता (प्राप्ति) कठोर रूप से सीमित है । उदाहरण के लिए सैल्मन, अपने प्रजनन के लिए प्रवाह के विपरीत एक थकाऊ यात्रा, धारा के विपरीत तैरना और जल प्रवाह पर ऊपर की ओर जाती है । इस अवधि के दौरान हर समय, वे भोजन नहीं खाते । आगामी वर्षों में पुनः यह यात्रा करने के लिए कुछ जीवित बचते हैं, लेकिन कई नहीं, वे अपनी अंतिम ऊर्जा पुनरूत्पादन में ख़र्च करते हैं और तत्पश्चात् तुरंत मर जाते हैं ।
अन्य उदाहरण एंपरर पेंगुइन हैं । अंटार्कटिका की बर्फ़ पर महीनों लंबे सफ़र चलने के बाद, मादा पेंगुइन एक अंडा देती है और इसे पिता की देखरेख में छोड़ देती है । अपने साथी को अंडा गर्म रखने के लिए छोड़ कर, अपना एक तिहाई वज़न खोते हुए, मादाएं भोजन के लिए दो महीने की खोज के लिए तैयार होती हैं । जब तक वह वापस लौटती हैं और वह भोजन के लिए अपनी यात्रा पर निकलता है, नर चार महीनों तक कुछ नहीं खाया होता और अपने शरीर का लगभग आधा वज़न खो चुका होता है ।2 ये जोख़िम भरी परिस्थितियां बच्चों के साथ –साथ माता–पिता को भी ख़तरे में डालती हैं, क्योंकि पेंगुइन के चूजे भूख से मर जाएंगे यदि उन्हें अपने माता–पिता से पर्याप्त भोजन ना मिले । जब वे छोटे बच्चे होते हैं, तो कुपोषण द्वारा होने वाली थकावट उस ऊर्जा को ख़र्च कर सकती है जिसकी उन्हें चारे के प्रभावी रूप में ज़रूरत होती है और यह उन्हें भुखमरी की ओर ले जाती है । एक बुरे वर्ष के दौरान, एक आबादी में से 40000 पेंगुइन मर जाती हैं और केवल दो चूजे बचते हैं ।3
पारिस्थितिक विघटन और प्राकृतिक आपदाएं कम समय में जनसंख्या के बहुत बड़े प्रतिशत को तहस-नहस कर सकती हैं, भोजन की आपूर्ति, मिट्टी और जल का कई वर्षों के लिए नष्ट या दूषित होना, भुखमरी और कुपोषण कि ओर ले जाता है । जानवर भी अनियमित और मौसमी काल की भुखमरी का सामना करते हैं जब उनके आवास परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं । उदाहरण के लिए हिरण पलायन या शीतनिद्रा में नहीं जाते और प्रत्येक सर्दियों में आवास और भोजन की कमी के कारण बड़ी संख्या में नियमित रूप से भूखे मरते हैं ।4 कुछ क्षेत्रों में समुद्री कछुओं की आधी से अधिक जनसंख्या शीत ऋतु के दौरान मर सकती है जब वे सर्दी और भोजन के लिए गुमराह रहने के द्वारा निःस्तब्ध हो जाते हैं ।5
भोजन की चिंता में स्तनधारी प्राणी, पक्षी और मछलियां पहले जमी हुई वसा गवां देते हैं और फ़िर ऊर्जा के आपातकालीन स्रोत के रूप में मांसपेशियों का उपभोग करना शुरू कर देते हैं, जो उन्हें दुर्बल बना सकता है और अंत में अंगों के क्षय के रूप में घातक हो जाता है ।6 पलायन और निश्चेष्टता (निष्क्रियता) सामान्य अनुकूलनीय प्रतिक्रियाएं हैं, लेकिन इनके अपने ख़तरे हैं । शिथिल (निष्क्रिय) जानवर भुखमरी के प्रति वैसे ही दयनीय हैं जैसे बीमारी और गर्मी या सर्दी के प्रति । पलायन एक बड़ी ऊर्जा की मांग करता है और इसकी सफलता अक्सर इस बात पर निर्भर करती है कि बसंत में मौसम और भोज्य परिस्थितियां कितनी अनुकूल थीं और पलायन पूर्व ग्रीष्म ऋतु कैसी थी ।
भुखमरी के दौर का सामना करने के लिए अकशेरुकी जानवर समान तरीकों से काम लेते हैं, और कीड़ों सहित कई अकशेरूकियों ने बिना भोजन के महीनों या यहां तक की वर्षों तक जीवित रहने की क्षमता विकसित कर ली है । अन्य पलायन करते हैं, लेकिन उनके उड़ान भरने और उड़ने की क्षमता भूख और कुपोषण के कारण हुए शारीरिक तनाव के कारण घट सकती है, जो कि मौत का कारण हो सकता है । जब भोजन दुर्लभ हो जाता है तो कुछ कीड़े अपने ही प्रजातियों को खाने की ओर बढ़ते हैं ।7
जानवरों की समस्त दुनिया में, ऊर्जा के स्रोत की कमी सामान्य बात है । भोजन की कमी के दौरान, जिनमें वसा संचय कम होता है वे जानवर पहले भूख झेलते हैं; जैसे कि अवयस्क, जो जानवर प्रजनन के कारण ऊर्जा खो चुके हैं, वे जानवर पलायन के लिए बहुत कमज़ोर होते हैं और वे भी जिनका सामाजिक स्तर नीचे होता है ।
यहां तक कि प्रचुर भोजन की मौजूदगी में, बीमारी और घाव जानवरों को आवश्यक संसाधनों को पाने से रोक सकते हैं, और उनकी भुखमरी का कारण बन सकते हैं । उदाहरण के लिए, विदरिंग एबलोन सिंड्रोम के कारण एबालोन भुखमरी से मर सकते हैं । यह बीमारी संक्रमित जानवरों में जीवाणु द्वारा पाचन तंत्र पर्त का उपभोग करने से होती है । यह एक एबलोन को भोजन पचाने से रोक कर, पाचन किण्वक (एंजाइम) को नष्ट कर सकता है । जीवित रहने के लिए, एबलोन अपने ही शरीर से उपभोग करता है । इसके कारण मांसपेशियां कम होती हैं, फलस्वरूप “मुरझायापन” प्रत्यक्ष होता है । इनके कमज़ोर होने की स्थिति में, संक्रमित जानवर भूख से मर जाएंगे या शिकारियों द्वारा खा लिए जाएंगे ।8 पक्षी भुख से तड़प सकते हैं यदि उनकी चोंचे बुरी तरह घायल हो जाएं जिससे वे खा ना सकें ।
कुछ मामलों में, साधारण खराब दातों का होना परेशानी का कारण है: उम्रदराज हाथी अंत में चबाने में असमर्थ हो जाते हैं जब कठोर आहार द्वारा उनके दांत धीरे– धीरे गिरने लगते हैं, और गिलहरियां जो अपने दातों को घिसते रहने के लिए पर्याप्त कठोर भोजन खोजने में असफल रहती हैं । वे अपने दांत बहुत बड़े और नुकीले पाती हैं जिससे वे नए भोज्य पदार्थ नहीं खा सकतीं । प्रत्येक घटना में, प्रभावित जानवर के लिए परिणाम भुखमरी और मृत्यु है ।
अधिक उम्र तक जीने वाले जानवरों के लिए भुखमरी मृत्यु का एक सामान्य कारण है । एक समय पर, जानवरों का शरीर यूंही ढीला पड़ने लगता है और वे चारे के लिए घूमने में समर्थ नहीं होते । कुछ कीड़े वयस्क होने के बाद भरण–पोषण के लिए थोड़ी ऊर्जा का निवेश करते हैं । शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग आसानी से सुस्त पड़ जाते हैं जब तक कि जानवर खाने में असमर्थ होते हैं या घूम नहीं सकते । पंख और मुंह के हिस्से गिर सकते हैं, पेशियां और जोड़ छूटने लगते हैं और पाचन तंत्र अपनी मरम्मत करने की क्षमता खो सकते हैं ।9 यदि वृद्ध जानवर अपने आप भूखे नहीं मरते, तो उनके समुदाय उन पर आक्रमण कर सकते हैं या उन्हें एक समुदाय द्वारा उपलब्ध सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा को छोड़ने पर मजबूर कर सकते हैं । उम्रदराज सामाजिक कीड़े जैसे चीटियां और मधुमक्खियां, हो सकता है अपने समुदाय स्वेच्छा से छोड़ दें, जानबूझकर भूखे मर जाएं या अपने समुदाय से बाहर निकाल दिए जाएं जब वे सहयोग करने में समर्थ ना हों ।10
भूख और शिकार की समकालीन घटनाओं से भोजन की दुर्लभता की स्थिति और भी खराब हुई । भूख और शिकार किस प्रकार संबंधित हैं? पहले प्राकृतिक रूप से शिकार जानवर शिकारियों से बचने का हरसंभव प्रयास करते हैं । वे भोजन खोजने की कोशिश उन जगहों में करते हैं जहां शिकारियों से उन्हें होने वाले ख़तरे कम से कम हों । उदाहरण के लिए, वे भोजन के लिए जंगली क्षेत्र देखते हैं जहां वे छिप सकते हैं, बजाय की खुले में जहां शिकारी उन्हें आसानी से देख सकते हैं । जब उन क्षेत्रों में जहां वे छुपे होते हैं, पर्याप्त भोजन नहीं होता, तो वे भूख और कुपोषण का सामना करते हैं । जब कुपोषण संकटमय हो जाता है, वे सुरक्षित क्षेत्र छोड़ना शुरू कर देते हैं, और शिकारियों के प्रति उनकी भेद्यता बढ़ती है । यह शिकार के कारण होने वाली मौतों की संख्या में बढ़ोत्तरी लाता है । इसलिए शिकार और कुपोषण एक साथ जानवरों की जनसंख्या में पीड़ा और मृत्यु के कारण बनते हैं । जानवरों की कई प्रजातियों के लिए भोजन्नकी उपलब्धता और शिकार के बीच संबंध का विस्तृत अध्ययन किया जा चुका है ।11
तृष्णा (प्यास) जंगली जानवरों में उच्च मृत्यु दर का एक मुख्य कारण है । जल की कमी के कारण जंगली जानवरों पर पड़ने वाले दो आधारभूत प्रभाव पीड़ित होना और अक्सर दर्दनाक मौतें होना है । पहले, सूखा पड़ने के दौरान, यहां जानवरों की एक बड़ी जनसंख्या के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए उनमें से कई प्यास से मर जाते हैं ।12 दूसरा, कुपोषण के साथ, शिकारियों द्वारा भयग्रस्त कुछ जानवर उन शिकारियों द्वारा बनाए ख़तरों के कारण पानी की खोज में अनिच्छा दिखाते हैं । वे उन जगहों में छिपते हैं जहां कम पानी होता है या बिल्कुल नहीं होता ।
अन्ततः, जानवरों के पानी की जरूरत को पूर्ण करने के लिए प्यास उन्हें कई ख़तरे मोल लेने को बाध्य करती है ।13 आख़िर जब वे अपने छुपे हुए स्थान छोड़ते हैं, तो वे बहुत दुर्बल होते हैं जिससे वे पानी के स्रोतों या खुले मैदान में आसान शिकार बन जाते हैं । अन्य जानवर अपने छिपे स्थानों में निर्जलित हो जाने तक छिपे होते हैं जिससे वे हिलडुल नहीं पाते हैं । इस तरह, वे पानी तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं और प्यास से मर जाते हैं ।1414
अत्यधिक प्यास एक भयानक अनुभव है । यह रक्त की मात्रा घटने के कारण थकान का अनुभव उत्पन्न करता है, और श्वसन क्रिया और हृदय स्पंदन की दर बढ़ा कर शरीर, पानी की कमी की भरपाई करने की कोशिश करता है । इसके बाद सर घूमना और गिरना होता है, और अन्ततः मौत ।15
प्यास और भूख का मिश्रण निर्जलन की प्रक्रिया को तेज करता है जिसकी परिणति मृत्यु होती है । शुष्क परिस्थितियों में रहने वाले कई जानवर जीवित रहने की रणनीति के तौर पर खाना जारी रखते हैं क्योंकि उस भोजन में थोड़ा तरल पदार्थ होता है । यह जानवरों को लंबे समय तक जीवित रहने में मदद करता है ।16 भोजन द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पानी की उपलब्धता के बग़ैर, कई जानवर कठोर (निष्ठुर) जलवायु में जीवित नहीं बचते ।
बीमारियां भी निर्जलन की ओर बढ़ा सकती हैं । उदाहरण के लिए, मेंढ़क चित्रिड फंगस द्वारा संक्रमित हो सकते हैं जिसमें उनकी त्वचा बहुत मोटी हो जाती है जिससे वे ज़रूरी पानी और पोषक तत्त्व नहीं सोख पाते । क्योंकि मेंढ़क प्रारंभिक रूप से अपनी त्वचा द्वारा ख़ुद को जलयुक्त करते हैं, यह सामान्यतः मृत्यु कारक होता है यदि इसका इलाज ना हो । इसका इलाज मौजूद है और संक्रमण का ठीक होना आसान है, लेकिन जंगल में मेंढ़कों की बड़ी जनसंख्या के इलाज का कोई तरीका अभी तक नहीं है । 17 यह बीमारी आगे चल कर अन्य कारकों द्वारा और भी जटिल हो जाती है जैसे कि गर्म तनाव । गर्म तनाव निर्जलित मेंढ़क की स्थिति को बहुत खराब कर सकता है, यहां तक कि उन तापमानों पर भी जो उन्हें जलयुक्त होने पर नुकसान नहीं पहुंचाते ।18
इस वक़्त सूखे और भोजन में कमी के प्रति प्राधिकारियों की प्रतिक्रियाओं के तरीके जानवरों को हानि पहुंचाते हैं जो कि पहले से ही ख़तरे में है । कभी– कभी जानवरों को जानबूझ कर भूखे रखने के लिए उपाय मंज़ूर किए जाते हैं । उदाहरण के लिए, शहरी कबूतरों के मामलों में ऐसा होता है । एक अन्य घटना 2010 में केन्या में हुई, जब सूखे के कारण मरे 80% जानवरों को अंबोसेली राष्ट्रीय उद्यान में उन्हें आम तौर पर शेरों को शिकार के रूप में दे दिया गया । हेलीकॉप्टर और ट्रकों की मदद से, मनुष्यों ने अन्य क्षेत्रों से 7000 ज़ेब्रा और हिरणों को पकड़ा और उन्हें उद्यान के भूखे शेरों के लिए जीवित भोजन के रूप में पेश किया गया । वहां रह रहे मनुष्यों की रूचि पर्यटन के आर्थिक लाभों के कारण शेरों की मौजूदगी बनाए रखने में थी ।19
हम कैसे मदद कर सकते हैं, इस बारे में आप हमारे पृष्ठ “जानवरों को मूलभूत आवश्यकताएं उपलब्ध कराना ( प्रोविडिंग फॉर थे बेसिक नीड्स ऑफ एनिमल्स)“ पर जान सकते हैं ।
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2 Halsey, L. (2018) “A matter of life and… energy”, The Biologist, 65 (2), pp. 18-21.
3 Pierce, C. P. (2019) “In a colony of 40,000, just two penguin chicks survived this year”, Esquire, Jun 17 [अभिगमन तिथि 23 जून 2019].
4 Wooster, C. (2003) “What happens to deer during a tough winter?”, Northern Woodlands, फरवरी 2 [अभिगमन तिथि 23 दिसंबर 2019].
5 Foley, A. M.; Singel, K. E.; Dutton, P. H.; Summers, T. M.; Redlow, A. E. & Lessman, J. (2007) “Characteristics of a green turtle (Chelonia mydas) assemblage in Northwestern Florida determined during a hypothermic stunning event”, Gulf of Mexico Science, 25, pp. 131-143 [अभिगमन तिथि 19 जून 2019].
6 Michigan Department of Natural Resources (2019) “Malnutrition and starvation”, op. cit.
7 Scharf, I. (2016) “The multifaceted effects of starvation on arthropod behavior”, Animal Behaviour, 119, pp. 37-48. Zhang, D.-W.; Xiao, Z.-J.; Zeng, B.-P.; Li, K. & Tang, Y.-L. (2019) “Insect behavior and physiological adaptation mechanisms under starvation stress”, Frontiers in Physiology, 10 [अभिगमन तिथि 19 जून 2019].
8 Ben-Horin, T.; Lenihan, H. S.; Lafferty, K. D. (2013) “Variable intertidal temperature explains why disease endangers black abalone”, Ecology, 94, pp. 161-168. Friedman, C. S.; Biggs, W.; Shields, J. D. & Hedrick, R. (2002) “Transmission of withering syndrome in black abalone, Haliotis cracherodii leach”, Virginia Institute of Marine Science, 21, pp. 817-824 [अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2019].
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10 Ridgel, A. L.; Ritzmann, R. E. & Schaefer, P. L. (2003) “Effects of aging on behavior and leg kinematics during locomotion in two species of cockroach”, Journal of Experimental Biology, 206, pp. 4453-4465 [अभिगमन तिथि 23 जून 2019]. Langstroth, L. L. (2008 [1853]) Langstroth on the hive and the honey-bee: A bee keeper’s manual, Salt Lake City: Project Gutenberg [accessed 23 जून 2019].
11 उदहारण के लिए देखे: Anholt, B. R. & Werner, E. E. (1995) “Interaction between food availability and predation mortality mediated by adaptive behavior”, Ecology, 76, pp. 2230-2234; McNamara, J. M. & Houston, A. I. (1987) “Starvation and predation as factors limiting population size”, Ecology, 68, pp. 1515-1519; Sinclair, A. R. E. & Arcese, P. (1995) “Population consequences of predation-sensitive foraging: The Serengeti wildebeest”, Ecology, 76, pp. 882-891; Anholt, B. R. & Werner, E. E. (1998) “Predictable changes in predation mortality as a consequence of changes in food availability and predation risk”, Evolutionary Ecology, 12, pp. 729-738; Sweitzer, R. A. (1996) “Predation or starvation: Consequences of foraging decisions by porcupines (Erethizon dorsatum)”, Journal of Mammalogy, 77, pp. 1068-1077 [अभिगमन तिथि 2 दिसंबर 2019]; Hik, D. S. (1995) “Does risk of predation influence population dynamics? Evidence from cyclic decline of snowshoe hares”, Wildlife Research, 22, pp. 115-129 [अभिगमन तिथि 14 दिसंबर 2019]; Anholt, B. R.; Werner, E. & Skelly, D. K. (2000) “Effect of food and predators on the activity of four larval ranid frogs”, Ecology, 81, pp. 3509-3521.
12 Nair, R. M. (2004) “Hunger and thirst haunt wildlife”, The Hindu, मार्च 26 [अभिगमन तिथि 9 मार्च 2013].
13 Sansom, A.; Lind, J. & Cresswell, W. (2009) “Individual behavior and survival: The roles of predator avoidance, foraging success, and vigilance”, Behavioral Ecology, 20, pp. 1168-1174 [अभिगमन तिथि 18 जून 2019]. Clinchy, M.; Sheriff, M. J. & Zanette, L. Y. (2013) “Predator‐induced stress and the ecology of fear”, Functional Ecology, 27, pp. 56-65 [अभिगमन तिथि 18 जून 2019].
14 TNN (2010) “Starvation, thirst kill many antelope in Jodhpur”, The Times of India, Jul 4 [अभिगमन तिथि 12 दिसंबर 2019].
15 Gregory, N. G. (2004) Physiology and behaviour of animal suffering, Ames: Blackwell, p. 83.
16 Ibid., p. 84.
17 California Academy of Sciences (2012) ”Frog dehydration”, Science News, California Academy of Sciences, अप्रैल 26 [अभिगमन तिथि 18 जून 2019].
18 Beuchat, C. A; Pough, F. H. & Stewart, M. M. (1984) “Response to simultaneous dehydration and thermal stress in three species of Puerto Rican frogs”, Journal of Comparative Physiology B: Biochemical, Systems, and Environmental Physiology, 154, pp. 579-585.
19 Kurczy, S. (2010) “Why is Kenya moving 7,000 zebras and wildebeest?”, The Christian Science Monitor, फरवरी 10 [अभिगमन तिथि 7 अक्टूबर 2019].