निष्पक्षता से तर्क बताता है कि प्रजातिवाद अनुचित है । यह उन स्तिथियों के खिलाफ प्रस्तुत किया जा सकता है जिन स्थितियों का कहना है कि अमानवीय जानवरों के साथ मनुष्यों से बद्तर व्यवहार करना उचित है । निष्पक्षता से तर्क के अनुसार, ऐसी स्थिति को बनाए रखना भेदभाव का एक रूप है ।1
तर्क से पता चलता है कि निम्नलिखित तीन विचारों का बचाव एक ही समय में नहीं किया जा सकता है:
(1) एक निर्णय केवल तभी उचित हो सकता है जब वह निष्पक्ष तरीके से लिया गया हो ।
(2) यदि हमारे साथ अमानवीय पशु जैसा भेदभाव किया जाये, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे ।
(3) अमानवीय पशुओं के साथ भेदभाव स्वीकार है ।
पहले विचार को रध्द करना बहुत मुश्किल है। परिणाम भारी होगा, क्योंकि यह ज्यादातर लोगों की नैतिकता और न्याय की बुनियादी अवधारणा के खिलाफ चला जाता है ।
दूसरे विचार को भी इनकार करना बहुत मुश्किल है । ऐसे लोग हो सकते हैं जो इस बात से इनकार करते है कि हमें अमानवीय पशुओं का सम्मान करना चाहिए, इस दावे की रक्षा करेंगे कि अगर हम उनके स्थान पर होते तो हमारा सम्मान भी नहीं किया जाना चाहिए । लेकिन वास्तव में यह विश्वास करना मुश्किल है । अगर ईमानदारी से बात की जाए , तो जिस तरह से हम मनुष्य आम तौर पर अमानवीय जानवरों के प्रति व्यवहार करते है, उस तरह का व्यवहार हम अपने प्रति हम कभी नहीं चाहेंगे, इस विचार को अस्वीकार करना हमारे लिए मुश्किल है (उदाहरण के लिए, उन्हें शोषण करना , या उनकी मदद करने से इनकार करना )
यदि हम ऊपर दिए गए पहले दो विचारों को स्वीकार करते हैं, तो हम तीसरे विचार का समर्थन नहीं कर सकते -हम यह नहीं कह सकते कि अमानवीय पशुओं के साथ किया जाने वाला भेदभाव अस्वीकार्य है, क्योंकि कुछ मामलों में हम क्या उचित समझते हैं और अन्य मामलों में हम क्या उचित समझते हैं, इन दोनों परिस्थितियों के बीच विरोधाभास होता है (केवल इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम वह है जो भेदभाव से पीड़ित है या नहीं )
हालांकि, कई लोग इन तीनों पदों पर पकड़ रखना चाहते हैं । विरोधाभास से बचने की कोशिश में , यह दावा करते है कि कुछ कारण है जिनकी वजह से उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए जैसा जानवरों के साथ किया जाता है, अगर वे जानवरों की जगह पर होते । उदाहरण के लिए, वे कहते हैं कि उनका सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि वे मानव प्रजाति से हैं, या क्योंकि उनके पास कुछ ऐसी क्षमताएं हैं जो अन्य जानवरों के पास नहीं हैं ।
एक और तरीका है इस कि जांच करने के लिए, की एक काल्पनिक स्थिति की कल्पना जो हमे यह सोचने में मदद करेगा की क्या उचित है । कल्पना कीजिए कि हमें पता है की हम इस दुनिया में पैदा होने वाले है , लेकिन हमें यह नहीं पता कि हमें क्या जगह मिलेगी । मान लीजिए कि हमें नहीं पता की हमारा क्या लिंग होगा या कौन सी प्रजाति होगी , हमारी बौद्धिक क्षमताएं क्या होंगी आदि। और मान लीजिये कि हम यह तय करने में सक्षम हैं, पूर्व सन्निहित स्थिति में, की दुनिया के नैतिक और राजनीतिक सिद्धांतों क्या होना चाहिए ।2
यह काल्पनिक परिदृश्य इस बारे में सोचने के लिए उपयोगी है क्योंकि यह स्थितियों की निष्पक्षता से संबंधित है। और, इस तरह के मामले में, यदि हम इस के अनुसार कार्य करें कि हम कैसे प्रभावित हो सकते हैं, तो हम उस स्थिति का समर्थन करेंगे जहाँ किसी को भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं झेलना पड़े । हम ऐसी किसी भी स्तिथि का विरोध करेंगे जिसके परिणामस्वरूप हमारे साथ भेदभाव हो सकता है क्योंकि हमारे पास कुछ क्षमताएं नहीं है । हम इस स्थिति को भी अस्वीकार करेंगे जहाँ कुछ को दूसरों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होगा क्योंकि वे एक विशेष समूह से संबंधित हैं ।
एक निश्चित समूह में सदस्यता केवल मौके की बात है । (और यह इसलिए क्यूंकि , जैसा की “बैगिंग द क्वेश्चंस” में समझाया है, कि इस तरह के एक मनमाने ढंग के आधार पर प्रजातिवाद का समर्थन औचित्य नहीं है) यदि वो लोग जो प्रजातिवाद का समर्थन करते हैं, वे किसी अलग प्रजाति के होते , तो उन्हें वही पीड़ा उठानी पड़ती जो अमानवीय जानवरों को आज झेलनी पड़ रही हैं।
इसलिए, ऊपर वर्णित स्थिति में, यदि हम वास्तव में निष्पक्ष हो , तो संभावना है कि हम एक अमानवीय जानवर के रूप में भी पैदा हो सकते हैं, इसका मतलब है कि हम ऐसी स्थिति का चयन करेंगे जिसमें अमानवीय पशुओं के हितों की पर्याप्त सुरक्षा की गई हो । 3
संक्षेप में, अगर हम इस पर निष्पक्ष रूप से विचार करें , तो हम अमानवीय जानवरों के साथ मनुष्यों से भी बद्तर व्यवहार स्वीकार नहीं करेंगे । इसलिए यह विचार कि अमानवीय जानवरों के साथ मनुष्यों से भी बद्तर व्यवहार किया जाना चाहिए अनुचित है । यह भेदभाव का एक रूप है ।
हालांकि, इस तरह का जवाब अमान्य है। कोई जो वास्तव में खुद को उनकी की जगह पर रख कर विचार करेगा तो वह इस तरह का दावा नहीं करेगा । हम में से ज्यादातर मानते हैं कि ऐसी स्तिथियाँ में जहाँ दूसरों को हमारे साथ असमान व्यवहार से नुकसान होने से लाभ होगा, अस्वीकार्य होगा। निष्पक्षता के अर्थ से , उलटे मामले में, हम ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते जिसमें दूसरों के असमान व्यवहार से नुकसान से हमें लाभ हो । इससे पता चलता है कि हमें प्रजातिवाद सहित निरंतरता और भेदभाव के बीच एक विकल्प बनाना चाहिए । यदि हम अमानवीय पशुओं के साथ भेदभाव जारी रखते हैं तो हम अब भी ऐसी स्थिति को बनाए नहीं रख रहे हैं जो निष्पक्ष, सुसंगत और निरंतर हो, और इसलिए नैतिक रूप से यह स्वीकार नहीं है ।
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1 Lippert-Rasmussen, K. (2006) “Private discrimination: A prioritarian, desert-accommodating account”, San Diego Law Review, 43, pp. 817-856. Horta, O. (2010) “Discrimination in terms of moral exclusion”, Theoria: Swedish Journal of Philosophy, 76, pp. 346-364 [अभिगमन तिथि 13 फरवरी 2014].
2 जिस आदर्श पर यह तर्क आधारित है, वह इधर प्रस्तुत हो चूका है , Harsanyi, J. C. (1982) “Morality and the theory of rational behaviour”, Sen, A. K. & Williams, B. A. O. (eds.) Utilitarianism and beyond, Cambridge: Cambridge University Press, pp. 39-62; और यह Brandt, R. B. (1979) A theory of the good and the right, Oxford: Clarendon. हालाँकि , इसकी जानीमानी प्रस्तुति Rawls, J. (1999 [1971]) A theory of justice, rev. ed., Cambridge: Harvard University Press. में ह| एक अतिरिक्त सिद्धांत देखा जा सकता है Scanlon, T. M. (1998) What we owe to each other, Cambridge: Belknap.
3 गैरमानव पशुओ पर इस सिद्धांत को लागु करने के लिये , यहाँ देखे VanDeVeer, D. (1979) “Of beasts, persons and the original position”, The Monist, 62, pp. 368-377; Rowlands, M. (2009 [1998]) Animal rights: Moral, theory and practice, 2nd ed., New York: Palgrave Macmillan; ऐसा काम जिसमें यह विचार करते हैं कि न्याय की शर्तों को एक ऐसी स्थिति से प्राप्त किया जाना चाहिए जिसमें हम निष्पक्ष रूप से इस मामले की जांच करते हैं कि अमानवीय जानवरों के लिए समान विचार नहीं दिया है इसमें है Nussbaum, M. C. (2006) Frontiers of justice: Disability, nationality, species membership, Cambridge: Belknap. अन्य कार्य जिनमें जानवरों के लिए न्याय का विचार बचाव किया गया है, लेकिन एक सूत्रीकरण के बिना जैसा कि यहां प्रस्तुत किया गया है Regan, T. & VanDeVeer, D. (eds.) (1982) And justice for all, Totowa: Rowan and Littlefield; Opotow, S. (1993) “Animals and the scope of justice”, Journal of Social Issues, 49, pp. 71-86. VanDeVeer, D. (1987) “Interspecific justice”, The Monist, 22, pp. 55-79.